मॉनसून 2024: रिकॉर्ड गर्मी, अरब सागर में दुर्लभ चक्रवात, ला नीना - क्या भारत में साल 1999 जैसे होने वाले हैं हालात?

चालू मॉनसून सीजन में मौजूदा परिस्थितियां 1999 जैसी ही हैं, जब ओडिशा में विनाशकारी सुपर चक्रवात आया था
अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।
अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।फोटो: पीआरओ डिफेंस कोच्चि @डिफेंसपीआरओकोच्चि / एक्स
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इस साल दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का व्यवहार बेहद असामान्य रहा है। यही वजह है कि इस साल देश भर में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ की घटनाओं में काफी बदलाव देखा गया है। 

जून में हवाओं के शुरुआती ठहराव की बात अगर छोड़ दें तो उसके अलावा मॉनसून ने अपना सामान्य विराम नहीं लिया है और अगस्त में अरब सागर में एक दुर्लभ चक्रवात भी बनाया है, जो जमीन पर लगभग पूरी तरह से तीव्र हो गया है। 

आने वाले महीनों में अत्यधिक बारिश जारी रह सकती है। यहां तक कि अक्टूबर के अंत तक भी ऐसा हो सकता है।  अभी ला नीना की शुरुआत होनी है, ऐसे में जो परिस्थितियां बन रही हैं, उससे हालात साल 1999 के समान बनते जा रहे हैं। 

1999 में भी अक्टूबर में ओडिशा में लगातार दो चक्रवात आए थे, उनमें से सबसे विनाशकारी ओडिशा सुपर चक्रवात था जिसने 10,000 से अधिक लोगों की जान ले ली थी।

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अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।

अब तक का बारिश वितरण

वर्तमान में देश में 1 जून से 1 सितंबर के बीच आठ राज्यों में सामान्य से कम बारिश के साथ कुल मिलाकर सात प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है। सामान्य बारिश के प्रतिशत के संदर्भ में सबसे अधिक कमी नागालैंड और मणिपुर में दर्ज की गई है। दोनों राज्यों में सामान्य से 28 प्रतिशत कम बारिश हुई है।

बिहार, पंजाब और चंडीगढ़ में 25 प्रतिशत की कमी है। देश के एक चौथाई जिलों में कम बारिश (सामान्य से 20 से 59 प्रतिशत कम वर्षा) या बहुत कम बारिश (सामान्य से 60 से 99 प्रतिशत कम बारिश) हुई हैं।

पिछले कुछ महीनों में कई बार मॉनसून ट्रफ (जो बारिश का मुख्य कारक निम्न दबाव क्षेत्र है) एक तिरछी स्थिति में रहा है, जिसमें ट्रफ का एक छोर सामान्य स्थिति में है जबकि दूसरा छोर अपनी सामान्य स्थिति के दक्षिण या उत्तर में है या इसके विपरीत है। 

2 सितंबर तक मॉनसून ट्रफ का पश्चिमी छोर अपनी सामान्य स्थिति में है और इसका पूर्वी छोर अपनी सामान्य स्थिति के दक्षिण में है।

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जब मॉनसून ट्रफ अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की ओर होती है, तो बारिश  दक्षिणी भारत की ओर स्थानांतरित हो जाती है, जबकि मुख्य मॉनसून क्षेत्र और उत्तरी तथा पूर्वी भारत में पर्याप्त वर्षा नहीं होती है।

जब ट्रफ अपनी सामान्य स्थिति से उत्तर की ओर जाती है, तो मॉनसून को विराम पर कहा जाता है। ऐसी अवधि के दौरान हिमालय की तलहटी और पूर्वोत्तर भारत में वर्षा होती है, जबकि देश के बाकी हिस्सों में अधिक वर्षा नहीं होती है।

चालू वर्ष की 1999 से समानताएं

चालू साल की समानताएं 1999 के अप्रैल के महीने में अत्यधिक गर्मी से शुरू होती हैं। 1999 का अप्रैल महीना 20वीं सदी का सबसे गर्म अप्रैल था, जिसमें उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों में एक पखवाड़े तक 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान दर्ज किया गया था।

अप्रैल 2024 देश के बड़े हिस्से में आर्द्र गर्मी की लहरों के साथ रिकॉर्ड पर सबसे गर्म अप्रैल था। वर्ष 1999 भी ला नीना वर्ष था और उसके बाद 1997-98 में मजबूत अल नीनो आया, जो 2024 के समान है। अगस्त 1999 में कम बारिश के बाद सितंबर में सामान्य से अधिक बारिश हुई। 

भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा सितंबर 2024 के लिए भी इसी तरह की भविष्यवाणी की गई है, हालांकि इस साल अगस्त का महीना बारिश के बिना नहीं रहा और वास्तव में हिमाचल प्रदेश, गुजरात और तेलंगाना जैसे स्थानों में भयावह बाढ़ देखी गई। 

मौसम विभाग ने देश के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक अधिकतम और न्यूनतम तापमान की भविष्यवाणी भी की है, जिससे सितंबर में अत्यधिक बारिश की घटनाओं के साथ गर्मी और उमस हो सकती है। 

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अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे में जलवायु अध्ययन के प्रोफेसर और मैरीलैंड विश्वविद्यालय के एमेरिटस प्रोफेसर रघु मुर्तुगुडे ने डाउन टू अर्थ को बताया, “मुझे लगता है कि चक्रवात रेमल ने शुरुआत को प्रभावित किया और ऐसा लग रहा था कि यह समय पर शुरू हुआ, लेकिन जून में ज्यादातर कम बारिश हुई। जुलाई और अगस्त में बेहतर बारिश हुई, लेकिन बारिश के वितरण ने कुछ परिचित पैटर्न और कुछ नए हॉटस्पॉट दिखाए।” 

मुर्तुगुडे ने कहा, “मध्य-पूर्वी भाग (जैसे बिहार) पिछले कुछ वर्षों की तरह कम बारिश वाला बना हुआ है और यहां फिर से अधिक बारिश हो सकती है, क्योंकि देर से होने वाली चरम स्थितियों का मतलब अक्टूबर में बारिश हो सकती है।” 

मुर्तुगुडे ने समझाते हुए कहा, “लेकिन पूर्वी गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश में शुष्क विसंगतियों का एक हॉटस्पॉट बना हुआ है, जिसे समझना काफी कठिन था और उत्तरी क्षेत्र और हिमालय की तलहटी (हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर में 23 प्रतिशत की कमी है) भी शुष्क हैं। 

विशेषज्ञ ने कहा कि इस साल घट रही घटनाएं साल 2023-24 की घटनाओं से ज्यादा मिलती हैं, जब रिकॉर्ड गर्मी पड़ी थी और पूरी दुनिया में चरम मौसम की व्यापक घटनाएं घटी थी।

मुर्तुगुडे ने कहा कि ला नीना के सक्रिय होने में देरी की संभावना है, क्योंकि अल नीनो दक्षिणी दोलन (इएनएसओ) का ट्रांसिशन मोड अनुकूल नहीं है।

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अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।

मौसम विभाग के अनुसार, मॉनसून के मौसम के अंत में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ईएनएसओ घटना का सामान्य से अधिक ठंडा चरण ला नीना विकसित होने की उम्मीद है। 

दिलचस्प बात यह है कि मुर्तुगुडे ने आगे टिप्पणी की कि 'हम मॉनसून के बाहरी दबाव को देखते रहते हैं और भूल जाते हैं कि मॉनसून अपने आप में एक महत्वपूर्ण ऊष्मा स्रोत है।' 

मॉनसून के मौसम में बारिश को प्रभावित करने वाले अन्य जलवायु कारक जैसे कि हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी) मामूली हैं और संभवतः मॉनसून और ईएनएसओ से संबंधित हैं। मुर्तुगुडे के अनुसार, ऐसा नहीं है कि इसके विपरीत हो।

आईओडी की सकारात्मक घटना के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर में समुद्र का पानी सामान्य से अधिक गर्म होता है और पूर्वी हिंद महासागर में यह सामान्य से अधिक ठंडा होता है, जिससे आम तौर पर भारत में मॉनसून की बारिश बढ़ जाती है।

मुर्तुगुडे ने निष्कर्ष निकालते हुए कहते हैं,"इसलिए गर्म महासागरों और धरती को देखते हुए मॉनसून अपने आप ही आगे बढ़ गया है और इसका महासागरों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है। मॉनसून हमें हर साल आश्चर्यचकित करता है क्योंकि हमें पता नहीं होता कि क्या होने वाला है। हमें ईएनएसओ और आईओडी इत्यादि को देखने की बजाय इसकी आंतरिक परिवर्तनशीलता को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता है।”

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