बाढ़ के पूर्वानुमान में सुधार से भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लाखों की बच सकती है जान: शोध

शुष्क हवाओं की घुसपैठों के बाद शुष्क मौसम नहीं आया, बल्कि बारिश में वृद्धि हुई, औसतन 17 प्रतिशत और कुछ मामलों में, 100 प्रतिशत से अधिक बारिश देखी गई।
फोटो साभार : सीएसई
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साल 2018 में, भारत के राज्य केरल में बाढ़ के कारण 400 से अधिक लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। बाढ़ उष्णकटिबंधीय एशिया में हर साल मॉनसून के मौसम में देखी जाती है। भारी मॉनसूनी बारिश कब और कैसे खतरनाक बाढ़ के बुरे सपने में तब्दील होकर भारी नुकसान कर दे अब तक इसका सटीक अनुमान लगाना कठिन रहा है।

अब, वीजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की अनुसंधान टीम ने एक नए शोध के माध्यम से इसका सटीक पूर्वानुमान लगाने का दावा किया है। इसमें कहा गया है कि शुष्क हवा का आगमन भारी बारिश होने का इशारा दे सकता है।

वीजमैन इंस्टीट्यूट के पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग की डॉ. शिरा रवेह-रुबिन ने डॉ. दीपिका राय के साथ मिलकर यह अध्ययन किया। उनके परिणाम एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमोस्फियरिक साइंस में प्रकाशित किए गए हैं।

जुलाई से सितंबर तक भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाली मॉनसूनी बारिश कई कारणों के एक साथ मिलने से जटिल होती हैं, इनमें वैश्विक जेट स्ट्रीम भी शामिल हैं जो बदलती और झुकती हैं। वीजमैन अध्ययन ने पहले से अज्ञात जटिल कारक की पहचान की है, हवाई धाराओं का एक उप-प्रकार जिसे शुष्क घुसपैठ के रूप में जाना जाता है।

जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, ये वायु धाराएं शुष्क हवा से बनी होती हैं, लेकिन हवा भी बहुत ठंडी होती है, खासकर मॉनसून की बारिश की भाप भरी नमी वाली हवा की तुलना में। यह कुछ हद तक तर्कसंगत माना गया था कि शुष्क घुसपैठ जो पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत में डूब जाती है, मॉनसूनी बारिश के मौसम में छोटे शुष्क दौर के लिए जिम्मेदार पाई गई।

दक्षिण से उत्तर की ओर भूमध्य रेखा को पार करने वाली शुष्क घुसपैठ केवल भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास ही होती है। रवेह-रुबिन और राय ने दुनिया के इस हिस्से में शुष्क घुसपैठ के 40 वर्षों के आंकड़ों को देखा, 1979 से  2018 के बीच 137 दर्ज किए गए उदाहरण और उनकी तुलना लगभग उसी समय के बारिश के रिकॉर्ड से की।

उन्होंने पाया कि इन शुष्क हवाओं की घुसपैठों के बाद शुष्क मौसम नहीं आया, बल्कि बारिश में वृद्धि हुई, औसतन 17 प्रतिशत और कुछ मामलों में, 100 प्रतिशत से अधिक भी देखी गई।

शुष्क हवा अधिक बारिश कैसे पैदा करती है? यह समझने के लिए शोधकर्ताओं ने यांत्रिक भौतिकी से लिया गया एक मॉडल लागू किया जिसमें तापमान, स्थान और पानी की सामग्री में बदलाव के साथ हवा के "पैकेट" के चलने के आंकड़ों की निगरानी करना शामिल है।

उन्होंने पाया कि हिंद महासागर के ऊपर शुष्क हवा एक प्रकार के स्पंज की तरह काम करती है। समुद्र की सतह और शुष्क हवा के इन पैकेटों के बीच नमी का अंतर जितना बड़ा होगा, वे समुद्र से उतना ही अधिक पानी सोखेंगे और उस पानी को उत्तर की ओर अरब सागर पर भारत के पश्चिमी तट की ओर ले जाएंगे।

जबकि इसी तरह के अध्ययनों ने मॉनसून के मौसम में बारिश और इसके थमने के पैटर्न को समझने के लिए इस मॉडल का उपयोग किया है। उन्होंने भूमध्य रेखा पर बहने वाले विशेष शुष्क घुसपैठ की जांच नहीं की है, जो अपने स्थलीय समकक्षों की तुलना में अलग व्यवहार करते हैं।

इसीलिए, रवेह-रुबिन कहते हैं, उन्होंने मान लिया था कि यह घटना मौसम को नमी वाला बनाने के बजाय शुष्क कर देती है। वह कहती हैं, यह दक्षिणी गोलार्ध की सर्दी के उत्तरी हिस्से की गर्मी में तब्दील होने का एक उदाहरण है।

रवेह-रुबिन का मानना है कि इस तंत्र को अब तक नजरअंदाज किया गया है, क्योंकि मॉनसून की गतिशीलता में ऐसे तंत्र शामिल होते हैं जो लंबे समय तक काम करते हैं, जिसमें महीनों या वर्षों के साथ ही समुद्री जल की सतह के तापमान में वृद्धि जैसी धीमी घटनाएं भी शामिल होती हैं, जबकि गतिशीलता शुष्क घुसपैठ दिनों या हफ्तों के आधार पर होती है।

रवेह-रुबिन और उनकी टीम ने देखा कि शुष्क घुसपैठ का विज्ञान न तो सूखा है और न ही घुसपैठ। उनके लिए, यह अनसुलझे भौतिकी और वास्तविकता के बीच एक स्पष्ट संबंध है। वह कहती हैं, यह सिर्फ एक आसान सिद्धांत नहीं है। आप इसे वास्तविक जीवन और आंकड़ों के माध्यम से देख सकते हैं और जब आप बाहर जाते हैं तो आप इसे अपनी आंखों से देख सकते हैं।

भारत और बांग्लादेश जैसे स्थानों में, जहां लाखों लोग बाढ़ के मैदानों में रहते हैं, सटीक बाढ़ चेतावनी प्रदान बहुत जरूरी है

उनका मानना है कि शुष्क घुसपैठ की निगरानी की एक क्षमता जो आज भी मौजूद है, बारिश के पूर्वानुमान में काफी सुधार कर सकती है जो बाढ़ का कारण बनती है। विशेष रूप से, ऐसे चरम मौसम की घटनाओं की अग्रिम चेतावनियों को एक या दो दिन से लेकर लगभग एक सप्ताह तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे उचित तैयारी हो सके, यदि आवश्यक हो, तो निकासी हो सके, जिससे संभावित रूप से हजारों नहीं तो सैकड़ों लोगों की जान बचाई जा सके।

रवेह-रुबिन और उनकी टीम का इरादा एशियाई मॉनसून पर शुष्क घुसपैठ के प्रभावों का अध्ययन जारी रखने और उनके मॉडल को परिष्कृत करने का है। अन्य बातों के अलावा, वे जानना चाहते हैं कि ये पैटर्न इस तरह कैसे और क्यों बनते हैं। उन्होंने बताया कि हमारा इरादा दुनिया भर में शुष्क घुसपैठ की घटना की जांच करने और अन्य स्थानों पर इसी तरह के प्रभावों की खोज करने का भी है। ऐसा करने से, उन्हें भविष्य में भारी बारिश और खतरनाक बाढ़ की भविष्यवाणी करने की  क्षमता में सुधार होने की उम्मीद है।

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