भारी बारिश और भूकंप के चलते हिमालय क्षेत्र में बढ़ रहे हैं भूस्खलन के मामले

भारी बारिश और भूकंप के चलते नेपाल में मानसून के दौरान सामने आने वाले भूस्खलन के मामलों में छह गुना वृद्धि हो सकती है
फोटो: यूरोपियन यूनियन नागरिक सुरक्षा और मानवीय सहायता एजेंसी/ फ्लिकर
फोटो: यूरोपियन यूनियन नागरिक सुरक्षा और मानवीय सहायता एजेंसी/ फ्लिकर
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हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि भारी बारिश और भूकंप के चलते नेपाल में मानसून के दौरान सामने आने वाले भूस्खलन के मामलों में छह गुना वृद्धि हो सकती है। गौरतलब है कि मानसून के मौसम में जून से अगस्त के बीच यह हिमालयी देश हर साल गंभीर भारी बारिश के चलते भूस्खलन का अनुभव करता है।

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया था कैसे सामान्य मानसून की तुलना में भारी बारिश और भूकंप भूस्खलन को प्रभावित कर सकते हैं। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पिछले 30 वर्षों (1988 - 2018) के बीच  उपग्रहों से प्राप्त चित्रों और वर्षा सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

विश्लेषण से पता चला है कि 1993 और 2002 में बादल फटने के चलते औसत मानसून के मौसम की तुलना में भूस्खलन के मामलों में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई थी। इसी तरह अप्रैल 2015 के  गोरखा भूकंप के कारण औसत मानसून की तुलना में अनुमान से छह गुना अधिक भूस्खलन सामने आए थे। यही नहीं इससे वहां के परिदृश्य को जो नुकसान पहुंचा था वो 2016 में संभावित औसत से कहीं ज्यादा भूस्खलनों की वजह बना था।

अध्ययन से यह भी पता चला है कि 2015 में आए भूकंप से जो वहां के परिदृश्य को सबसे गंभीर क्षति पहुंची है वो भूकंप के केंद्र के पास न होकर आसपास ले स्थानों में हुई थी जहां विशेष रूप से खड़ी पहाड़ी ढलानें थी। 

बदलती जलवायु के साथ बढ़ जाएंगी भूस्खलन की घटनाएं

यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, प्लायमाउथ, एक्सेटर विश्वविद्यालय और अंतरराष्ट्रीय इंजीनियरिंग परामर्श फर्म, एईसीओएम के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था जोकि जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है। इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जोश जोन्स ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि "दुर्भाग्य से, नेपाल में लोग अक्सर मानसून के मौसम में होने वाले भूस्खलन से प्रभावित होते हैं, जिससे हर साल उनके घरों और बुनियादी ढांचे को व्यापक नुकसान होता है।

अध्ययन से पता चलता है कि भारी बारिश और भूकंप से इन भूस्खलन का खतरा कितना बढ़ सकता है और उन प्रभावों को कितने समय तक महसूस किया जा सकता है।" उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में यह जानकारी स्थानीय समुदायों के लिए भूस्खलन के खतरे को लेकर बनाए जाने वाली योजनाओं में मददगार हो सकती हैं।   

इस बारे में शोध और प्लायमाउथ विश्वविद्यालय से जुड़ी शोधकर्ता सारा बोल्टन ने बताया कि वैश्विक स्तर पर जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है उसके चलते असामान्य बारिश और बाढ़ का आना सामान्य होता जा रहा है, यह घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा सामने आ रही हैं।

जलवायु मॉडल से इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि नेपाल में भी भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं बदलते मौसम के साथ और बढ़ जाएंगी। शोध में भी पिछले 30 वर्षों के दौरान इस तरह की दो घटनाएं सामने आई थी अनुमान है कि भविष्य में इनकी संख्या और बढ़ सकती है। जो स्थानीय आबादी के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती हैं। 

ऐसे में यह जरुरी है कि भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं से होने वाली जान माल की हानि को कम करने के लिए सही समय पर व्यापक कदम उठाएं जाएं और भविष्य की योजनाओं में इसपर विशेष रूप से ध्यान दिया जाए। 

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