उत्तरी हिंद महासागर में खतरनाक ढंग से बढ़ रही है चक्रवाती तूफानों की तीव्रता : अध्ययन

अल नीनो वर्षों की तुलना में ला नीना वर्षों में तीव्र चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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भारत को इस साल मानसून से पहले आए चक्रवाती तूफानों की वजह से काफी नुकसान झेलना पड़ा है। इनमें से "तौकते" नामक चक्रवाती तूफान ने पांच राज्यों को काफी नुकसान पहुंचाया। वहीं चक्रवात "यास" ने तीन राज्यों में अपना प्रकोप दिखाया। संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक जहां चक्रवात तौकते के कारण 190,983 हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुई वहीं चक्रवात यास के कारण 176,638.93 हेक्टेयर फसल क्षेत्र पर असर पड़ा।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक पिछले चार दशकों में उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में गंभीर चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में वृद्धि हुई है। चक्रवाती तूफानों की बढ़ती तीव्रता के लिए काफी चीजें जिम्मेदार हैं। इनमें उच्च आर्द्रता, विशेष रूप से मध्य वायुमंडलीय स्तर पर, लंबवत चलने वाली हवाओं का कमजोर पड़ना और साथ ही समुद्र की सतह का तापमान बढ़ना आदि शामिल है। इन सभी मौसम संबंधी कारकों के बढ़ने के पीछे वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग की अहम भूमिका होने की बात कही है।   

जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव और चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वैश्विक महासागरीय घाटियों पर बनने वाले उच्च तीव्रता के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है जो कि चिंता का विषय है। अधिक तीव्रता वाले चक्रवात उत्तरी हिंद महासागर में अधिक बार आते हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए हमेशा खतरा बना रहता है।

भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के तहत भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से यह अध्ययन किया है। इसके अंतर्गत उत्तरी हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की गतिविधि पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव और अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) में महत्वपूर्ण वायुमंडलीय मापदंडों की भूमिका और प्रभाव का अध्ययन किया गया है।

अध्ययन में पाया गया कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विनाशकारी क्षमता जिसे पावर डिसिपेशन इंडेक्स कहा जाता है के बीच गहन संबंध है। विशेष रूप से मानसून के मौसम से पहले बनने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में बढ़ोतरी देखी गई है। हाल के दशक 2000 के बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की घाटियों दोनों जगह इनकी संख्या काफी बढ़ी हुई पाई गई।

जल वाष्प और क्षेत्रीय समुद्र स्तर पर बढ़ते दबाव जैसे अतिरिक्त मापदंडों की भूमिका की जांच से उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बढ़ती गंभीरता पर ला नीना वर्षों के संभावित जुड़ाव का पता चला है। अध्ययन से पता चला कि निचले स्तरों में जल वाष्प की मात्रा में वृद्धि हुई है और पिछले 38 वर्षों के दौरान वर्ष 1979 की तुलना में यह 1.93 गुना था। जो पिछले दो दशकों 2000-2020 के दौरान, ला नीना वर्षों के चलते लगभग दोगुना हो गया था।

अल नीनो वर्षों की तुलना में ला नीना वर्षों में तीव्र चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा, ला नीना वर्षों के दौरान, बंगाल की खाड़ी में तीव्र चक्रवातों के बनने के लिए कम दबाव का क्षेत्र बनता है। जो कि पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर बेसिन में आने वाले तीव्र चक्रवातों के अनुरूप हैं। इन वर्षों के दौरान जल वाष्प में बढ़ोतरी के चलते जलवायु में भी बदलाव देखा गया, जिसमें गंभीर चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति के साथ अंडमान सागर और उत्तरी चीन सागर क्षेत्रों में भी वृद्धि देखी गई।

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि उत्तरी हिंद महासागर के इलाकों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की गतिविधि में भारी वृद्धि होने की आशंका जताई गई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि उत्तरी हिंद महासागर में अन्य जलवायु सूचकांकों के साथ संभावित संबंधों और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों पर विस्तृत जांच करने की जरूरत है।

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