डाउन टू अर्थ खास: प्राकृतिक आपदा की शिकार महिलाओं पर मानव तस्करों की नजर

प्राकृतिक आपदाओं और गरीबी ने मानव तस्करी को खाद-पानी देने का काम किया है। मौसम की चरम घटनाओं ने लाखों लोगों को को प्रभावित कर मानव तस्करी की अंधेरी गुफा में धकेल दिया है।
पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र नेपिछले एक दशक में पांच गंभीर चक्रवात देखें हैं। तबाही और भूख से बचने के लिए छटपटा रहे  लोग तस्करों के आसान शिकार हैं (फोटो:  तरण देओल)
पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र नेपिछले एक दशक में पांच गंभीर चक्रवात देखें हैं। तबाही और भूख से बचने के लिए छटपटा रहे लोग तस्करों के आसान शिकार हैं (फोटो: तरण देओल)
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टीशा और सलीमा की जिन्दगी तूफानों से भरी रही है। दोनों चचेरी बहनें हैं। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के सुंदरवन डेल्टा में पली-बढ़ी इन बहनों का मानना है कि उनकी जिन्दगी में चक्रवाती तूफानों का आते रहना किसी डरावने सपने से कम नहीं। दोनों अपनी किशोरावस्था में हैं।

इन दोनों ने एक दशक की अपनी जिन्दगी में हर दूसरे साल गंभीर चक्रवाती तूफानों को आते देखा है। सुंदरवन पुलिस जिला उपखंड में आने वाले हर चक्रवात ने उनके गांवों को बुरी तरह प्रभावित किया और इनके परिवारों को गरीबी की अंधी सुरंग में धकेला है। इस दुष्चक्र को तोड़ने की उनकी हर कोशिश नाकाम रही।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, दक्षिण 24 परगना न केवल देश का सबसे अधिक चक्रवात प्रभावित जिला है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील भी है।

साथ ही, यह देश के सबसे गरीब जिलों में से एक है। राज्य सरकार के मुताबिक, यहां की आबादी का 37.2 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे रहता है। जैसे-जैसे चरम मौसमी घटनाएं गरीबी को बढ़ावा देती रहती हैं, लोगों के जीवन पर उनके प्रभाव विनाशकारी होते चले गए हैं।

सलीमा के परिवार में चार सदस्य हैं। इस परिवार पर 20 मई, 2020 को दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब चक्रवात अम्फान ने पश्चिम बंगाल तट पर दस्तक दी।

सलीमा डाउन टू अर्थ को बताती है, “हम मतला नदी की एक सहायक नदी के किनारे बसे रैदिघी गांव में रहते थे। मिट्टी और फूस के छप्पर से बना हमारा घर नदी के किनारे ही था।” सलीमा की मां परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य थी, जो बमुश्किल महीने का 2,000 रुपए कमाने के लिए खेत में काम करती थी।

चक्रवात के कारण खेत खारे पानी से भर गए, जिससे खेती भी करना मुश्किल हो गया। वह कहती हैं, “अम्फान के कारण बड़े पैमाने पर ज्वार आया, जिसने मिनटों में हमारे घर और सभी सामानों को बर्बाद कर दिया।”

इसके एक साल बाद मई 2021 में यह परिवार अभी भी अपनी जिन्दगी को संभालने की कोशिश ही कर रहा था कि चक्रवात यास ने एक और झटका दिया।

हालांकि, यह सीधे पश्चिम बंगाल से नहीं टकराया, लेकिन राज्य के तटीय क्षेत्रों में 140-260 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं और बड़े पैमाने पर बाढ़ आई। सलीमा बताती हैं,“यास ने रैदिघी में रहना असंभव कर दिया। इसलिए, हम टीशा के परिवार के पास बोरोचनफुली गांव चले गए।”

लेकिन वहां भी जिंदगी आसान नहीं थी। टीशा का पूरा परिवार दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता था और मुश्किल से ही उनका गुजारा चलता था। टीशा ने बताया, “कभी-कभी परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए हम कुछ मुर्गियां बेच लेते थे, लेकिन इससे लंबे समय तक काम नहीं चल सकता था।”

जल्द ही अपने आसपास के सभी लोगों की तरह ही ये दोनों भी रोजगार की तलाश करने लगीं। कुछ ही महीनों बाद उनकी मुलाकाल एक महिला से हुई।

टीशा याद करती हैं, “उस महिला ने हमारे ही गांव से होने की बात कही और कहा कि वह दिल्ली में काम करती है। उसने हमें दिल्ली में एक सरकारी अधिकारी के घर पर नौकर का काम दिलाने की बात कही।” महिला ने 10,000 रुपए की पगार, मुफ्त रहना-खाने की बात भी कही थी। तूफानों से टकरा कर थक चुकी इन बहनों के लिए ऐसी पेशकश मन्नत पूरी होने जैसी थी।

लेकिन जब वे 10 सितंबर, 2021 को दिल्ली पहुंची, तो उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। महिला ने उन्हें दिल्ली के शक्ति विहार में एक खरीदार के हाथों 5-5 लाख रुपए में बेच दिया।

सलीमा और टीशा बताती है कि उस महिला ने उन्हें धोखे से जबरन वेश्यावृत्ति के काम के लिए बेच दिया। टीशा व सलीमा जैसी युवा लड़कियां मानव तस्करों की आसान शिकार हैं। इन मानव तस्करों का नेटवर्क दक्षिण 24 परगना और उसके आसपास के क्षेत्रों में काफी मजबूत है, जहां लगातार आते चक्रवात के कारण गरीबी बढ़ रही है।

जिस वक्त इन मानव तस्करों ने टीशा और सलीमा को दिल्ली ले जाने का लालच दिया था, ठीक उसी समय सुंदरवन पुलिस जिले के बेलुनी गांव की दो अन्य बहनों हधीरा (18 साल) और रानिया (19 साल) को भी फंसाने के लिए इन मानव तस्करों ने जाल बिछाया था।

रैदिघी से 24 किमी दूर स्थित बेलुनी भी चक्रवात अम्फान और यास से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। रानिया कहती है,“हमारे पास जमीन नहीं है और हमारे परिवार में छह लोग हैं। मेरे माता-पिता हमारे परिवार का खर्च उठाने के लिए दिहाड़ी मजदूर का काम करते थे। अम्फान के बाद जब हम अपने घर फिर से बना रहे थे, तब वे नियमित रूप से काम पर भी नहीं जा पा रहे थे।” जिंदा रहने के लिए सरकारी राशन पर परिवार की निर्भरता लगातार आने वाले प्राकृतिक आपदाओं के साथ बढ़ती चली गई।

जिस महिला ने टीशा और सलीमा को फंसाया था, उसी ने हधीरा और रानिया से भी वही वादे किए। दोनों बहनें 1 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली पहुंचीं। वहां पहुंचने के बाद उस महिला ने उन दोनों को 4-4 लाख रुपए में एक वेश्यालय में बेच दिया।

इन सभी चार लड़कियों को दिल्ली पुलिस ने वेश्यालय से छुड़ाया और 23 अक्टूबर, 2021 को उनके गांव वापस भेज दिया गया। इस साल की शुरुआत में जब डाउन टू अर्थ उनसे उनके गांवों में मिला, तो इन बहनों ने आपदाओं और गरीबी के दुष्चक्र से बचने के लिए अन्य रास्ता तलाशना शुरू कर दिया था।

गरीब इलाके अधिक संवेदनशील

2017 में पीयर-रिव्यूड जर्नल एंटी-ट्रैफिकिंग रिव्यू में प्रकाशित हुआ अध्ययन कहता है, “मानव तस्करी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने वाले कारकों जैसे गरीबी, असमान विकास, संघर्ष और लैंगिक असमानता आदि पर अधिक ध्यान दिया गया है, लेकिन इनके कारणों पर बहुत कम बहस हुई है।”

गैर लाभकारी संगठन गोरनबोस ग्राम विकास केंद्र के संस्थापक-सचिव निहार रंजन रप्तान मानव तस्करी से निपटने के लिए दक्षिण 24 परगना इलाके में वहां के समुदायों के साथ मिलकर काम करते हैं।

निहार रंजन कहते हैं, “हर बार जब चक्रवात आता है, तटबंध टूट जाते हैं और खेत खारे पानी से भर जाते है। कभी-कभी, लवणता इतनी अधिक होती है कि जमीन को फिर से खेती योग्य होने में वर्षों लग जाते हैं।”

वह आगे बताते हैं, “इसके बाद, कुछ लोग अपनी मर्जी से काम की तलाश में बाहर चले जाते हैं, कुछ को शादी या नौकरी के झूठे वादे करके फुसलाया जाता है। हर आपदा के बाद बाल श्रम, बाल विवाह और बंधुआ मजदूरी के लिए तस्करी और जबरन वेश्यावृत्ति की घटनाएं बढ़ जाती हैं।”

पश्चिम बंगाल में दक्षिण 24 परगना के अलावा, उत्तरी 24 परगना, मुर्शिदाबाद, मेदिनीपुर, जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार के चाय बागान जैसे जिले मानव तस्करी के केंद्र के रूप में उभरे हैं। बाल कल्याण समिति, कोलकाता की अध्यक्ष महुआ सुर रे कहती हैं, “दक्षिण और उत्तरी 24 परगना व मेदिनीपुर में रहने वाले ज्यादातर लोग अपनी आजीविका के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं। बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का उन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।”

पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष अनन्या चक्रवर्ती का कहना है कि तस्करी और आपदाओं के बीच संबंध बार-बार सामने आए हैं। ऐसा पहला उदाहरण 1943 के बंगाल के अकाल के दौरान सामने आया था, जब कोलकाता का सोनागाछी क्षेत्र लड़कियों से भर गया और जल्द ही इसे रेड-लाइट एरिया के रूप में जाना जाने लगा।

चक्रवर्ती बताती हैं कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली मानव तस्करी को ऐतिहासिक रूप से कम रिपोर्ट किया गया है क्योंकि जब कोई आपदा आती है तो लोगों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता होती है। मानव तस्करी पर इसके बाद ही किसी का ध्यान जाता है।

आसान शिकार

दुनिया भर में इस बात को स्वीकार किया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन लगातार आपदाओं को बढ़ावा दे रहा है, जिससे गरीबी और विस्थापन हो रहा है और एक कमजोर आबादी समूह का निर्माण हो रहा है, जिसे तस्करी के लिए निशाना बनाया जाता है।

यह कोई संयोग नहीं है कि मानव तस्करी के हॉटस्पॉट भी ऐसे क्षेत्र हैं जो जलवायु प्रभावों की चपेट में हैं और सबसे गरीब हैं। यूएन इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन द्वारा हर दूसरे साल प्रकाशित “द वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022” रिपोर्ट बताती है कि ऐतिहासिक रूप से संघर्षों की तुलना में जलवायु-प्रेरित आपदाओं के कारण अब अधिक लोग विस्थापित हो रहे हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में वेश्यावृत्ति के लिए यौन शोषण (1,466), जबरन श्रम (1,452) और घरेलू दासता (846) के साथ मानव तस्करी के 1,714 मामले दर्ज किए गए थे। इस मामलों में 4,709 पीड़ित शामिल थे, जिनमें से 2,222 पीड़ित 18 साल से कम उम्र के थे। महाराष्ट्र और तेलंगाना में इसी वर्ष सबसे अधिक मानव तस्करी के मामले (दोनों में 184) दर्ज किए गए। इसके बाद आंध्र प्रदेश (171), केरल (166), झारखंड (140) और राजस्थान (128) का स्थान रहा।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर इनर एशियन स्टडीज की पूर्व प्रोफेसर और चेयरपर्सन मोंदिरा दत्ता, 2017 में यूरोपियन साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित एक पेपर में लिखती हैं, “आपदाएं सामाजिक संस्थानों को टूट की ओर ले जाती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और आपूर्ति कठिन हो जाती है। यह महिलाओं और बच्चों को अपहरण, यौन शोषण और तस्करी के प्रति संवेदनशील बना देती है।”

गैर-लाभकारी संस्था सेव द चिल्ड्रन में बाल संरक्षण के उप निदेशक प्रभात कुमार कहते हैं, “यह एक संगीन और संगठित अपराध है जो लोगों और राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र के अभाव में पनपता है।”

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर आपदा के दौरान मानव तस्करी 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। सतत विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र के 2030 एजेंडा के तहत मानव तस्करी को एक विकास चुनौती के रूप में पहचाना गया है, जिसे 2030 तक खत्म करना है।

दत्ता अपनी 2021 की पुस्तक “डिजास्टर एंड ह्यूमन ट्रैफिकिंग इंटरलिंक्स” में लिखती हैं, “मानव तस्करी दुनिया के शीर्ष तीन सबसे बड़े आपराधिक कृत्यों में से एक है। नशीले पदार्थों की तस्करी और जालसाजी अन्य दो सबसे बड़ी आपराधिक गतिविधियां हैं।”



एड एट एक्शन इंटरनेशनल में पलायन और शिक्षा के निदेशक उमी डेनियल इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि आदिवासी क्षेत्रों में खेती व्यक्तिगत उपभोग के लिए होती है, न कि बिक्री के लिए। मौसम तेजी से बदल रहा है और उनकी फसल खराब हो रही है। ये लोग अब बाहर निकलने को मजबूर हैं।

उन्होंने कहा, “भारत में हम देह व्यापार के लिए महिलाओं की तस्करी की बात को जानते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों से विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्र से मजदूरी के लिए तस्करी की जा रही है। कर्ज में डूबे इन लोगों की बिचौलियों द्वारा भर्ती की जाती हैं और फिर उन्हें बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर किया जाता है।”

भारत के मध्य भाग सूखे के साक्षी हैं। इन क्षेत्रों में भी मानव तस्करी की घटनाएं बढ़ रही हैं। महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र देश के सबसे अधिक सूखाग्रस्त क्षेत्रों में से एक है। पहले केवल भूमिहीन लोग ही इस क्षेत्र से पलायन करते थे। लेकिन अब जिनके पास 2.8 से 4 हेक्टेयर कृषि भूमि है, उन्हें भी आर्थिक विषमता का सामना करना पड़ रहा है।

वे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए गन्ना काटने का काम करते हैं। बीड जिले के एक गांव में 15 साल की अनु अपने माता-पिता के साथ रहती थी (पहचान छुपाने के लिए गांव का नाम नहीं दिया गया है)। वीमेन सुगरकेन कटर लेबर असोसिएशन एंड मकाम (महिला किसान अधिकार मंच) से जुड़ी मनीषा टोकले बीड जिले में गन्ना काटने वाले और महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

वह कहती हैं, “अनु के परिवार के पास कुछ जमीन थी, लेकिन उसके माता-पिता स्थानीय स्तर पर ही दूसरों के खेतों में गन्ना काटने का काम करते थे। इस कारण अनु को घर पर अकेले ही रहना पड़ता था। इस बीच अहमदनगर के एक लड़के से उसकी दोस्ती हुई। उसने झूठे वादे किए और अनु को गांव छोड़ने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद अनु को लड़के के परिवार वालों ने अहमदनगर में देह व्यापार के लिए बेच दिया। सामाजिक संस्थाओं और पुलिस के हस्तक्षेप के बाद ही अनु गांव आ सकी।

टोकले कहती हैं, “आजकल, मानव तस्कर उन माता-पिताओं को निशाना बनाते हैं, जिनकी बेटियां हैं। जैसे ही माता-पिता अपनी आर्थिक तंगी को लेकर उनसे बातचीत शुरू करते हैं, ये तस्कर उनकी बेटियों की शादी अपने किसी दूर के रिश्तेदार या दोस्त से कराने की पेशकश करते हैं। वे दूल्हे की ओर से कुछ पैसे दिलाने का भी वादा करते हैं। कभी-कभी 12 या 13 साल की लड़कियों की शादी 30 या 35 साल के पुरुषों से कर दी जाती है, जो उन्हें बड़े शहरों में सेक्स वर्क के लिए बेच देते हैं।”

अशोक तांगडे भी वीमेन सुगरकेन कटर लेबर असोसिएशन एंड मकाम के साथ काम करते हैं। वह कहते हैं, “मराठवाड़ा क्षेत्र में भी हर तीन साल में सूखा पड़ता है। इससे बेरोजगारी में वृद्धि होती है और नतीजतन इस क्षेत्र से विस्थापन बढ़ता है।”

उस्मानाबाद में महिला सशक्तिकरण पर काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था, प्राइड इंडिया के रमेश जोशी कहते हैं, “इसके साथ ही मानव तस्करी भी बढ़ी है।” गन्ना काटने वाले लोग अक्टूबर से मार्च के बीच प्रति दिन महज 200 रुपए कमाने के लिए पलायन करते हैं। वे अपने बच्चों को रिश्तेदारों के पास छोड़ देते हैं। जब वे लौटते हैं तो कभी-कभी पाते हैं कि उनकी बेटियों को दूसरे शहरों में तस्करों के हाथों बेचा जा चुका हैं।

लातूर जिले के महिला एवं बाल कल्याण विभाग की चेयरपर्सन वर्षा पाटिल ने डाउन टू अर्थ को बताया, “हम जिन मानव तस्करी से पीड़ितों के साथ बातचीत करते हैं, वे ज्यादातर गरीब परिवारों से आते हैं। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे मामले बढ़े हैं, लेकिन ऐसे पीड़ितों को बचाना हमेशा एक चुनौती होती है।”

लातूर के एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग विभाग ने अक्टूबर 2021 से काम करना शुरू किया, जब महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में मानव तस्करी विरोधी सेल की संख्या 12 से बढ़ाकर 45 कर दी। हालांकि, विभाग को तस्करों को ट्रैक करने में परेशानी होती है क्योंकि उनके काम करने के तौर-तरीके बदलते रहते हैं।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में महाराष्ट्र से 28,316 महिलाएं लापता हो गईं। 2017 में यह संख्या बढ़कर 29,279 और 2018 में 33,964 हो गई। 2019 में यह संख्या बढ़कर 38,506 हो गई, लेकिन 2020 में लॉकडाउन के दौरान यह संख्या गिरकर 32,283 हो गई।

समस्या और बढ़ेगी

बदलते हुए जलवायु से मानव तस्करी में और वृद्धि होगी। ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के अनुसार, “49 देशों में रहने वाले 325 मिलियन गरीब लोग 2030 तक प्राकृतिक खतरों और मौसम की चरम घटनाओं से प्रभावित हो सकते हैं।”

मियामी लॉ रिव्यू में प्रकाशित 2018 के एक पेपर में माइकल बी गेरार्ड, प्रोफेशनल प्रैक्टिस के एंड्रयू सैबिन प्रोफेसर और कोलंबिया लॉ स्कूल, यूएस में सैबिन सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज लॉ के निदेशक लिखते हैं, “विश्व स्तर पर कम से कम 21 मिलियन लोग मानव तस्करी के शिकार हैं। इसमें आमतौर पर या तो यौन शोषण या जबरन श्रम शामिल होता है। आने वाले दशकों में, जलवायु परिवर्तन से विस्थापित होने वाले और इस प्रकार अवैध व्यापार की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि होने की आशंका है।”

इससे पहले सितंबर 2021 में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि सब-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका में जलवायु परिवर्तन संबंधी घटनाओं के कारण 2050 तक 143 मिलियन लोग अपने देशों में विस्थापित होंगे।

मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का यह भी अनुमान है कि 2059 तक (2000-15 की अवधि की तुलना में), सूखे से अफ्रीका में 2.2 करोड़, दक्षिण अमेरिका में 1.2 करोड़ और एशिया में 1 करोड़ लोगों का विस्थापन हो सकता है।

यूएन हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज कहते हैं कि आपदाओं के बाद इस तरह के विस्थापित लोग “तस्करों के लिए आसान लक्ष्य” बन जाते हैं। दुनिया भर में मानव तस्करी और चरम मौसम की घटनाओं से इसका संबंध अब सामने आने लगा है।

इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, तस्करी की बढ़ती घटनाओं को पहली बार 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद देखा गया था। इंडोनेशिया में बच्चों का अपहरण किया गया। हैती में 2010 के भूकंप ने तस्करी के मामलों को बढ़ा दिया।

मध्य भारत की तरह अफ्रीकी देशों में भी सूखे के कारण नौ साल से कम उम्र के बच्चों के विवाह में वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए कि उनके माता-पिता के पास खाना खिलाने तक के पैसे नहीं हैं।

बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि बुशहर और मजांदरन में आए भूकंप और बाढ़ के बाद ईरान में जबरन कम उम्र में विवाह के प्रमाण मिले। आईयूसीएन के अध्ययन के अनुसार, फिजी में बाढ़ के कहर के बाद बच्चों को दिन में अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने और रात में यौन कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

सितंबर 2021 की हालिया रिपोर्ट में यूके स्थित गैर-लाभकारी संस्था इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट एंड एंटी-स्लेवरी इंटरनेशनल ने चेतावनी दी है कि अन्य देशों के साथ ही भारत में आधुनिक दासता और मानव तस्करी बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज में डूबकर बंधुआ मजदूरी, जल्दी/जबरन विवाह और मानव तस्करी के रूप में आधुनिक दासता बढ़ती जा रही है।

इसका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से जलवायु से जुड़ी आपदा और इससे संबंधित जबरन विस्थापन और पलायन से है। हालांकि, इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के रीजनल माइग्रेंट प्रोटेक्शन विशेषज्ञ पेप्पी किविनेमी-सिद्दीक चेतावनी देते हुए कहती है कि डेटा का अभाव है।

ऐसे में जलवायु परिवर्तन और मानव तस्करी के बीच का संबंध कितना मजबूत है, इसे समझने में हमें सावधानी बरतनी होगी। वह कहती हैं, “अगर तस्करी पर राज्य का मजबूत नियंत्रण है तो किसी आपदा के बाद मानव तस्करी की संभावना कम होगी। लेकिन अगर शुरुआती संरचना ही कमजोर है, तो और अधिक मानव तस्करी देखने की संभावना बनती है।”

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट (आईआईईडी) की शोधकर्ता रितु भारद्वाज ने रिपोर्ट जारी होने के दौरान कहा, “दुनिया जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले जबरन श्रम, आधुनिक दासता और मानव तस्करी को देखकर आंख बंद नहीं कर सकती। इसका हल निकालना ही होगा। हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक योजनाओं का हिस्सा बनने की जरूरत है।”

(पहचान छुपाने के लिए सभी पीड़ितों के नाम बदल दिए गए हैं)।

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