मानवीय कारणों से बढ़ रहा है दक्षिण पूर्व एशिया में सूखे का खतरा: अध्ययन

सूखे पर मानवजनित दबाव का प्रभाव पहले ही 20वीं शताब्दी के अंत में यहां की आंतरिक जलवायु में होने वाले बदलावों को पार कर चुका है।
Photo : Wikimedia Commons
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दक्षिण पूर्व एशियाई मानसूनी इलाका गर्म और नमी वाले उष्णकटिबंध में स्थित है। यहां दुनिया के लगभग 15 फीसदी उष्णकटिबंधीय जंगल हैं। यह पृथ्वी के कुल भूमि क्षेत्र का 3 फीसदी हिस्सा है यहां 8.5 फीसदी आबादी रहती है। यह दुनिया भर में जाने जानी वाली जैव विविधता के हॉटस्पॉट में से एक है।

एक नमी वाला क्षेत्र होने के नाते, इस क्षेत्र में सूखे की दर धीमी है इसे अक्सर अनदेखा और कम करके आंका जाता है। हालांकि यहां सूखे का खतरनाक प्रभाव हो सकता है, खासकर उन देशों पर जो गरीब और कम विकसित हैं लेकिन कृषि पर बहुत अधिक निर्भर हैं। लिहाजा, सूखे में होने वाले बदलावों और उनके तंत्र को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

बढ़ता शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि दर के साथ, पानी की कमी के मुद्दों ने पहले से ही दक्षिण पूर्व एशियाई मानसून के क्षेत्र में सतत विकास के लिए एक गंभीर चुनौती खड़ी की है। हालांकि, इस क्षेत्र में अत्यधिक सूखे की घटनाओं पर ग्रीन हाउस गैसों और एरोसोल जैसे मानवजनित दबाव का प्रभाव अभी भी स्पष्ट नहीं है।

अब चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक फिजिक्स (आईएपी) के वैज्ञानिकों ने दक्षिण पूर्व एशियाई मानसून क्षेत्र में सूखे में आए बदलावों और युग्मित मॉडल जो अंतर की तुलना करता है, को इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट चरण 6 (सीएमआईपी 6) कहते हैं। इस मॉडल का उपयोग करके वैज्ञानिकों ने मानवजनित दबावों से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में पता लगाया है।

उन्होंने दक्षिण पूर्व एशियाई मानसून क्षेत्र में लगातार और व्यापक रूप से फैले सूखे के कारण 1951 से 2018 तक बढ़ते सूखे के खतरों का खुलासा किया है। उन्होंने इसमें लोगों के प्रभाव का भी पता लगाया, जिसने ऐतिहासिक सिमुलेशन में वर्षा को कम करने और वाष्पीकरण को बढ़ाकर अत्यधिक सूखे की आशंका को बढ़ा दिया है। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

बार-बार अत्यधिक सूखे से प्रभावित क्षेत्र में मानवजनित प्रभाव के संकट का समय (टाइम ऑफ इमर्जेन्सी, टीओई) पहली बार 1960 के दशक के आसपास दिखाई दिया। भले ही 2030 के दशक में सीएमआईपी 6 के सबसे कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत सूखे का जोखिम कम होना शुरू हो जाएगा, लेकिन अनुमानित सूखे के खतरे के लिए केवल प्रकृति के कारण होने वाले बदलाव ही जिम्मेदार नहीं हैं।

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. लिक्सिया झांग ने कहा दक्षिण पूर्व एशिया में सूखे के खतरे पर मानवजनित दबाव का प्रभाव पहले ही 20वीं शताब्दी के अंत में यहां की आंतरिक जलवायु में होने वाले बदलावों को पार कर चुका है। दक्षिण पूर्व एशिया में सूखे के खतरों को कम करने के लिए मानवजनित एरोसोल और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए इस पर कदम उठाना जरूरी है।

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