हिमाचल: मॉनसून पूर्व बारिश न होने और गर्मी के कारण किसानों को 207 करोड़ का नुकसान

यह पहला मौका है, जब हिमाचल प्रदेश में मॉनसून पूर्व बारिश न होने और भीषण गर्मी के कारण किसानों को नुकसान हुआ है
सूखे के कारण हुए नुकसान का आकलन करते हिमाचल प्रदेश के कृषि अधिकारी। फोटो: रोहित पराशर
सूखे के कारण हुए नुकसान का आकलन करते हिमाचल प्रदेश के कृषि अधिकारी। फोटो: रोहित पराशर
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मॉनसून पूर्व बारिश न होने के कारण सूखे के चलते हिमाचल के किसान-बागवानों को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा है। यह पहला मौका है जब कृषि विभाग ने मॉनसून पूर्व सूखे के नुकसान का आकलन किया।

इस आकलन में किसानों के नुकसान का आंकड़ा 207 करोड़ रुपये तक का बताया गया है। सूखे का सबसे अधिक असर गेहूं में 121 करोड़ रुपए आंका गया। इसके बाद सब्जियों में 69 करोड़ के नुकसान का आकलन किया गया।

कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 4 लाख 13 हजार हैक्टेयर भूमि में गेहूं, जौ, चन्ना, दालें, आलू और सब्जियों की जोताई की गई थी। जिसमें से 86 हजार 556 हैक्टेयर जोत भूमि पर सूखे का असर देखा गया। इसमें से 33 हजार 449 हैक्टेयर जोत भूमि में 33 फीसदी से अधिक नुकसान आंका गया।

कृषि विभाग के अनुसार इस जोत भूमि से कुल 21,20,790 मीट्रिक टन अनाज व सब्जियों के उत्पादन का अनुमान लगाया गया था, जिसमें प्रदेश में केवल 1,29,092 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ है। इसके अलावा बागवानी विभाग ने सूखे की वजह से बागवानों को 30 करोड़ रुपए के नुकसान होने का दावा किया है।

कृषि विभाग के आंकलन के अनुसार सूखे का सबसे अधिक असर लहसुन और सब्जियों के लिए प्रसिद्ध सिरमौर जिले में देखा गया है। सिरमौर जिला में किसानों को 5 हजार हैैक्टेयर भूमि से 61 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा बिलासपुर में 34 लाख, चंबा में 15 करोड़, हमीरपुर में 54 करोड़, कांगड़ा में 17 करोड़, कुल्लू में 42 लाख, मंड़ी में 2 करोड़, शिमला में 37 करोड़, सोलन में 12 करोड़ और उना जिला में 3 करोड़ रुपए का किसानों को नुकसान पहुंचा है।

कृषि निदेशक डॉ एनके धीमान ने कहा कि इस बार लंबे समय से बारिश ने होने की वजह से फसलों के नुकसान के लिए जिलावार कमेटियों का गठन किया गया था। प्रदेश के 10 जिलों में सूखे के कारण 207 करोड़ के नुकसान का आकलन किया गया है। इसकी रिपोर्ट सरकार को भेज दी गई है।

हिमाचल प्रदेश में इस बार मार्च अप्रैल माह में रिकार्ड कम बारिश दर्ज की गई है जिसका असर कृषि क्षेत्र में देखा गया है। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला की ओर से दिए गए डाटा के अनुसार मार्च माह में 95 फीसदी कम बारिश हुई है।

वहीं तापमान ने पिछले कई सालों को रिकार्ड तोड़ते हुए मार्च में अधिकतम तापमान 38.7 डिग्री रहा। इसके अलावा अप्रैल माह में वर्ष 2004 के बाद सबसे कम 89 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई। पूरे अप्रैल माह में केवल 7.3 एमएम दर्ज की गई जिसकी वजह से प्रदेश में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

हिमाचल प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष संजय चौहान ने कहा कि सूखे की वजह से किसानों और बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे समय में सरकार को किसान-बागवानों के साथ खड़ा होना चाहिए और उन्हें मुआवजा जारी करना चाहिए।

सिरमौर जिला मे लहसुन की खेती करने वाले अर्जुन अत्री ने डॉउन टू अर्थ को बताया कि इस बार सूखा अधिक पड़ा है, जिसकी वजह से लहसुन की खेती पर बहुत बुरा असर देखने को मिला है। बारिश न होने और मौसम के गर्म होने की वजह से जमीन में नमी घट गई, जिसकी वजह से लहसुन अच्छा आकार नहीं ले पाया है और अब इसका असर मार्केट में कम पैदावार के साथ कम दामों के रूप में भी देखने को मिलेगा।

शिमला जिला के सेब बागवान रोहित शर्मा का कहना है कि इस बार सेब उत्पादकों पर दोहरी मार पड़ी है। एक तो सूखे को असर सेब पर पड़ा है और दूसरा मई माह में ओलावृष्टी की वजह भी बागवानों को नुकसान उठाना पड़ा है।

मौसम में आ रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए अब किसान-बागवानों को पर्यावरण हितैषी कृषि की ओर रूख करने का समय आ गया है ताकि भविष्य में मौसम की मार से किसान अपने आप को नुकसान से बचा सके।

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