असम में बाढ़ का आना कोई नई बात नहीं है। हर साल बाढ़ आती है। लोग बचाव करना जानते हैं। लेकिन इस बार समय से पहले अत्याधिक बारिश की वजह से असम के कई इलाकों में अप्रत्याशित स्थिति पैदा हो गई है। बारिश और बाढ़ से ज्यादा खतरनाक स्थिति भू-स्खलन से हुई है। असम के पड़ोसी राज्यों में लगातार बारिश की वजह से मैदानी इलाकों में बहुत पानी भर गया है है, लेकिन सबसे बुरी स्थिति डिमा हसाउ जिले की है।
असम का सबसे खूबसूरत जिला डिमा हसाउ मुख्यालय हाफलोंग तथाकथित विकास का खामियाजा भुगत रहा है। लगातार बारिश और भूस्खलन की वजह से यह सुंदर शहर तबाह हो चुका है। भूस्खलन की वजह से यह पहाड़ी शहर पूरी तरह अलग-थलग पड़ गया है। स्थति की भयवाहता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि न्यू हाफलोंग रेलवे स्टेशन पहाड़ के मलवे नीचे दबा है और माइबोंग में राष्ट्रीय मार्ग पर बनी सुरंग के अंदर भी पहाड़ का मलबा दबा हुआ है।
हाफलोंग में ऐसी तबाही कभी नहीं हुई थी। मोहल्ले के बीच से पानी ने अपना रास्ता बना लिया है। डिमा हसाउ जिले में कई स्थानों पर रेल पटरी पर मलबा गिरने या पटरी के नीचे की जमीन खिसकने से गुवाहाटी से मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम के साथ बराक घाटी का रेल संपर्क टूट गया है।
तबाही कितनी बड़ी है यह अंदाजा सिर्फ बाढ़ एवं भूस्खलन की तस्वीरों से ही लगाया जा सकता है। डिमा हसाउ के पहाड़ी इलाके में ट्रेन की बोगियां टूटकर बिखर रही हैं। दो-तीन दिन पहले तक न्यू हाफलोंग रेलवे प्लेटफॉर्म यात्रियों के कोलाहल से गूंज रहा था, लेकिन अब कीचड़ में धंस चुका है।
गत 15 मई से जिले का संपर्क राज्य के बाकी हिस्सों से कट गया है। राज्य सरकार हवाई मार्ग से हेलिकाप्टर के जरिए बुधवार से खाद्य, दवा व अन्य जरूरी सामग्री पहुंचाने तैयारियां कर रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता होलीराम तेरांग बताते हैं कि डिमा हसाउ जिला कथित विकास का परिणाम झेल रहा है। बारिश पहले भी होती रही है, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ था। इस जिले के पहाड़ मिट्टी के बने हैं। उन्हें बेहरमी से काटा गया। अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ों को काटने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। बराक घाटी, मिजोरम, त्रिपुरा और मणिपुर तक राह बनाने के लिए डिमा हसाउ जिले में पहाड़ों को काटा गया। विकास योजनाओं के नाम पर पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए गए। उसी का परिणाम है यह जलजला। सिर्फ हाफलोंग जिले में पांच लोगों की मौत भूस्खलन के कारण हो चुकी है। आबादी वाले इलाके में पहाड़ के मलबे गिर रहे हैं।
दरअसल सोराष्ट्र से सिलचर को जोड़ने वाले ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर डिमा हसाउ जिले से गुजरता है। पहाड़ों को काटकर चौड़ सड़क बनाई गई, बिना यह सोचे की मिट्टी के पहाड़ कितना दर्द झेल सकते हैं। उसी तरह लामडिंग-बदरपुर रेल मार्ग को ब्राडगेज में बदलने के लिए पहाड़ों को खोदकर नए रास्ते निकाले गए। लेकिन इसके पहले मिट्टी की संरचना और प्रतिरोध क्षमता का मूल्यांकन नहीं किया गया। जब से निमार्ण कार्य आरंभ हुआ, तभी से भूस्खलन की परेशानी का सामना करना पड़ा। अक्सर इस मार्ग पर भूस्खलन के कारण रेला सेवा प्रखावित होती रही है।
लेकिन पहली बार सड़क मार्ग भी अवरुद्ध हो गया। इस कारण रास्ते में फंसी दो यात्री रेलगाड़ियों के करीब 2200 रेलयात्री बीच में फंसे गए। 119 बीमार और वृद्ध रेलयात्रियों को हेलीकाप्टर की मदद से सिलचर पहुंचाया गया। शेष रेलयात्रियों को बचाव रेलगाड़ी तक पहुंचने के लिए कई किमी मीटर पैदल चलकर क्षतिग्रस्त पुल के ऊपर से गुजरना पड़ा। 35 रेल कर्मचारियें को भी हेलिकाप्टर के माध्यम से निकाला गया।
असम के मुख्य सचिव जिष्णा बरुवा मानते हैं कि हाफलोंग में आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई है। राहत और बचाव कार्य के लिए वहां पहुंचने के सारे रास्ते बंद है। ऐसे में लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए वायु सेना को सर्तक कर दिया गया है। उनकी पहली प्राथमिकता लोगों तक मदद पहुंचाने की है।
वरिष्ट पत्रकार और पर्यावरणविद् सुशांत तालुकदार का मानना है कि असम में बाढ़ और कटाव कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन जिस पैमाने पर डिम हसाउ में भूस्खलन हुआ है, वही चिंता की बात है। विकास के नाम पर पहाड़ों के मिजाज के खिलाफ उनके साथ छेड़छाड़ हुआ है। अवैज्ञानिक तरीके से विकास का परिणाम यह जिला भुगत रहा है। रेलवे में जमीन की संरचना किए बिना निर्माण किया। राजमार्ग बनाने के लिए सुरक्षा इंतजाम के बारे में नहीं सोचा गया। वे मानते हैं कि यह तो आरंभ है। यदि पूरे निर्माण कार्यों के समीक्षा किए बिना तथाकथित विकास जारी रहा तो आने वाले दिनों में परिणाम और भी अधिक भयावह होंगे।