डाउन टू अर्थ खास: भूमि कटाव, आधी आबादी के लिए बना आफत

पिछले दशक से गली इरोजन की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। गली इरोजन के मामले में नाइजीरिया और इथियोपिया दुनिया में पहले व दूसरे नंबर पर हैं
दुनिया के कुल क्षेत्रफल का लगभग 20 से 40 फीसदी हिस्सा भूमि के क्षरण से प्रभावित है, इस प्रकार की भूमि में खेतिहर भूमि, शुष्क भूमि, आर्द्र भूमि, जंगल और घास के मैदान आदि प्रभावित हो रहे हैं
दुनिया के कुल क्षेत्रफल का लगभग 20 से 40 फीसदी हिस्सा भूमि के क्षरण से प्रभावित है, इस प्रकार की भूमि में खेतिहर भूमि, शुष्क भूमि, आर्द्र भूमि, जंगल और घास के मैदान आदि प्रभावित हो रहे हैं - सभी फोटो: आईस्टॉक
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गली इरोजन (भारी बारिश दौरान मिट्टी के कणों का एक संकरी नाली में बह जाने की प्रक्रिया है) को बरसों से जमीन के सबसे गंभीर क्षरण के तौर पर जाना जाता रहा है। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के अनुसार दुनिया के कुल क्षेत्रफल का तकरीबन 20 से 40 प्रतिशत हिस्सा भूमि के क्षरण से प्रभावित है। ये खेतिहर भूमि, शुष्क भूमि, आर्द्र भूमि, जंगल और घास के मैदानों से जुड़ी संसार की लगभग आधी आबादी को प्रभावित करेगी।

यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर में भूगोल विभाग के शोधकर्ता अनिंद्य माझी की अगुवाई में 2025 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक वैज्ञानिक रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक भूमि क्षरण पर संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे को हासिल करने के लिए भारत को 77 जिलों (जिनमें से 70 प्रतिशत पूर्वी और दक्षिण भारत में हैं) में गली इरोजन रोकने पर काम करना होगा। 2025 की इस रिपोर्ट के मुताबिक “भारत के भूमि क्षरण उन्मूलन मिशन में गली इरोजन एक गंभीर बाधा है।”

अनिंद्य माझी का विचार है कि गली इरोजन के ज्यादातर मामलों के पीछे भूमि के उपयोग में आमूलचूल बदलाव ही कारण होता है। इस सिलसिले में माझी नाइजीरिया और अर्जेंटीना का उदाहरण देते हैं। माझी द्वारा किए गए शोध के अनुसार नाइजीरिया में गली इरोजन के 90 प्रतिशत मामलों के पीछे जंगलों की कटाई या सड़कों का निर्माण है। भूमि के बाहरी आवरण या जमीन के उपयोग से जुड़े क्रियाकलापों ने भूमि के अपवाह (सतही और सतह के नीचे दोनों) को बढ़ावा दिया, जिसके चलते नाइजीरिया में खतरनाक रूप से गली इरोजन सामने आया। गली इरोजन का मानव समाज पर होने वाला सीधा असर चट्टान खिसकने या भू-धंसान के समान ही होता है।

नगरों में गली इरोजन से शहरी बुनियादी ढांचे और इमारतों को नुकसान पहुंचता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ये बड़ी आसानी से समुदायों को अलग-थलग कर सकता है। माझी बताते हैं कि नाइजीरिया पिछले कई सालों से गली इरोजन की मार झेलता आ रहा है।

कैटेना जर्नल में 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन से गली इरोजन के पीछे मुख्य कारक के रूप में बारिश के प्रभाव से जुड़ी बहस सामने आई। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ अफ्रीका के रेयान एंडरसन का विचार है, “नाले बेहद जटिल बनावट होते हैं। यह जलवायु परिवर्तन के खतरे को और विकराल बना देते हैं। उदाहरण के तौर पर बारिश के रुझानों में बदलाव से लंबी अवधि तक चलने वाले सूखे के दौर के साथ-साथ पहले से ज्यादा सघन आंधी-तूफान देखने को मिल सकते हैं। धरती पर वनस्पति के घटते आवरण के बीच सतह पर पानी के प्रवाह से गली इरोजन और बढ़ जाता है।”

जियोएनवायरमेंटल डिजास्टर्स में 2020 में प्रकाशित लेख के लेखक गेटाहन हासेन स्पष्ट रूप से कहते हैं, “गली इरोजन के प्रमुख वाहकों में जनसंख्या की ऊंची वृद्धि दर, खराब सतही भूमि, कमजोर वनस्पति आवरण, अत्यधिक चराई, कम अवधि की और बेहद सघन बरसात, भूमि का अनुचित उपयोग (तीव्र ढलानों पर खेती), सिंचाई की अनुपयुक्त संरचना, नहरों में पानी को गलत तरीके से छोड़ा जाना और भूमि की विशेषताएं शामिल है।”

कृषि को नुकसान

अनेक शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि गली इरोजन से कृषि में नुकसान हो सकता है जिससे खाद्य उत्पादन में बाधा खड़ी हो सकती है। 2023 में इंटरनेशनल सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशन रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन से पता चला कि निश्चित रूप से गली इरोजन से मिट्टी की मोटाई घट जाती है। उत्तर पूर्वी चीन में किए गए अध्ययन के अनुसार खराब भूमि (डिग्रेडेड) में गली इरोजन सबसे आम है। इसके बाद शुष्क खेतिहर जमीनों और जंगलों में ये समस्या दिखाई देती है।

अपने 2020 के लेख में हासेन आगे लिखते हैं कि गली इरोजन कृषि भूमि, कृषि उत्पादकता या फसलों की उपज और चारागाहों को घटा देता है। इथियोपिया में गली इरोजन का विश्लेषण करने वाले शोध के मुताबिक, उच्चभूमि क्षेत्र में ऊपरी मिट्टी का नुकसान तकरीबन 1.5 अरब टन है। लेख में बताया गया है कि मिट्टी की इतनी मात्रा से इथियोपिया में तकरीबन 15 लाख टन अनाज पैदा हो सकता था। इस शोध में हवाई चित्रों (1965 और 1972) और 2006 में उपग्रहों द्वारा ली गई तस्वीरों के माध्यम से लगभग 12 गली (जी1 से जी12) की पहचान की गई है। ये नाले इथियोपिया के कोरोमो डेंशे सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र और टाबोटा कोरोमो सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र में स्थित हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि गली इरोजन में प्रति वर्ष 10 मीटर की बढ़ोतरी विनाशकारी है। दोनों जलग्रहण क्षेत्रों में गली इरोजन की लंबाई में प्रति वर्ष औसतन 21 मीटर का इजाफा हुआ जो खतरे का संकेत है। 2012 में मिट्टी के क्षरण की जमीनी माप तकरीबन 10 लाख घनमीटर थी, जो बहुत ज्यादा है और खाद्य फसलों का नुकसान दर्शाता है। माझी का मानना है कि एक बार जब किसी निश्चित स्थान पर गली इरोजन शुरू हो जाता है तो इसके नतीजतन मिट्टी के हटने की रफ्तार मिट्टी के निर्माण की दर से कहीं ज्यादा होती है। नतीजतन धीरे-धीरे मिट्टी की गुणवत्ता खराब होने लगती है। गली इरोजन से पहाड़ी ढलानों में मिट्टी और भूमिगत जल की निकासी बढ़ जाती है जो मिट्टी के निर्जलीकरण का भी कारण बन जाती है, जिससे कृषि उत्पादकता पर और बुरा असर पड़ता है। स्थलीय आकृतियों के विखंडन का कारण बनने वाले ये नाले कृषि गतिविधियों को भौतिक रूप से भी बाधित कर सकते हैं।

माझी आगे कहते हैं, “किंशासा (कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य) में शहरी नालों का वहां के निवासियों पर विनाशकारी प्रभाव हुआ है। नालों के स्थायी कटाव के चलते ग्रामीण इथियोपिया में खेतिहर जमीनों के नुकसान के अलावा मवेशियों की मौत और मानव जीवन का भी नुकसान हुआ है। उधर खराब भूमियों (बैड लैंड) के विस्तार के चलते भारत के कई गांवों पूरी तरह से खाली हो गए हैं।” माझी के अनुसार लंबे समय तक गली इरोजन से बेहद आड़ी-तिरछी स्थलाकृतियां सामने आने लगती हैं, जिन्हें “डिग्रेडेड भूमि” के तौर पर जाना जाता है। 2025 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऐसी बंजर भूमि का कृषि उत्पादकता, जल दबाव और सूखे पर असर होता है जिसके चलते गांव से सभी लोग पलायन कर जाते हैं। शोधकर्ताओं का मत है कि भारत की बंजर भूमियों का नक्शा तैयार किए जाने का विचार इसी संकट की वजह से सामने आया। हालांकि फिलहाल नाले की प्रणाली को समझने पर काम किया जा रहा है क्योंकि भूमि के क्षरण पर इसका बेहद दूरगामी प्रभाव होता है।

पश्चिमी भारत में बंजर जमीनों की अधिकता है जबकि पूर्वी भारत में नाले वाली आकृतियां ज्यादा स्थित हैं। अध्ययन में कहा गया है, “कुल मिलाकर हमारा लक्ष्य भारत में गली इरोजन की पहली विस्तृत स्थानिक सूची तैयार करना है। इसके लिए बेहद ऊंचे रेजॉल्यूशन (≤1 एम) वाले उपग्रह चित्रों का उपयोग करके अभूतपूर्व तरीके से गली इरोजन से जुड़े कारकों के स्थानों, उनके विस्तार और प्रबंधन शर्तों के मानचित्र तैयार किए जाएंगे। आगे चलकर हम इन्हीं आंकड़ों से नालों के प्रबंधन की मौजूदा स्थिति का मूल्यांकन करने वाले हैं। इसके तहत दो शीर्ष उप-राष्ट्रीय प्रशासनिक स्तरों यानी राज्यों और जिलों में नालों के कुल जमीनी क्षेत्रफल का आकलन किया जाएगा। अपने निष्कर्षों का उपयोग करके हम उन प्रदेशों की पहचान करने वाले हैं जिनमें नालों के कटाव से निपटने के लिए पुनर्वास से जुड़े हस्तक्षेप की आवश्यकता है। आखिरकार इस प्रकार हम भारत में राष्ट्रीय भूमि क्षरण तटस्थता (एलडीएन) अभियान के संदर्भ में गली इरोजन की समस्या के उपयुक्त प्रबंधन के लिए प्रासंगिक नीतियां तैयार कर सकेंगे या उनमें जरूरी बदलाव कर पाएंगे।”

नेचर (2025) पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के शोधकर्ता अनिंद्य माझी कहते हैं, “इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि भारत की खराब भूमि गली इरोजन की सबसे बदतर तस्वीर प्रस्तुत करती है, हमने पाया कि मध्य और पश्चिमी भारत की बंजर भूमियों की तुलना में पूर्वी भारत में गली इरोजन भारत की भूमि क्षरण तटस्थता के लिए ज्यादा गंभीर बाधा पेश करता है। हालांकि, ये देखते हुए कि बंजर भूमि सुधारने की अनुपयुक्त कोशिशों का पर्यावरण, पारिस्थितिकी और सामाजिक-आर्थिक मोर्चों पर अक्सर नुकसानदेह प्रभाव पड़ा है, बंजर भूमि की अधिकता वाले इलाकों में खराब भूमि में सुधार और उन्हें दोबारा उपजाऊ बनाने के लिए उपयुक्त नीतियां बनाना जाना भी जरूरी है।”

2030 तक भूमि क्षरण का लक्ष्य हासिल करने के लिए  भारत के 77 जिलों में गली इरोजन को रोकने के लिए वृहद स्तर पर काम करना होगा
2030 तक भूमि क्षरण का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत के 77 जिलों में गली इरोजन को रोकने के लिए वृहद स्तर पर काम करना होगा

रिपोर्ट बताती है कि गली इरोजन की वजह से हुए भूमि क्षरण को पलटना बेहद चुनौतीपूर्ण है। शोधकर्ताओं ने गली इरोजन से जुड़े उच्च और शीर्ष प्रबंधन वरीयता वाले 77 जिलों की पहचान की है। रिपोर्ट बताती है कि नाले का सबसे अधिक कटाव झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य में होता है। इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान का नंबर आता है। लेख इस बात की पुष्टि करता है कि भारत में गली इरोजन से जुड़े खतरे की स्थानिक विषमता इस तथ्य से सबसे बेहतर रूप से रेखांकित होती है कि पूर्वी भारत में झारखंड इकलौता राज्य है जहां आगे चलकर गली इरोजन के प्रबंधन को लेकर सबसे ज्यादा प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है।

इथियोपिया की तरह ही सब सहारा में स्थित दक्षिण पूर्वी नाइजीरिया में भी गली इरोजन के मामले दिखाई देते हैं। कम तरलता सीमा (लो लिक्विड लिमिट) की खासियत के साथ निम्न-गतिविधि वाली चिकनी मिट्टी (लो एक्टिविटी क्ले) इस क्षेत्र की विशेषता है।

नाइजीरिया की पैन अफ्रीकन यूनिवर्सिटी ऑफ लाइफ एंड अर्थ साइंसेज इंस्टीट्यूट के पर्यावरण प्रबंधन विभाग की अगुवाई में 2023 में किए गए अध्ययन के अनुसार यहां की मिट्टी में बिना उधड़े पानी सोखने की क्षमता बेहद कम होती है। यहां भूमि के उपयोग में बार-बार बदलाव होते रहते हैं जिसके नतीजतन ज्यादातर मामलों में मिट्टी पर बाढ़ की मार पड़ती है। गली इरोजन के अन्य कारणों में रेत का खनन और सतह पर जल निकासी की कमजोर व्यवस्था शामिल है। अध्ययन के अनुसार, “शहरी क्षेत्रों का ठोस कचरा नाले और जल निकास नालियों में चला आता है जिससे नालियां बाधित हो जाती हैं। बाढ़ का पानी मिलने पर ये नाले की दीवारों से टकराने वाले “स्पंज” की तरह काम करने लगता है जिससे और विनाशकारी कटाव पैदा होता है।” अध्ययन के अनुसार दक्षिणी नाइजीरिया में स्थित अनाम्ब्रा में तकरीबन 37.1 प्रतिशत क्षेत्र में नाले का जबरदस्त कटाव हो रहा है। यहां ऊंचाई वाले इलाकों में प्रति वर्ष 10 टन प्रति हेक्टेयर मिट्टी का नुकसान हो रहा है।

आगे की राह

माझी के अनुसार भारत को भूमि प्रबंधन की एक ऐसी नीति की आवश्यकता है जो बैड लैंड और कटाव से बने नालों और समाज के साथ-साथ पर्यावरण पर उनके प्रभावों में स्पष्ट रूप से अंतर करती हो। शोधकर्ताओं का दृढ़ मत है कि स्थानिक सूची और उनके द्वारा तैयार की गई जिला स्तर पर गली इरोजन के मानचित्र नाले वाली जमीनों के प्रबंधन में उपयोगी रहेंगे। माझी का कहना है कि भविष्य में नाले के संभावित निर्माण वाले क्षेत्रों के बारे में सटीकता से भविष्यवाणी करना असंभव न सही लेकिन बेहद मुश्किल है। लिहाजा पूर्व सक्रियता से या रोकथाम करने के लिए प्रबंधन से जुड़े हस्तक्षेपों की बेहद कम या कोई गुंजाइश नहीं है।

शोधकर्ता ने गली इरोजन के निर्माण के बाद प्रतिक्रियात्मक भूमि प्रबंधन अभ्यासों का प्रस्ताव किया है, जिनमें वनस्पति आवरण की स्थापना, मिट्टी और जल संरक्षण उपायों (जैसे चेक डैम) को अमल में लाना, गली इरोजन की भराई, अपवाह को कमजोर करना और उनका रुख मोड़ना शामिल है। हालांकि, वह जोर देकर कहते हैं कि किसी भी प्रबंधन हस्तक्षेप की उपयुक्तता अपवाह की स्थानीय विशेषताओं और नाले की आधारभूत स्थिरता पर निर्भर करती है।

एंडरसन का कहना है, “गैबियन (पत्थरों से बनी संरचना) जैसी संरचनाओं के माध्यम से मिट्टी के कटाव को रोकना इस दिशा में एक बड़ी जीत साबित होगी। इससे एक नई आर्द्र भूमि के निर्माण में सहायता मिलेगी। इससे डिग्रेडेड भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने में मदद मिलेगी, साथ ही वनस्पतियों के उगने के लिए नई सामग्री हासिल होगी जो गली इरोजन को भी स्थिर बनाने में भी मददगार साबित होगी।”

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