यूरोप पर टूटा बाढ़ का कहर, अब तक 120 लोगों की मौत की पुष्टि

पश्चिमी जर्मनी और बेल्जियम में आई इस बाढ़ में अब तक 120 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है जबकि करीब 1,300 लोग लापता हैं
यूरोप पर टूटा बाढ़ का कहर, अब तक 120 लोगों की मौत की पुष्टि
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पश्चिमी जर्मनी और बेल्जियम के कुछ हिस्सों में आई विनाशकारी बाढ़ में अब तक कम से कम 120 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है। अधिकारियों के अनुसार, बचाव अभियान जारी है और यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। यही नहीं जर्मनी में करीब 1,300 लोग इस बाढ़ के कारण लापता हैं जबकि हजारों बेघर हो चुके हैं। जर्मनी में बचाव कार्यों के लिए सेना की मदद ली जा रही है।

जर्मनी के राइनलैंड-पैलेटिनेट राज्य में सबसे ज्यादा 60 लोगों  के मौत की खबरें सामने आई हैं।  वहीं मीडिया में छपी खबरों से पता चला है कि बेल्जियम में मरने वालों की संख्या बढ़कर 23 पर पहुंच गई है, जबकि पांच लोग अभी भी लापता हैं। यही नहीं नीदरलैंड पर भी बाढ़ का व्यापक असर पड़ा है। बाढ़ का सबसे ज्यादा असर जर्मनी के उत्तरी राइन-वेस्टफेलिया और राइनलैंड-पैलेटिनेट राज्यों पर पड़ा है, जहां बड़ी संख्या में लोग अभी भी लापता हैं।

विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी यूरोप के कुछ हिस्सों में पिछले दो दिनों (14 और 15 जुलाई) में इतनी बारिश हुई है, जितनी आमतौर पर दो महीनों में होती है। जानकारी मिली है कि बेल्जियम, नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग और जर्मनी के सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में तीव्र बारिश के कारण एक मीटर की गहराई तक मिट्टी पूरी तरह संतृप्त हो चुकी है।

राइनलैंड-पैलेटिनेट राज्य की प्रेसिडेंट मालू ड्रेयर ने इस बाढ़ के बारे में बताया कि यह एक तबाही है।  यहां कई लोगों की जान चली गई है कई लापता हैं और कई लोगों की जान अभी भी खतरे में है। इस क्षेत्र में जहां व्यापक बाढ़ आई है वहां मकान ढह गए हैं। 

जर्मन राष्ट्रीय मौसम विज्ञान सेवा, डीडब्ल्यूडी के अनुसार, 14 से 15 जुलाई के बीच पिछले 24 घंटों में लगभग 100 से 150 मिमी बारिश हुई थी। राइनबैक-टोडेनफेल्ड (नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया) के मौसम केंद्र में तो 158 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। इसके बाद कोलोन-स्टैमहैम (नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया) में 154 मिमी, क्लेन-अल्टेनडॉर्फ (राइनलैंड-पैलेटिनेट) में 147 मिमी और काल-सिस्टिग (नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया) में 145 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।

बाढ़ से प्रभावित देशों में, राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान सेवाओं ने खतरे को देखते हुए वहां रेड अलर्ट सहित कई चेतावनियां जारी की हैं। अनुमान है कि ऐसा मौसम की निम्न दाब प्रणाली के कारण हो रहा है जो जर्मनी के ऊपर स्थापित हो गई है। आमतौर पर यह अस्थिर, बैरोक्लिनिक प्रणाली सीमित क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ती है, जिससे भारी बारिश होती है।

यही नहीं इसके कारण लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और उत्तर-पूर्वी फ्रांस के कुछ हिस्से भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। गौरतलब है कि इससे पहले 12 जुलाई को अचानक आई बाढ़ ने लंदन के परिवहन नेटवर्क को पूरी तरह ठप्प कर दिया था, क्योंकि इस घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्र में बहुत कम समय में ही लगभग 70 मिमी बारिश हुई थी।

क्या यूरोप में आई इस त्रासदी के लिए जलवायु परिवर्तन है जिम्मेवार

जहां एक तरफ मध्य यूरोप घातक बाढ़ का सामना कर रहा है वहीं उत्तरी यूरोप में हीटवेव का कहर जारी है। एफएमआई के अनुसार इस बार फिनलैंड में अब तक का सबसे गर्म जून रिकॉर्ड किया गया है और गर्मी का कहर जुलाई तक बढ़ गया है।

कौवोला अंजाला जोकि दक्षिणी फिनलैंड में स्थित है वहां लगातार 27 दिनों तक तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया है। 1961 के बाद से फिनलैंड में यह लू की सबसे लम्बी घटना है। फ़िनलैंड मेट्रोलॉजिकल सर्विसेस के अनुसार, बाल्टिक सागर में फ़िनलैंड की खाड़ी में रिकॉर्ड गर्मी दर्ज की गई है, 14 जुलाई को वहां तापमान 26.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे ज्यादा है। 

कई वैज्ञानिक इसके लिए जलवायु परिवर्तन को भी जिम्मेवार मान रहे हैं। यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी के अनुसार भी आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण यूरोप पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। आईपीसीसी द्वारा ग्लोबल वार्मिंग और 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान को लेकर जारी विशेष रिपोर्ट में भी इस बात को स्पष्ट किया गया है कि जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उससे हमारी जलवायु प्रणाली में बदलाव सामने आ रहे हैं।

तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही मौसम की कई चरम घटनाएं सामने आई थी।  जिस तरह से समुद्र और जमीन दोनों के तापमान में वृद्धि हो रही है उसके कारण लू की घटनाएं सामने आ रही हैं। वहीं इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारी बारिश की घटनाओं में वृद्धि हुई है। साथ ही उनकी तीव्रता भी पहले के मुकाबले बढ़ गई है। 

हालांकि क्या जर्मनी और बेल्जियम में आई बाढ़ जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है अब तक इस बात की पूरी तरह पुष्टि नहीं हो पाई है। पर यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन का कहना है कि जर्मन बाढ़ जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता को दर्शाती है। उन्होंने संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि इस घटना की तीव्रता और अवधि के बारे में विज्ञान हमें बताता है कि यह जलवायु परिवर्तन का एक स्पष्ट संकेत है, ऐसे में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है।

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