आपदा में अवसर: कोसी के बाढ़ग्रस्त इलाकों में ऐसे बढ़ रही है आमदनी

साल भर बाढ़ का पानी खेतों में खड़ा रहता है, इसलिए लोगों ने गेहूं-धान की खेती छोड़ कर मखाने की खेती शुरू कर दी है
बिहार के सुपौल जिला का लक्ष्मीनिया पंचायत में मखाने का खेती। फोटो: राहुल कुमार गौरव
बिहार के सुपौल जिला का लक्ष्मीनिया पंचायत में मखाने का खेती। फोटो: राहुल कुमार गौरव
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"मेरे पास एक ही जगह 3 बीघा खेत की जमीन है। जो रोड से 8-10 मीटर ज्यादा गहराई पर है। 2021 से पहले धान के सीजन में धान और गेहूं के सीजन में गेहूं और मूंग की खेती करता था, लेकिन बारिश होते ही सब बर्बाद हो जाता था। फिर गांव के ही किसान सलाहकार बेचन मंडल ने मखाना की  खेती पर मिल रहे अनुदान के बारे में बताया। मुझे यह बात समझ में आ गई और अपने खेत के अलावा बगल वाले 4 बीघा खेत को 7200 रुपए प्रति बीघा की दर से बटिया पर ले लिया। पिछले साल मार्च महीने से मखाने की खेती शुरू कर दी। 2021 में 8 बीघा खेत से लगभग 3 लाख रुपए की शुद्ध आय हुई। अभी अनुदान के लिए आवेदन किया है, अनुदान मिलने से आमदनी और बढ़ जाएगी।" बिहार के सुपौल जिला के बभनी गांव के पंकज मिश्रा बताते है।
बभनी गांव कोसी से सटा हुआ है, जहां अकसर बाढ़ के कारण लोगों को खेती का नुकसान हो जाता है। लेकिन अब यही बाढ़ का पानी उनके लिए आमदनी का जरिया बन गया है। पंकज की तरह कई किसान कोसी के बाढ़ग्रस्त इलाकों में मखाने की खेती पर ध्यान दे रहे हैं।
ऐसे ही कोसी से सटे सहरसा जिले में मखाने की खेती का रकबा बढ़ रहा है। यहां के जिला उद्यान विभाग में कार्यरत संजीव कुमार झा बताते हैं कि इस वर्ष जिले में 90 हेक्टेयर से भी अधिक में मखाना की खेती हो रही है। वहीं पहले 30-35 हेक्टेयर में मखाना की खेती होती थी।
संजीव बताते हैं कि कोसी नदी के आसपास का क्षेत्र मखाना के लिए बहुत ही उपयुक्त है। यही वजह है कि सरकार ने मखाना विकास योजना शुरू की है, जिसके तहत किसानों को अनुदान दिया जाता है। प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के जरिए एक जिला एक उत्पाद के तहत सहरसा को मखाना के लिए चयनित किया गया है। किसानों को इसका फायदा भी मिल रहा है। 
सहरसा के बनगांव गांव के भरत खां इस बार 23 कट्ठे खेत में मखाने की खेती कर रहे हैं। भरत खां बताते हैं कि, "एक हेक्टेयर मखाने की खेती करने में कम से कम एक से डेढ़ लाख रुपया खर्च होता है। इतना रुपया गरीब किसान कहां से ला पाएगा। इसलिए पहले सिर्फ बड़े किसान मखाना की खेती करते थे। तालाब के अलावा कम से कम डेढ़ से दो फुट पानी वाले खेत में भी मखाने की खेती हो सकती है। छोटे किसान तालाब के बजाय खेत को खोदकर मखाने की खेती कर रहे हैं।" 
सुपौल जिले के लक्ष्मीनिया गांव भी चारों ओर कोसी नदी से घिरा हुआ है। हर साल नदी के बाढ़ का पानी इस गांव के खेतों तक पहुंच जाता है। इसलिए किसानों ने गेहूं धान छाेड़ कर इस बार मखाने के साथ-साथ मछली पालन शुरू कर दिया है। गांव के मुखिया रोशन झा बताते हैं कि कोसी क्षेत्र के विभिन्न गांवों के दर्जनों किसान मखाना की खेती कर अपनी तस्वीर बदल रहे हैं।
बीना बभनगामा गांव के सुंदरपुर टोला के संजित मंडल तालाब पद्धति से मखाना व मछली पालन एक साथ कर रहे हैं। सहरसा जिले के किसान सलाहकार संघ के उपाध्यक्ष कुमार गणेश बताते हैं कि मछली पालन को लेकर सरकार की सब्सिडी योजना का फायदा किसानों को मिल रहा है। मछली पालन के लिए नए तालाब के निर्माण में 90 प्रतिशत तक सब्सिडी दिया जा रहा है। मछली को बाजार तक पहुंचाने के लिए गाड़ी और आइस बॉक्स खरीदने पर भी सब्सिडी का प्रावधान है।
भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के प्रिंसिपल डॉ परसनाथ कहते हैं कि कोसी हमारे लिए वरदान है। कोसी की वजह से 10 से 15 फीट पर पानी मिल जाता है। इसी वजह से यहां मक्का और मखाने की खेती होती है। सिर्फ पूर्णिया जिले में 6,000 हेक्टेयर में मखाना की खेती होती है और उत्पादन 5280 टन। वहीं कटिहार जिले में 5000 हेक्टेयर में मखाना और 70,000 हेक्टेयर में मक्के की खेती होती है‌। पूर्णिया अररिया, किशनगंज और कटिहार जिले से लगभग 20 लाख टन मक्का दूसरे प्रांतों या विदेश में भेजे जाते हैं।

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