उड़ीसा हर वर्ष कम से कम दो विपदाएं झेलता है। यह एक ऐसा राज्य बन गया है जो बाढ़, तूफान और सूखे की मार लगातार झेल रहा है। अब बेहद ही ताकतवर चक्रवात फोनी तीन मई को उड़ीसा से टकरा सकता है। यह 1999 में आए राज्य के अबतक के सबसे ताकतवर चक्रवात की यादें ताजा कर सकता है, जिसमें 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
राज्य के पास इस चक्रवात से निपटने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। वहीं, सूबे में 29 अप्रैल को ही आम चुनाव और राज्य के चुनाव समाप्त होते ही पूरी मशीनरी सामान्य ड्यूटी पर आ गई है। हालांकि, चार मई को प्रबल होते फोनी चक्रवात का खतरा पूरे राज्य को एक नई आपात स्थिति में डाल सकता है। यह बेहद ताकतवर चक्रवात है, सूबे को इससे निपटने के लिए तत्काल उपाय करने होंगे।
भारतीय मौसम विभाग की ओर से जारी बुलेटिन के मुताबिक फोनी चक्रवात ने अपना रास्ता बदल दिया है जिसके कारण वह अब राज्य से टकरा सकता है। अभी 2018 अक्तूबर के चक्रवात की यादे बिल्कुल ताजा हैं। वहीं, 1999 के सुपर साइक्लोन को याद किया जाए तो वह तटीय उड़ीसा में चुनाव का बड़ा मुद्दा भी बना था। मौसम विभाग की चेतावनी के बाद केंद्र सरकार चक्रवात की तीव्रता और गंभीरता पता करा रही है। फोनी चक्रवात से निपटने के लिए उड़ीसा समेत चार राज्यों को 1086 करोड़ रुपये का वित्तीय सहयोग भी केंद्र की ओर से जारी कर दिया गया है। दिल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया है।
चक्रवात के लिहाज से उड़ीसा भारत का एक बेहद ही अहम राज्य है। आमतौर पर चक्रवात राज्य के तटीय इलाकों से मानसून के बाद टकराते हैं। यह अक्तूबर से नवंबर का समय होता है। हालांकि, पूर्व मानसून चक्रवात का आना भी एक सामान्य बात हो गई है। उड़ीसा को देश में आपदाओं की राजधानी के नाम से पुकारा जाता है। प्रबल होते फोनी चक्रवात के कारण वापस उड़ीसा समाचार की सुर्खियां बन गया है। मुश्किल से सात महीने पहले 11 से 14 अक्तूबर, 2018 को तितली चक्रवात ने समूचे राज्य को अस्थिर कर दिया था। हालांकि, बाद में तितली चक्रवात ने अपना रास्ता उत्तरपूर्वी राज्य की तरफ कर दिया था।
अक्तूबर, 2013 में फालिन चक्रवात ने राज्य को नुकसान पहुंचाया था। यह 1999 के बाद उड़ीसा का सबसे बड़ा तूफान था। प्राकृतिक आपदाओं पर काम करने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ की सौदामिनी दास ने बताया कि 1900 से 2011 के बीच राज्य ने 59 वर्ष सबसे तीव्र और उच्च बाढ़ को झेला बल्कि 24 वर्ष गंभीर चक्रवात और 42 वर्ष सूखा, 14 वर्ष कठोर और गरम हवाएं और सात वर्ष खतरनाक टोर्नेडो को भी झेला है। उड़ीसा प्रत्येक वर्ष औसतन 1.3 प्राकृतिक आपदाओं को झेल रहा है। मौसम और प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता बढ़ने के साथ ही राज्य में 1965 के बाद से प्रत्येक वर्ष दो से तीन आपदाएं हो रही हैं।
राज्य सरकार की एक हालिया रिपोर्ट ने उड़ीसा के तटों को देश का सबसे उथल-पुथल वाला तट करार दिया है। इन तटों पर सबसे ज्यादा और गंभीर तूफान टकरा रहे हैं। प्रत्येक 15 महीने में राज्य तूफान का गवाह बन रहा है। यदि आंध्र प्रदेश की बात की जाए तो वहां तूफान की तीव्रता प्रत्येक 20 महीने पर और बंगाल की खाड़ी में तूफान आने की तीव्रता 28 महीने है। बीती शताब्दी में 1035 चक्रवात ने भारतीय द्वीपों को अस्थिर किया था। पूर्वी तट पर चक्रवातों के टकराने की संख्या इसी आधी है जबकि उड़ीसा कुल 263 तूफानों का अनुभव कर चुका है।
बढ़ते तूफान, चक्रवात और आपदाएं राज्य के लिए एक आर्थिक चुनौती हैं। सौदामिनी दास के जरिए तैयार किया गया शोध इकोनॉमिक ऑफ नैचुरल डिजास्टर इन उड़ीसा में बताया गया है कि आपदाओं के कारण नुकसान कई गुना बढ़ गया है। 1970 के दशक में प्राकृतिक आपदा के कारण संपत्ति का नुकसान 10.5 अरब रुपए था। वहीं, 1980 में यह सात गुना बढ़ गया। जबकि 1990 में 10 गुना ज्यादा बढ़ गया। लगातार बढ़ता नुकसान इस बात का तथ्य भी पेश करता है कि राज्य में बुनियादी संरचना भी प्रत्येक वर्ष बढ़ती गई। सौदामिनी ने बताया कि प्राकृतिक आपदाओं का बड़ा दबाव राज्य की अर्थव्यवस्था पर है। भविष्य में यह और गंभीर हो सकती है। गंभीर स्तर की बाढ़ और चक्रवात राज्य की आर्थिक क्षति को कई गुना बढ़ा देंगे। प्रत्येक वर्ष आने वाली गंभीर स्तर की बाढ़ या चक्रवात के कारण उड़ीसा की आर्थिक क्षति 96.9 अरब होगी। जबकि प्रत्येक वर्ष सूखे के कारण राज्य को 69.4 अरब रुपये का नुकसान होगा।