केदारनाथ के पुनर्निर्माण में क्यों जल्दबाजी कर रही है सरकार

वैज्ञानिकों ने केदारनाथ मंदिर के आसपास पुनर्निर्माण पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जल्दबाजी करना ठीक नहीं है
केदारपुरी में पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण करते मुख्य सचिव। फोटो: वर्षा सिंह
केदारपुरी में पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण करते मुख्य सचिव। फोटो: वर्षा सिंह
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वर्ष 2013 में भीषण आपदा झेल चुके रुद्रप्रयाग के केदारनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य कहीं एक और आपदा को निमंत्रण न हों। वैज्ञानिक इस बात को लेकर पहले ही आशंका जता चुके हैं। लेकिन पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से केदारपुरी में तेजी से निर्माण कार्य चल रहे हैं। इसके साथ इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट भी माना जा रहा है।

इसी कड़ी में 30 मई को मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने केदारनाथ पहुंचकर धाम में निर्माणाधीन पुनर्निर्माण कार्यों का जायजा लिया। मुख्य सचिव के साथ पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने मंदिर परिसर, शंकराचार्य समाधि स्थल, मंदाकिनी नदी पर स्थित आस्था पथ, सरस्वती घाट जैसे कार्यों का निरीक्षण किया। निर्माण कार्यों के सम्बन्ध में मुख्य सचिव ने कार्यदायी संस्थाओं को तय समय से पहले कार्य पूरे करने के निर्देश दिये।

उन्होंने कहा कि धाम में निर्माणाधीन पुनर्निर्माण कार्यों की मानिटरिंग पीएमओ कार्यालय से लगातार की जा रही है। उन्होंने धाम में निष्क्रिय पड़ी मशीनों को 10 दिन के भीतर सक्रिय करने के निर्देश कार्यदायी संस्थाओं को दिए, जिससे पुनर्निर्माण कार्य बेधड़क चलता रहे। 

लेकिन केदारनाथ को जानने वाले स्थानीय लोगों से लेकर वैज्ञानिक तक, यहां चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों पर सवाल उठा रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ की प्राकृतिक संवेदनशीलता इतने बड़े स्तर पर पुनर्निर्माण कार्य की इजाजत नहीं देती। समुद्र तल से 11,500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर बसे केदारनाथ में पर्यावरण से बिना तालमेल बिठाए कार्य नहीं किये जा सकते।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डीपी डोभाल कहते हैं कि केदारनाथ में आपदा के बाद ही हमने एक पूरी रिपोर्ट तैयार की थी और राज्य सरकार को कुछ सुझाव दिये थे, लेकिन उन सुझावों का आज तक संज्ञान नहीं लिया गया। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने लिखा था कि केदारनाथ टाउन अस्थिर सतह पर बसा हुआ है। वर्ष 2013 की आपदा ने समूचे इलाके को बुरी तरह हिला दिया है, इसलिए इस पूरे क्षेत्र को सामान्य होने में कुछ वर्ष लगेंगे, इसलिए यहां बाढ़ के चलते आए मलबे और पत्थर को हटाना या हिलाना ठीक नहीं है।

डॉ डोभाल की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि किसी भी सूरत में मंदिर और उसके आसपास किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। जबकि अस्पताल, पुलिस स्टेशन, मंदिर समिति का कार्यालय और स्टाफ के ठहरने के लिए विशेषज्ञों की सलाह से सुरक्षित स्थान पर निर्माण करना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया कि बाढ़ के चलते पूरा इलाका भूस्खलन के लिहाज से अधिक संवेदनशील हो गया है।

अपनी पड़ताल में वैज्ञानिकों ने पाया कि मंदाकिनी नदी ने आपदा के बाद अपना रास्ता बदल दिया और मंदिर से सिर्फ 100 मीटर की उपर की ओर बह रही है। इसलिए भविष्य में भी केदारनाथ मंदिर पर खतरा बना रहेगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने मंदिर की धारा उसके पुराने रास्ते पर मोड़ने की सलाह दी थी। साथ ही इनके किनारों पर किसी भी तरह की बसावट से मना किया था।

वाडिया के वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन के बाद लिखा था कि बाढ़ के बाद केदारपुरी भूस्खलन के लिहाज से और अधिक संवेदनशील हो गई है। नए भूस्खलन जोन बन गये हैं। इसलिए यहां किसी भी तरह के पुनर्वास कार्य बिना विशेषज्ञों की सलाह के नहीं किये जाने चाहिए ताकी खतरे की आशंका को कम किया जा सके।

डॉ डोभाल केदारनाथ में कराये जा रहे निर्माण कार्यों से सहमत नहीं हैं और इसे पर्यावरण के लिहाज से बिलकुल ठीक नहीं मानते, इसके उलट ये एक नई आपदा को आमंत्रण देना साबित हो सकता है। वे कहते हैं कि पुनर्निर्माण कार्यों के लिए राज्य सरकार समितियां बनाकर सलाह लेने की औपचारिकता तो करती है लेकिन वैज्ञानिक सलाहें मानी नहीं जातीं, दरकिनार कर दी जाती हैं।

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