घग्गर बेसिन में बाढ़ को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा से मांगी रिपोर्ट

एनजीटी ने नोएडा में अवैध रूप से चल रहे सभी बोरवेलों को सील करने का निर्देश दिया
घग्गर बेसिन में बाढ़ को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा से मांगी रिपोर्ट
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घग्घर बेसिन में बाढ़ की समस्या को हल करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगें, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा से विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

इस परियोजना रिपोर्ट को केंद्रीय जल और विद्युत अनुसंधान केंद्र (सीडब्लूपीआरएस), पुणे द्वारा प्रस्तुत अंतिम 'मॉडल स्टडी रिपोर्ट' में दी गई सिफारिशों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट को चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट में सबमिट करना होगा।

आदेश दिया है कि इस प्रस्तावित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को कोर्ट में सबमिट करने से पहले संबंधित राज्यों द्वारा केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को साझा किया जाना चाहिए। इसके बाद केंद्रीय जल आयोग अदालत को अवगत कराएगा कि प्रस्तावित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट सीडब्ल्यूपीआरएस, पुणे द्वारा दी गई सिफारिशों के अनुरूप है या नहीं।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ का कहना है कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में "संबंधित राज्य समय-सीमा तय करेंगे जो उचित होगी और जिसके बाद सिफारिशों के कार्यान्वयन में देरी नहीं की जा सकती, क्योंकि हर साल कम से कम 25 गांवों को बाढ़ की पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है। इससे जुड़ा आदेश 15 नवंबर 2022 को जारी किया गया है।

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 9 नवंबर, 2022 को दिए आदेश में कहा था कि पंजाब और हरियाणा घग्गर बेसिन में बाढ़ की समस्या और उससे निपटने के मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं। ऐसे में कोर्ट ने इन दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को 15 नवंबर, 2022 को उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था।

 नोएडा में अवैध रूप से चल रहे सभी बोरवेलों को एनजीटी ने दिया सील करने का निर्देश

एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में अवैध रूप से चल रहे सभी बोरवेलों को सील करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने पहले हो चुके भूजल के अवैध दोहन के लिए मुआवजे की वसूली करने का भी निर्देश दिया है।

परियोजना प्रस्तावकों को आदेश के एक महीने के भीतर संबंधित जिलाधिकारियों और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास मुआवजा जमा करना होगा। एनजीटी ने चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर जिलाधिकारी बिना अनुमति के भूजल निकालने वाली परियोजनाओं के खिलाफ चोरी के मामले दर्ज करने और उसे रोकने के साथ परियोजनाओं पर कठोर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

एनजीटी ने अधिकारियों को पीने योग्य पानी के अन्य उद्देश्यों के लिए किए जा रहे उपयोग की भी जांच करने और उसे नियमित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट का कहना है कि उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों को एक महीने के भीतर अपने जल संसाधन विभागों और एसपीसीबी के माध्यम से मानक संचालन प्रक्रिया जारी करके इस विषय पर आवश्यक कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

15 नवंबर, 2022 को दिए इस आदेश में एनजीटी ने कहा है कि "जिन गतिविधियों के लिए पीने योग्य पानी के उपयोग को बदलने की जरूरत है, उन्हें सूचीबद्ध किया जा सकता है और सहमति में उसका उल्लेख किया जा सकता है।" गौरतलब है कि अदालत का आदेश आवेदकों द्वारा उठाई गई शिकायत के जवाब में था, जिसमें कहा गया था कि नोएडा में बिल्डरों द्वारा अवैध रूप से भूजल का दोहन किया जा रहा है।

आवेदकों के अनुसार प्राधिकरण, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए भूजल के अवैध दोहन को रोकने में विफल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) के आकलन के अनुसार बहुत ज्यादा दोहन किए जा चुके क्षेत्रों में भी भूजल के स्तर में कमी आई है।

इस मामले में 5 जुलाई 2022 को 33 ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट के फील्ड वेरिफिकेशन के बाद एनजीटी के आदेश से गठित एक संयुक्त कमेटी ने पाया कि 33 में से 25 प्रोजेक्ट में भूजल का अवैध रूप से दोहन किया जा रहा था।

समिति ने बिना अनुमति के लगाए बोरवेल को हटाने और भूजल की अवैध निकासी के लिए मुआवजे की सिफारिश की थी। समिति ने इस बारे में परियोजना प्रस्तावकों को नोटिस जारी किया था लेकिन उनमें से एक मैसर्स गौरसन्स हाई-टेक इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को छोड़कर किसी ने भी उसका जवाब नहीं दिया है।

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