वैज्ञानिकों की मानें तो मध्य हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों को दरकते पहाड़ों और हिमस्खलन से सबसे ज्यादा खतरा है। रिसर्च के मुताबिक यह क्षेत्र न केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी इसके प्रति बेहद संवेदनशील है।
इतना ही नहीं जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि देश में उत्तराखंड, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश भी इस खतरे की जद से बाहर नहीं हैं। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख के साथ-साथ नेपाल और चीन के सिचुआन प्रांत में बिछा सड़कों और रास्तों का जाल भूस्खलन और हिमस्खलन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील है।
हिमालय में हिमस्खलन और भूस्खलन जैसी घटनाओं का आना कोई नया नहीं है लेकिन जिस तरह से इस तरह की विनाशकारी आपदाओं में वृद्धि हो रही है वो मानव जीवन और बुनियादी ढांचे के लिए खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इस क्षेत्र में लाखों लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जो भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।
वैज्ञानिकों ने इसी को समझने के लिए हिंदू कुश, काराकोरम, पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, मध्य हिमालय और हेंगडुआन शान क्षेत्र में इन खतरों का विश्लेषण किया है। इसमें उन्होंने हिमालय की इन छह प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में रहने वाले लोगों, बुनियादी ढांचे, जलमार्ग और सड़कों पर मंडराते खतरे को मापने का प्रयास किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि, "हमने भूस्खलन जैसी घटनाओं पर नजर रखने का एक नया तरीका बनाया और पहली बार हिमालय पर्वत में इसका इस्तेमाल किया है। हमने इस पद्धति का उपयोग यह मापने के लिए किया है इन घटनाओं से छह पर्वत श्रृंखलाओं में बुनियादी ढांचा, जलमार्ग, सड़कें और लोग कैसे प्रभावित हो रहे हैं।“
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि मध्य हिमालय क्षेत्र में जलमार्गों को हिमस्खलन और दरकते पहाड़ों से सबसे ज्यादा खतरा है। वहीं काराकोरम क्षेत्र में इमारतों और सड़कों के इन आपदाओं के संपर्क में आने का जोखिम सबसे ज्यादा है।
आने वाले समय में बढ़ जाएंगी मुश्किलें
रिसर्च में लोगों की बसावट और बढ़ते उत्सर्जन जैसे विभिन्न कारकों के साथ भविष्य में अनुमानित आबादी के विश्लेषण से यह भी पता चला है कि आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं का इंसानी आबादी पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने हिमनद झीलों और उनपर एकाएक पड़ने वाले दबाव के चलते आने वाली विनाशकारी बाढ़ों का भी अध्ययन किया है। उनके विश्लेषण से पता चला है कि बड़े पैमाने पर होने वाली इस तरह की हलचलें भविष्य में इन हिमनद झीलों को तेजी से प्रभावित कर सकती हैं।
रिसर्च के अनुसार हिमनद झीलों का सबसे ज्यादा प्रभाव वर्तमान में पूर्वी हिमालय क्षेत्र में देखा गया है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि यह भविष्य में काराकोरम और पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाएगा।
ऐसे में शोधकर्ताओं को भरोसा है कि इस अध्ययन के परिणाम शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं, हितधारकों और स्थानीय सरकारों को जोखिम कम करने के साथ-साथ इससे बचाव के उपायों के लिए उन क्षेत्रों का पता लगाने में मदद करेंगें जहां गहनता से जांच की आवश्यकता है।
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने देश में भूस्खलन के खतरे को लेकर एक नई रिपोर्ट "लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया 2023" जारी की थी। इस रिपोर्ट ने भी माना था कि देश के 147 भूस्खलन प्रभावित जिलों में से 64 पूर्वोत्तर के हैं।
इस रिपोर्ट से पता चला है कि देश में रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, राजौरी, त्रिशूर, पुलवामा, पलक्कड़, मालाप्पुरम, दक्षिण सिक्किम, पूर्वी सिक्किम और कोझिकोड में भूस्खलन का खतरा सबसे ज्यादा है। ये जिले उत्तराखंड, केरल, जम्मू कश्मीर और सिक्किम में हैं। विश्लेषण से पता चला है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में भूस्खलन का जोखिम सबसे ज्यादा है।
बता दें कि जोशीमठ सहित उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में जमीन दरकने के कई मामले सामने आ चुके हैं। 29 जून, 2022 को मणिपुर के नोनी जिले में भूस्खलन की ऐसी ही एक घटना में कम से कम 79 लोगों की मौत हो गई थी।
गौरतलब है कि डाउन टू अर्थ ने हाल ही में हिमालयी राज्य उत्तराखंड में इस तरह की प्राकृतिक घटनाओं का विस्तार से जायजा लिया था। हाल ही में जोशीमठ में घरों में आई दरारों के बाद वहां और आसपास के 500 गांवों को असुरक्षित मान लिया गया है। बता दें कि जोशीमठ नगर में धंसाव 1970 के दशक में भी महसूस किया गया था। तब से लेकर इसकी जांच के बाद कई रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी हैं। सितंबर 2022 में प्रकाशित ऐसी ही एक रिपोर्ट में क्षेत्र की हालत को देखते हुए कहा था कि वहां विकास के लिए की जा रही गतिविधियां तुरंत रोक देनी चाहिए।