असम बाढ़: हर साल आठ हजार हेक्टेयर भूमि का हो रहा है कटाव

संसदीय समिति को केंद्र ने बताया कि असम और अरुणाचल सरकार को मिल कर हल ढूंढ़ना होगा
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक 1954 से लगातार हर साल असम में बाढ़ आ रही है। फोटो: twitter @LicypriyaK
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक 1954 से लगातार हर साल असम में बाढ़ आ रही है। फोटो: twitter @LicypriyaK
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असम में बाढ़ का तांडव जारी है। अब तक असम के 35 में से 32 जिले के 5577 गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं और लगभग 55.42 लाख लोगों पर बाढ़ का असर पड़ा है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक मॉनसून सीजन में 21 जून 2022 तक असम में 81 लोगों की मौत हो चुकी है, इनमें 64 लोगों की मौत डूबने से हुई है और 17 लोगों की मौत भूस्खलन की चपेट में आने से हुई। लगभग 1 लाख 8306 हेक्टेयर खेती की जमीन बाढ़ की चपेट में है। बाढ़ के कारण 7,636 पशुओं की भी मौत हो चुकी है। बाढ़ से 1.20 लाख से अधिक घर पूरी तरह या आंशिक रूप से टूट चुके हैं।

वहीं, केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक असम की कोपली नदी रेड अलर्ट पर है, जबकि ब्रह्मापुत्र, बरक, कुशियारा, कटखल नदी अलग-अलग जगहों में खतरे के स्तर से ऊपर बह रही है।

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक असम की लगभग सभी नदियां बाढ़ के लिए जानी जाती हैं, इसकी वजह है कि असम में कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होती है, जिसके चलते नदियों में बाढ की स्थिति बन जाती है, लेकिन बाढ़ से सबसे अधिक नुकसान ब्रह्मपुत्र और बराक नदी के कारण होती है।

इन नदियों की वजह से असम में भूमि क्षरण भी तेजी से बढ़ रहा है। बाढ़ की दृ़ष्टि से असम में ब्रह्मपुत्र घाटी देश की प्रमुख खतरनाक क्षेत्र माना जाता है। यहां लगभग 40 प्रतिशत जमीन (32 लाख हेक्टेयर) बाढ़ की वजह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है।

राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक असम के कुल भूमि क्षेत्र के 31.05 लाख हेक्टेयर (39.58% ) बाढ़ संभावित क्षेत्र है, जो देश के कुल बाढ़ संभावित क्षेत्र का 10.2 प्रतिशत है। असम में 1953 से हर साल बाढ़ आती है और हर साल कम से कम 2000 गांव बाढ़ की चपेट में आते हैं।

जल संसाधन पर संसदीय समिति की 2020-21 की रिपोर्ट में इस पर विस्तार से बात की गई है। रिपोर्ट में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के हवाले से बताया गया है कि असम में 1954 के बाद से लेकिन अब तक बाढ़ की वजह से 4,27,000 हेक्टेयर भूमि का क्षरण हो चुका है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 7 प्रतिशत है और सालाना भूमि कटाव की दर 8,000 हेक्टेयर प्रति वर्ष रही है। इस रिपोर्ट में यह भी चौंकाने वाली बात है कि पिछली शताब्दी में ब्रह्मपुत्र नदी का क्षेत्रफल लगभग दोगुना हो गया है। यानी जमीन का एक बड़ा हिस्सा ब्रह्मपुत्र में समा चुका है।

संसदीय समिति ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से पूछा था कि आखिर असम में आने वाली बाढ़ के क्या इंतजाम किए गए हैं। मंत्रालय की ओर से बताया गया कि बाढ़ की समस्या का दीर्घकालिक समाधान के लिए नदियों और उनकी सहायक नदियों पर अलग-अलग जगह स्टोरेज का इंतजाम करना होगा। साथ ही, ब्रह्मपुत्र पर बने तटबंध काफी पुराने हो चुके हैं, इसलिए नए सिरे से तटबंध बनाने होंगे।

संसदीय समिति ने जब पूछा कि क्या अरुणाचल प्रदेश में बने हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की वजह से असम में बाढ़ जैसी समस्या बढ़ी है, तो केंद्रीय मंत्रालय की ओर से जवाब दिया गया कि यह असम और अरुणाचल सरकार के बीच का मसला है और यह काफी जटिल है और केंद्र सरकार केवल मध्यस्थ की भूमिका निभा सकती है। क्योंकि अगर बांध से ही दिक्कत होती तो भाखड़ा या दामोदर जैसे बांध नहीं बनते।

प्रबंधन के लिए मैनपावर की कमी
संसदीय समिति ने मंत्रालय से जानना चाहा कि ब्रह्मापुत्र बोर्ड में मैनपावर यानी तकनीकी और गैर तकनीकी स्टाफ कितना है? इसका जवाब भी काफी रोचक था। बताया गया कि ब्रह्मापुत्र बोर्ड में 2016 से बड़ी संख्या में सेवानिवृति हो रही है, जबकि नई भर्तियां बंद हैं, इसलिए बोर्ड में 161 तकनीकी पद स्वीकृत है, लेकिन 61 खाली हैं और 254 गैर तकनीकी पद स्वीकृत हैं, जबकि 168 पद खाली हैं। इस कमी की वजह से ब्रह्मपुत्र बोर्ड का काम प्रभावित हो रहा है।

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