
अगर आप भूकंप संभावित क्षेत्र में रहते हैं और आपके पास एंड्राइड फोन है, तो यह संकट के समय आपकी जान बचा सकता है।
एक नई स्टडी से पता चला है कि गूगल द्वारा विकसित एंड्राइड भूकंप अलर्ट (एईए) सिस्टम हो 2020 में अमेरिका में शुरू हुआ था। आज पूरी दुनिया में फैल चुका है। यह सिस्टम जमीन में कंपन से करीब एक मिनट पहले अपने आप चेतावनी भेजता है, जिससे आप समय रहते खुद को सुरक्षित कर सकते हैं या दूसरों को भी सतर्क कर सकते हैं।
कैसे काम करता है यह सिस्टम?
अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, यह तकनीक आपके फोन में मौजूद सेंसर की मदद से काम करती है। पारंपरिक प्रणालियों की तरह, एंड्रॉयड फोन भी भूकंप के केंद्र से निकलने वाली पी और एस तरंगों का पता लगाते हैं। जब फोन को भूकंप की पी और एस तरंगें महसूस होती हैं, तो यह तुरंत गूगल के सर्वर को इस बारे में जानकारी भेजता है। वहां आंकड़ों का विश्लेषण कर भूकंप के केंद्र का पता लगाया जाता है।
अगर सिस्टम को पक्का यकीन हो जाए कि भूकंप आ रहा है, तो यह चेतावनी भेज देता है। चूंकि मोबाइल नेटवर्क की स्पीड जमीन की तरंगों से तेज होती है, ऐसे में कई लोगों तक यह अलर्ट भूकंप शुरू होने से पहले ही पहुंच जाता है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2021 से 2024 के बीच, इस सिस्टम ने 98 देशों में लाखों लोगों को अलर्ट भेजे थे। उदाहरण के लिए 6 फरवरी 2023 को तुर्की और सीरिया में आए 7.8 तीव्रता के भूकंप से ठीक पहले ही वहां पांच लाख से अधिक लोगों को उसकी चेतावनी मिल चुकी थी। इस दौरान कुल 1,279 भूकंपों से जुड़े अलर्ट भेजे गए, जिनमें महज तीन अलर्ट सही नहीं थे। इनमें से दो बिजली गरजने की वजह से हुए थे।
इस बारे में किए सर्वे में पाया गया कि 85 फीसदी उपयोगकर्ताओं ने चेतावनी के बाद भूकंप महसूस किया। इनमें से 36 फीसदी को अलर्ट भूकंप शुरू होने से पहले मिल गया था। 28 फीसदी को भूकंप के दौरान जबकि 23 फीसदी को भूकंप के बाद अलर्ट मिला था।
हालांकि यह सिस्टम बेहद प्रभावशाली है, लेकिन इसमें मौमूद खामियां भी सामने आईं हैं। जैसे 2023 के तुर्की-सीरिया भूकंप के समय यह इसकी तीव्रता को सही से नहीं माप पाया था, जिससे कई लोगों को समय पर चेतावनी नहीं मिल पाई। गूगल ने इसके बाद अपने एल्गोरिदम में सुधार किए और पाया कि नए सिस्टम के हिसाब से उस भूकंप के लिए एक करोड़ लोगों को समय रहते अलर्ट भेजा जा सकता था।
क्या यह पारंपरिक सिस्टम की जगह लेगा?
सवाल यह है कि क्या यह सिस्टम पारंपरिक प्रणालियों की जगल ले सकता है। इस बारे में शोधकर्ताओं का अध्ययन में कहना है कि यह तकनीक पारंपरिक चेतावनी प्रणालियों की जगह नहीं लेती, बल्कि उन्हें पूरक बनकर और अधिक प्रभावी बनाती है। खासकर उन इलाकों में जहां भूकंप के लिए कोई सरकारी चेतावनी प्रणाली नहीं है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे क्षेत्रों में यह तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। आज यह सिस्टम हर महीने औसतन 60 बार चेतावनी भेजता है, जिससे करीब 1.8 करोड़ एंड्राइड यूजर्स को फायदा होता है।