गौरीकुंड भूस्खलन में 3 की मौत, 17 लापता, आपदा प्रबंधन पर फिर उठे सवाल

नदी किनारे सो रहे लोग लापता हैं, प्रशासन का कहना है कि उन्हें कई बार यहां सोने से रोका गया था
गौरीकुंड हादसे के बाद मौके पर राहत कार्य में पुलिस। फोटो: रुद्रप्रयाग पुलिस
गौरीकुंड हादसे के बाद मौके पर राहत कार्य में पुलिस। फोटो: रुद्रप्रयाग पुलिस
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केदारनाथ यात्रा मार्ग के महत्वपूर्ण पड़ाव गौरीकुंड में 3 अगस्त की रात भारी मूसलाधार बारिश के बाद आए भूस्खलन की चपेट में आकर 3 लोगों की मौत हो गई जबकि 17 लोग लापता हैं। इस घटना ने एक बार फिर वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा की याद दिला दी। तब गौरीकुंड में सैकड़ों तीर्थयात्री मारे गए थे। इस समय भी केदारनाथ यात्रा चल रही है और रोजाना औसतन 400 से अधिक तीर्थयात्री दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।

गौरीकुंड से केदारनाथ तक करीब 16 किलोमीटर पैदल यात्रा मार्ग है। गुरुवार देर रात भारी बारिश के बाद पहाड़ से टूटकर मलबा आया। सड़क किनारे बनी दो दुकानें और एक ढाबा इस मलबे की चपेट में आए और नीचे मंदाकिनी के तेज बहाव में समा गए। यहां दुकान में सोए 20 लोग लापता हो गए।

देर रात ही जिला प्रशासनआपदा प्रबंधन ,स्थानीय पुलिसएसडीआरएफएनडीआरएफ समेत अन्य टीमें मौके पर पहुंची। शुक्रवार देर रात तक 3 शव ढूंढे जा सके। लापता लोगों की तलाश के लिए शनिवार को भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी रहा। इनमें 4 स्थानीय और 16 नेपाली मूल के लोग थे। जो यात्रा मार्ग पर यात्रियों को डंडी-कंडी के सहारे दर्शन के लिए केदारनाथ तक ले जाते थे।

बढता जोखिम

साल भर यात्रा के लिए ऑल वेदर रोड के नाम से प्रचलित चार धाम सड़कों ने आवाजाही सुगम तो कर दी है लेकिन अत्यधिक तीव्र बारिश और भूस्खलन की घटनाएं यात्रा के जोखिम को लगातार बढ़ा रही हैं।

मौसम से जुड़ी चेतावनी के बीच भी चारों धाम में हर रोज हजारों तीर्थयात्री पहुंच रहे हैं। 4 अगस्त को बद्रीनाथ में 2,353, हेमकुंड में 392, केदारनाथ में 492, गंगोत्री में 783 और यमुनोत्री में 958 यानी कुल 4,978 यात्रियों ने दर्शन किए।

जबकि 3 अगस्त को बद्रीनाथ में 2,438 और केदारनाथ में 6,211 यात्रियों के साथ कुल 10,377 लोगों ने दर्शन किए थे। चारों धाम में कपाट खुलने से अब तक 36,42,522 तीर्थ यात्री दर्शन कर चुके हैं। बीते एक हफ्ते में 33 हजार से अधिक यात्री दर्शन कर चुके हैं।

राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के मुताबिक राज्य में 15 जून से अब तक प्राकृतिक आपदा के चलते 35 लोगों की मौत और 31 लोग घायल हो चुके हैं। इनमें रुद्रप्रयाग के लापता 17 लोग शामिल नहीं हैं। बारिश के दौरान सडक हादसों में 43 लोग जान गंवा चुके हैं जबकि 149 घायल हुए हैं।

अर्ली वॉर्निंग सिस्टम

दरअसल यात्रियों की ये संख्या और गौरीकुंड जैसी तीव्र मौसमी घटनाओं को एक साथ देखने और जोखिम के स्तर का आकलन करने की भी जरूरत है। जोखिम की स्थिति में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बेहद महत्वपूर्ण कड़ी है।

रुद्रप्रयाग में उपजिलाधिकारी जितेंद्र वर्मा कहते हैं आपदा प्रबंधन विभाग ने केदारनाथ में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम तैयार किया है लेकिन गौरीकुंड में यह काम कर रहा है या नहीं, इसे देखना होगा।

वह उदाहरण देते हैं बारिश में पुलों के पास लगे सेंसर के जरिये नदी का जलस्तर बढ़ने पर राज्य स्तर पर एसएमएस (मास मैसेजिंग) या सोशल मीडिया हैंडल्स के जरिये सूचना दी जाती है। पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के ट्विटर हैंडल पर सूचनाएं दी जाती हैं। नदियों के किनारे पुलिस और आपदा प्रबंधन की गाड़ियां चक्कर लगाती हैं। ताकि आपात स्थिति में लोगों को सूचित किया जा सके। चारधाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले यात्रियों को एसएमएस के जरिये सूचना भेजने की व्यवस्था फिलहाल नहीं है

जितेंद्र वर्मा कहते हैं कि कई बार बारिश-बर्फबारी की चेतावनी पर यात्रियों को दर्शन के लिए आगे नहीं बढ़ने देने पर झड़प की स्थिति बन जाती है। भारी बारिश की स्थिति में हम यात्रियों को आगे यात्रा करने से रोकते हैं तो वे इसे मानने को तैयार नहीं होते और वहां मौजूद कर्मचारियों या पुलिस टीम से लडने लगते हैं। पढे लिखे लोग ऐसा करते हैं

ये पूछने पर कि सड़क किनारे नदी के ऊपर दुकानों में लोग क्यों सो क्यों रहे थेएसडीएम कहते हैं इन्हें कई बार रोका गया है। कई बार कार्रवाई भी की गई है। लेकिन वे नहीं मानते

क्या ये अर्ली वॉर्निंग सिस्टम काफी है?

पर्यावरणविद् डॉ रवि चोपडा कहते हैं हिमालयी क्षेत्र में आपदा की स्थितियों को देखते हुए सुरक्षा के लिए ध्यानपूर्वक दीर्घकालिक और अल्पकालिक उपाय किए जाने चाहिए। मौसम विभाग अब बारिश की स्थिति को लेकर 3-4 घंटे की अग्रिम चेतावनी के साथ-साथ 3-4 दिन की अग्रिम चेतावनी भी देता है। संवेदनशील स्थानों पर आपदा प्रबंधन पोस्ट को स्थानीय तौर पर सायरन या लाउडस्पीकर के जरिये इन चेतावनी को दोहराना चाहिए

चोपडा कहते हैं हर आपदा के बाद दीर्घकालिक उपायों में सरकार लोगों को नदी तटों से दूर हटाने का बयान देती है लेकिन कभी भी अपने स्वयं के बयानों पर अमल नहीं करती है। पूर्व में अदालतों ने भी लोगों को नदी के किनारे न बसने देने के आदेश दिए हैं। उन्हें गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है या अदालत को स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए”। 

गौरीकुंड घटना के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर बारिश के मौसम में संवेदनशील स्थानों में बने भवनों और कच्चे घरों में रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करने के निर्देश दिए।

जलवायु परिवर्तन या बेतरतीब निर्माण जिम्मेदार

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र ने 3 और 4 अगस्त के लिए रुद्रप्रयाग के लिए कहीं-कहीं तीव्र से अति तीव्र बारिश के दौर की चेतावनी जारी की थी। नदी, नालों के नजदीक रहने वाले लोगों और बस्तियों को सतर्क रहने की सलाह दी थी।

भारत मौसम विज्ञान विभाग में मौसम विज्ञान केंद्र के प्रमुख रह चुके डॉ आनंद शर्मा मानते हैं कि गौरीकुंड या ऐसे कई हादसों के लिए तीव्र बारिश नहीं बल्कि लापरवाही जिम्मेदार है। हिमालयी क्षेत्र में तीव्र बारिश के दौर आना सामान्य है। लेकिन नदी के पास भूस्खलन और बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील जगहों पर लोगों क्यों रह रहे हैं और प्रशासन वहां उन्हें बसने क्यों देता है? और क्या मंदाकिनी नदी के ऊपर दुकानों में सो रहे लोगों तक मौसम विभाग की चेतावनी पहुंची थी?

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