“हम आयुष्मान कार्ड दिखाकर-दिखाकर थक गए हैं, इसका कोई फायदा नहीं है”

हापुड़ के आयुष्मान बीमा कार्ड धारकों का आरोप, प्राइवेट अस्पताल नहीं कर रहे इलाज
कोविड की दूसरी लहर में अपने पिता को खोने वाले मदन कुमार। मदन के पिता को आयुष्मान का लाभ नहीं मिला और उन्हें कर्ज लेकर पिता का इलाज कराना पड़ा। फोटो: विकास चौधरी
कोविड की दूसरी लहर में अपने पिता को खोने वाले मदन कुमार। मदन के पिता को आयुष्मान का लाभ नहीं मिला और उन्हें कर्ज लेकर पिता का इलाज कराना पड़ा। फोटो: विकास चौधरी
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कोविड-19 की दूसरी लहर इस साल अप्रैल-मई महीने में जब कहर ढा रही थी, तब उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के सिम्भावली गांव में रहने वाले मदन कुमार के 58 वर्षीय पिता अमन सिंह भी कोरोना वायरस की चपेट में आ गए। करीब चार दिन तक एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में इलाज के लिए भटकने के बाद मदन ने 13 मई को अपने पिता को खो दिया।

उन दिनों को याद करके सुबकते हुए मदन बताते हैं कि शुरू में खांसी, बुखार आने पर स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया। एक रात को अधिक दिक्कत होने पर वह पिताजी को बीबीनगर स्थित न्यू मैक्स अस्पताल लेकर गए। यहां 9 मई को जांच के दौरान उनके पिता कोविड-19 संक्रमित पाए गए। उनका ऑक्सीजन का स्तर 48 प्रतिशत था।

मदन बताते हैं कि अस्पताल प्रबंधन ने बेड खाली न होने के कारण पिताजी को दूसरे अस्पताल में ले जाने कहा। इसके बाद वह कई अस्पतालों में उन्हें लेकर भटकते रहे लेकिन कहीं भी बेड उपलब्ध नहीं था। अंत में उन्होंने मसूरी में स्थित सुप्रीम अस्पताल में पिता को भर्ती किया। मदन के अनुसार, “अस्पताल में इलाज के दौरान जब पैसों की मांग की गई तो मैंने बताया कि इनके पास आयुष्मान योजना का कार्ड है।

अस्पताल ने इस कार्ड को मानने से इनकार कर दिया और इलाज के बदले 16 हजार रुपए मांगे। रुपए चुकाने के बाद अस्पताल ने मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाने को कहा।”

उस समय मदन को नहीं पता था कि यह अस्पताल आयुष्मान योजना के पैनल में नहीं है। बाद में मदन आयुष्मान योजना के पैनल में शामिल तीन निजी अस्पतालों में चक्कर काटते रहे, लेकिन कहीं भी बेड उपलब्ध न होने के कारण उनके पिता को भर्ती नहीं किया गया। अंत में 12 मई की रात वह मेरठ के जगदंबा अस्पताल में पिताजी को भर्ती कराने में कामयाब तो हो गए लेकिन 13 मई की सुबह उनकी मृत्यु हो गई।

मदन कहते हैं कि अगर उनके पिताजी को निजी अस्पताल में समय पर इलाज मिल जाता तो शायद उनकी जान बच जाती। पिताजी के इलाज में उनका करीब 80 हजार रुपए खर्च हो गया। इलाज में खर्च का अधिकांश पैसा उन्होंने कर्ज लिया था। मदन कहते हैं कि अगर आयुष्मान योजना के तहत इलाज मिल जाता तो उन्हें काफी राहत मिलती और वह कर्ज के बोझ तले नहीं दबे होते। वह बताते हैं आयुष्मान योजना के तहत बने अधिकांश कार्ड महज दिखावटी हैं। गांव में किसी को भी इस योजना का लाभ नहीं मिला है।

मदन की बातों की पुष्टि गांव के ही अनिल कुमार भी करते हैं। वह भी आयुष्मान कार्ड धारक हैं। उन्हें जब इस कार्ड की सबसे अधिक जरूरत थी, तब उनके हाथ निराशा लगी। कोविड-19 महामारी से करीब साल भर पहले जनवरी 2019 को अनिल एक जानलेवा हादसे का शिकार हो गए थे। जब वह दिल्ली पुलिस में भर्ती के लिए परीक्षा देने जा रहे थे, तभी पिलखुआ में जेसीबी ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी।

अनिल बताते हैं, “घायल अवस्था में मुझे हापुड़ के रामा अस्पताल ले जाया गया। 3 जनवरी को मेरे पैर का ऑपरेशन हुआ और उसमें रॉड डाली गई।” अनिल बताते हैं कि यह अस्पताल आयुष्मान योजना के पैनल में शामिल है लेकिन जब इलाज के दौरान आयुष्मान कार्ड होने की बात कही गई तो अस्पताल ने उसे मानने से साफ इनकार कर दिया। आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद उन्होंने 65,000 रुपए देकर ऑपरेशन कराया। अनिल बताते हैं कि गांव में बहुत से गरीबों, खासकर दलित समुदाय के आयुष्मान योजना के कार्ड बने हैं लेकिन किसी को अब तक इसका लाभ नहीं मिला है।

हालांकि रामा अस्पताल में दो साल पहले तक आरोग्य मित्र के पद पर कार्यरत प्रिंस त्यागी स्पष्ट कहते हैं कि अस्पताल में किसी भी आयुष्मान कार्ड धारक को इलाज से वंचित नहीं किया गया है। वह बताते हैं कि जनवरी 2020 से अब तक करीब 1,500 लोगों का आयुष्मान कार्ड से इलाज हुआ है। वह यह भी बताते हैं कि इस साल कोई भी आयुष्मान कार्ड धारक इलाज के लिए नहीं आया और न ही किसी का इलाज हुआ। उनका कहना है कि जिला प्रशासन ने 15 अप्रैल से 31 मई 2021 तक अस्पताल को कोविड अस्पताल में तब्दील कर दिया था। इस दौरान केवल जिला प्रशासन द्वारा भेजे गए और अन्य स्वास्थ्य बीमा धारक मरीजों का ही इलाज किया गया।

बहुत से निजी अस्पताल ऑन रिकॉर्ड यह दावा करते हैं कि आयुष्मान योजना के तहत किसी को भी इलाज देने से इनकार नहीं किया जा रहा लेकिन लोगों के अनुभव इन दावों की पुष्टि नहीं करते। निजी अस्पतालों में काम करने वाले कुछ कर्मचारी ऑफ रिकॉर्ड दबी जुबान में स्वीकार करते हैं, “प्राइवेट अस्पतालों को अन्य बीमा योजनाओं के मुकाबले आयुष्मान योजना से कम लाभ मिलता है। आयुष्मान योजना के तहत जो रेट निर्धारित किया गया है, वह अन्य बीमा योजनाओं से कम है।” शायद यही वजह है कि निजी अस्पताल जरूरतमंदों को आयुष्मान योजना का लाभ देने में आनाकानी कर रहे हैं और केंद्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना महज खानापूर्ति बनकर रह गई है।

यही वजह है कि सिम्भावली गांव के अर्जुन सिंह और उनकी पत्नी शशि देवी को आयुष्मान योजना का कोई औचित्य नजर नहीं आता। यह दंपति अपने इलाज में करीब 1 लाख 35 हजार रुपए खर्च कर चुका है। अर्जुन सिंह डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “प्राइवेट अस्पताल वाले पैसे पहले मांगते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि मरीज आयुष्मान कार्ड धारक है तो वे उसे अछूत मानने लगते हैं। हम आयुष्मान कार्ड दिखाकर-दिखाकर थक गए हैं। इसका कोई फायदा नहीं है।”  

उत्तर प्रदेश के एक जिले के ग्रीवांस मैनेजर नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि निजी अस्पताल योजना को अमलीजामा पहनाने में कोताही बरत रहे हैं। उन्हें ऐसी बहुत सी शिकायत मिलती हैं जिसमें लोग कहते कि निजी अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त इलाज नहीं कर रहे हैं या इलाज के बदले पैसे वसूल रहे हैं।

उनका कहना है कि ऐसे अस्पतालों की शिकायत करने के लिए हर जिले में आयुष्मान योजना का क्रियान्वयन कार्यालय है, लेकिन अधिकांश लोगों की इसकी जानकारी नहीं हैं और वे शिकायत करने में कतराते हैं। वह बताते हैं, “आयुष्मान योजना के तहत हड्डी के फ्रैक्चर का इलाज करने में निजी अस्पतालों को 4,000 रुपए मिलते हैं लेकिन अगर यही इलाज वे बिना योजना के करते हैं तो कम कम 12,000 रुपए वसूलते हैं। इसी कारण वे आयुष्मान के मरीजों को गंभीरता से नहीं लेते।”

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