मच्छरों को आकर्षित करने के लिए इंसानी त्वचा को ‘चुम्बक’ की तरह इस्तेमाल करता है जीका वायरस

जलवायु परिवर्तन और बढ़ते शहरीकरण के चलते एडीज एजिप्टी मच्छरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, जिसके चलते यह वायरस भारत सहित 90 से अधिक देशों में फैल चुका है
मच्छर बेहद सख्त जीव होते हैं, इनमें से कई तो डेंगू, मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कुख्यात हैं; फोटो: आईस्टॉक
मच्छर बेहद सख्त जीव होते हैं, इनमें से कई तो डेंगू, मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कुख्यात हैं; फोटो: आईस्टॉक
Published on

रिसर्च से पता चला है कि अपने मानव मेजबान की त्वचा पर कब्जा कर जीका वायरस ऐसे रासायनिक संकेत भेजता है, जो अधिक मच्छरों को संक्रमित करने के लिए आकर्षित करते हैं। इससे वायरस को फैलने में मदद मिलती है।

देखा जाए तो जिस तरह से जलवायु में आते बदलावों और शहरीकरण की वजह से एडीज एजिप्टी मच्छरों की संख्या में वृद्धि हुई है, उसके चलते यह वायरस भारत सहित 90 से अधिक देशों में फैल चुका है। इन मच्छरों के नई जगहों पर पैर पसारने की वजह से डेंगू और चिकनगुनिया का प्रसार भी बढ़ गया है।

हालांकि, अभी भी वैज्ञानिकों को इस बारे में बेहद कम जानकारी है कि जीका इतनी सफलतापूर्वक क्यों फैलता है।

इस बारे में लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि जीका वायरस मानव त्वचा में मेटाबॉलिक बदलाव लाता है, जिससे यह शरीर की रक्षा करने के बजाय और अधिक मच्छरों को आकर्षित करने लगती है।

मतलब की यह बदलाव मच्छरों को आकर्षित करने के लिए चुम्बक की तरह काम करते हैं। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल कम्युनिकेशन्स बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

इस रिसर्च से पता चला है कि जीका वायरस त्वचीय कोशिकाओं (फाइब्रोब्लास्ट) में जीन और प्रोटीन को बदल देता है। यह कोशिकाएं त्वचा को संरचनात्मक रूप से मजबूत बनाए रखने में मदद करती हैं।

क्या है इसके पीछे का विज्ञान

इन मेटाबॉलिक बदलावों के कारण त्वचा कहीं अधिक रसायन छोड़ती है, जिन्हें वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) कहा जाता है। यह रसायन मच्छरों को आकर्षित करते हैं और उन्हें अधिक काटने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इस अध्ययन के नतीजे मेटा-प्रोटिओम विश्लेषण पर आधारित हैं, यह एक ऐसी विधि है जो अध्ययन करती है कि शरीर में जीन और प्रोटीन एक साथ किस प्रकार काम करते हैं।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर नौशीन इमामी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "जीका सिर्फ संयोग से नहीं फैलता है, यह अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मानव शरीर में सक्रिय रूप से हेरफेर करता है।

यह भी पढ़ें
यूरोप, चीन, अमेरिका और जापान में भी फैल सकता है जीका वायरस
मच्छर बेहद सख्त जीव होते हैं, इनमें से कई तो डेंगू, मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कुख्यात हैं; फोटो: आईस्टॉक

देखा जाए तो दुनिया में जिस तरह से जीका वायरस के मामले बढ़ रहे हैं और एडीज मच्छर नए क्षेत्रों को भी अपना निशाना बना रहे हैं ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह वायरस किस तरह फैलता है और इससे लड़ने के नए तरीके कैसे खोजे जा सकते हैं।

ऐसे में यह समझना दिलचस्प है कि कैसे यह वायरस मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करता है और साथ ही त्वचा संकेतों को अवरुद्ध करके इसको फैलने से रोका जा सकता है।

गौरतलब है कि जीका वायरस मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी है, जिसके लक्षण काफी हद तक डेंगू से मिलते हैं। हालांकि यह बीमारी गर्भवती महिला से उसके बच्चे को भी हो सकती है। यह वायरस मुख्यतः एडीज मच्छर के काटने से फैलता है, जो आमतौर में दिन में काटते है।

यह भी पढ़ें
जीका वायरस का हॉटस्पॉट बना पुणे, देश के कुल 151 मामलों में से 125 महाराष्ट्र के इसी जिले में
मच्छर बेहद सख्त जीव होते हैं, इनमें से कई तो डेंगू, मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों को फैलाने के लिए कुख्यात हैं; फोटो: आईस्टॉक

इसके साथ ही असुरक्षित यौन सम्बन्ध, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और अंग प्रत्यारोपण से भी यह बीमारी फैल सकती है। इसके शिकार लोगों में थकान, बुखार, लाल आंखे, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और शरीर पर लाल चकत्ते जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

रिसर्च से पता चला है कि अधिकांश जीका सक्रमण बीमारी का कारण नहीं बनते। आमतौर पर इनके लक्षण हल्के होते हैं, जो दो से सात दिनों तक रहते हैं। हालांकि कभी-कभी यह बीमारी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है।

यह वायरस पहली बार 1947 में युगांडा में बंदरों में पाया गया था। इसके बाद 1952 में युगांडा और तंजानिया में इंसानों में इसके लक्षण पाए गए थे। अब तक इस बीमारी को कोई पक्का इलाज नहीं है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in