विश्व स्वास्थ्य दिवस विशेष: 20.7 फीसदी भारतीय परिवारों को गरीब कर रहा है मानसिक बीमारियों के इलाज का खर्च

भारत में परिवार के औसत खर्च का करीब 18.1 फीसदी हिस्सा मानसिक बीमारियों के ईलाज और स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय किया जा रहा है
गरीबी से तंग महिला; फोटो: आईस्टॉक
गरीबी से तंग महिला; फोटो: आईस्टॉक
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स्वास्थ्य हमेशा से भारत में बड़ा मुद्दा रहा है। कभी यह स्वास्थ्य को लेकर अपनी जेब से किए जा रहे खर्च को लेकर चर्चा में रहा, तो कभी स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव लोगों की परेशानी का सबब बना। वहीं यदि मानसिक स्वास्थ्य की बात करें तो देश में आज भी इस ओर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।

ऐसे में किसी परिवार का कोई सदस्य यदि मानसिक विकार या बीमारियों से ग्रस्त है तो वो परिवार अपनी आय का अच्छा-खासा हिस्सा उसके ईलाज पर खर्च करने को मजबूर हो जाता है। नतीजन यह खर्च उस परिवार को धीरे-धीरे गरीबी के ऐसे भंवर जाल में फंसा देता है, जिससे निकलना उस परिवार के लिए करीब-करीब नामुमकिन हो जाता है।

इसी विषय पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और अन्य संस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक देश में परिवार के औसत खर्चे का करीब 18.1 फीसदी हिस्सा मानसिक बीमारियों के ईलाज और स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया जा रहा है।  

वहीं मानसिक स्वास्थ्य पर किए जा रहे इस खर्च से आय को होते नुकसान को देखें तो वो उत्तराखंड में सबसे ज्यादा था। जहां परिवार के औसत खर्च का करीब 38.6 फीसदी हिस्सा मानसिक बीमारियों के ईलाज और स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया गया।

इसी तरह सिक्किम में 31.9 फीसदी, नगालैंड में 26.2, उत्तरप्रदेश में 24.7, मणिपुर में 24.3, ओडिशा में 24.2, हिमाचल प्रदेश में 23.9, मध्य प्रदेश में 23.4, दमन और दीव में 23.4, राजस्थान में 22.6, तेलंगाना में 22.2, तमिलनाडु में 21.8, चंडीगढ़ में 21.7, कर्नाटक में 21.6 और महाराष्ट्र में औसत खर्च का करीब 21.3 फीसदी हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया गया था।

इतना ही नहीं रिसर्च से पता चला है कि सर्वे किए गए करीब 20.7 फीसदी भारतीय परिवार, मानसिक बीमारी के उपचार और देखभाल पर किए खर्च के चलते गरीबी रेखा से नीचे चले गए थे। जो कहीं न कहीं मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सरकारी उदासीनता को भी दर्शाता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट में प्रकाशित हुए हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर किए खर्च से उत्तराखंड में प्रभावित हुए हैं 49.8 फीसदी परिवार

निष्कर्ष दर्शाते हैं कि मानसिक विकार के चलते स्वास्थ्य देखभाल पर किए खर्च का सबसे ज्यादा असर उत्तराखंड में देखा गया। जहां करीब 49.8 फीसदी परिवार मानसिक स्वास्थ्य पर किए खर्च से प्रभावित हुए थे। इसी तरह लक्षद्वीप में 47.6 फीसदी, मध्य प्रदेश में 36 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 27.1 फीसदी, बिहार में 26.8, ओडिशा में 26.4, मणिपुर में 24.9, हिमाचल प्रदेश में 24.4, राजस्थान में 24.2, आंध्र प्रदेश में 21.7, तमिलनाडु में 20.9 और तेलंगाना में 20.2 फीसदी परिवार स्वास्थ्य पर किए खर्च से प्रभावित हुए थे।

देश में सभी बीमारियों का छठा हिस्सा हैं मानसिक विकार

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने देश में मानसिक स्वास्थ्य पर अपनी जेब से किए जा रहे खर्च और बढ़ती गरीबी के बीच के सम्बन्ध को उजागर किया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने जुलाई से दिसंबर 2018 के बीच विकलांगों पर किए सर्वेक्षण का विश्लेषण किया है। इसके आंकड़े नेशनल सैंपल सर्वे के 76वें दौर में एकत्र किए गए थे। इस रिसर्च में सर्वे के दौरान मानसिक बीमारी की सूचना देने वाले 6,679 लोगों और उनके स्वास्थ्य सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

सर्वे के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे करीब 71.2 फीसदी लोगों की आयु 19 से 59 वर्ष के बीच थी। इनमें से करीब 56.8 पुरुष थे, जबकि 49.7 फीसदी अशिक्षित थे। सर्वे में शामिल आधे से ज्यादा लोगों का कहना था कि वो बेकार में बहुत ज्यादा चिंता करते हैं। वहीं 29.6 फीसदी ने असामान्य व्यवहार की सूचना दी थी, जबकि करीब 36.6 फीसदी को अपने रोजमर्रा के कामों के लिए मदद की जरूरत होती है।

नतीजे दर्शाते हैं कि पिछले 365 दिनों में 60 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के लोगों ने मानसिक बीमारी पर अपनी जेब से कहीं ज्यादा खर्च किया था। देखा जाए तो सबसे गरीब परिवारों की तुलना में सबसे अमीर वर्ग ने मानसिक स्वास्थ्य और ईलाज पर अपनी जेब से करीब नौ गुना खर्च किया था।

देखा जाए तो विकसित और विकासशील दोनों देशों में ही लंबे समय से मानसिक बीमारियों को अनदेखा किया गया या फिर कम करके आंका गया है। भारत भी उससे अलग नहीं है। यदि सभी बीमारियों को देखें तो भारत में मानसिक विकार उनका छठा हिस्सा हैं। हालांकि आज भी देश में इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इन बीमारियों में असामान्य विचारों, भावनाओं, व्यवहार से लेकर सिजोफ्रेनिया, मानसिक विकार, अवसाद, मनोभ्रंश आदि बहुत कुछ शामिल हैं।

वैश्विक स्तर पर देखें तो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मानसिक स्वास्थ्य विकार, बीमारी के कुल बोझ का करीब 11.1 फीसदी हिस्सा हैं। इसके बावजूद कई देशों में स्वास्थ्य बजट का एक फीसदी से कम हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जा रहा है।

भारत में मानसिक विकार और उससे जुड़े मुद्दे गंभीर रूप ले रहे हैं। विशेष रूप से अवसाद, चिंता, सिजोफ्रेनिया, और आत्महत्या युवा लोगों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण हैं। यही वजह है 2014 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति जारी की थी। वहीं लोगों में जागरूकता को बढ़ाने के लिए 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम जारी किया गया था।

देश में मानसिक बीमारियों से बचाव के लिए बेहतर और स्वास्थ्य देखभाल की सस्ती सुविधाओं की मदद से इनसे निपटने के लिए कदम उठाए हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। इसके शीघ्र निदान और प्रबंधन के लिए जरूरी उपायों में शीघ्रता लाने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य पर परिवारों द्वारा की जा रहे खर्च और उसके वित्तीय प्रभावों को कम करने के लिए गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है।

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