उत्तराखंड एक मात्र ऐसा राज्य है जहां 2016 के मुकाबले 2017 में 118 फीसदी अधिक आत्महत्याएं हुई। उत्तराखंड में वर्ष 2016 में 152, वर्ष 2017 में 331 और वर्ष 2018 में यहां 421 लोगों ने आत्महत्या की।
वर्ष 2017 में उत्तराखंड के 157 लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते (47.4 प्रतिशत शेयर) मौत को गले लगाया। इनमें 87 पुरुष और 70 महिलाएं शामिल हैं। 17 पुरुष, 15 महिलाओं ने विवाह की वजह से आत्महत्या की। दहेज के चलते 5 महिलाओं, परीक्षा में फेल होने पर एक लड़की, नपुंसकता के चलते 12 पुरुष, बीमारी के चलते 4 पुरुष, किसी अपने के चले जाने पर दो महिलाओं, ड्रग्स या नशे के चलते 15 पुरुष, एक महिला, प्रेम संबंध के चलते 13 पुरुष, 6 महिला, बेरोज़गारी के चलते 1 पुरुष, करियर की समस्या को लेकर एक पुरुष, अज्ञात कारणों से 52 पुरुष और 23 महिलाओं, अन्य वजहों से आत्महत्या करने वालों में 8 पुरुष, 3 महिलाएं शामिल हैं। इनमें 63 केस ऐसे थे जिसमें पूरे परिवार ने एक साथ आत्महत्या की। उत्तराखंड में 18 लोगों की सामूहिक आत्महत्या में जान गंवायी।
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था अशोक कुमार का कहना है कि स्थानीय लोगों से ज्यादा पर्यटकों के आत्महत्या के मामले यहां सामने आते हैं। घर से परेशान होकर वे हरिद्वार जैसे शहरों में इस तरह के घातक कदम उठाते हैं। साथ ही वे आत्महत्या के डाटा पर भी सशंकित हैं क्योंकि इन मामलों में एफआईआर तभी दर्ज होती है जब कोई अन्य व्यक्ति इसकी वजह बनता है।
वहीं, देहरादून के महंत इंद्रेश अस्पताल की मनो-चिकित्सक डॉ प्रीति मिश्रा कहती हैं कि राज्य में बढ़ता नशा भी आत्महत्या जैसे कदम उठाने के पीछे एक बड़ा कारण है। क्योंकि नशा डिप्रेशन की ओर ले जाता है। इसके साथ ही परिवार में आपसी संवाद का न होना, छोटी-छोटी मुश्किलों को बड़ा बना देता है और डिप्रेशन की ओर धकेलता है। आत्महत्या डिप्रेशन का उच्चतम स्तर है। इसलिए वह मानसिक सेहत का भरपूर ख्याल रखने का सुझाव देती हैं।