प्रकृति के साथ शांति से नहीं रह रहे हम

अगर हम धरती के साथ उसी बेवफूकी से पेश आते रहे तो इस साल भी कुछ नया नहीं होने वाला, सुनीता नारायण का आलेख
प्रकृति के साथ शांति से नहीं रह रहे हम
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महामारी के दौर के बीच मैं क्या आकांक्षा कर सकती हूं? अगर हम धरती के साथ उसी बेवफूकी से पेश आते रहे तो इस साल भी कुछ नया नहीं होने वाला। हमारी अनिश्चित दुनिया में अब केवल एक चीज निश्चित है- वह यह कि प्रकृति अब अपना रौद्र रूप दिखाने लगी है और हमसे कह रही है कि बस, अब बहुत हो चुका।

पिछले दो साल हम सबके लिए समझ से परे रहे हैं। साल 2020 में एक दिन हमें पता चलता है कि महज किसी वायरस ने आकर हमारी दुनिया को रोक दिया है। हमने तब अविश्वसनीय चीजें कीं। हमने हर चीज बंद कर दी, खुद को घरों में कैद कर लिया, लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया, मास्क को अपने कपड़ों का जरूरी हिस्सा बना लिया और ऑनलाइन काम करना शुरू कर दिया।

इससे हमारी दुनिया लगभग जाम सी हो गई। पिछले दो साल हम सबके लिए नरक जैसे बीते हैं, जिसमें हमने मौते देखीं ओर ऐसी चीजें भी जो हम सबकी जिंदगी में पहले कभी नहीं हुईं। जो कुछ भी हुआ, वह सारी दुनिया में, अमीर और गरीब, सबके साथ हुआ।

उसके बाद हमें लगा कि वह दुःस्वपन बीत गया और रौशनी करीब है। हमने उम्मीदें और प्रार्थनाएं की कि वैक्सीन हमें बचा लेगी। ठीक एक साल पहले, आधुनिक मेडिसिन के चमत्कार के तौर पर कोविड-19 की वैक्सीन दुनिया में आई थी। हमने मान लिया था कि सबसे बुरा समय गुजर चुका है।

उस समय अकेला सवाल यही था कि क्या यह वैक्सीन पूरी दुनिया में सबको मिल पाएगी। यह भी कहा गया कि सभी को वैक्सीन लगाने की जरूरत है भी या नहीं, हालांकि इसका यह मतलब नहीं था कि वह सबको नहीं मिलेगी। अगर सबको वैक्सीन न मिलती तो कोरोना के नए वेरिएंट के उभरने का खतरा भी था।

महामारी से जंग में वायरस और इसके वेरिएंटस की वैक्सिनेशन के साथ रेस थी। कहा गया कि ‘जब तक सब सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है’। यह स्लोगन हमें फिर से आश्वासन दिलाता था कि हम जीत की ओर बढ़ रहे हैं। हमने जी-7 में दुनिया के नेताओं से इसके बारे में तफसील से सुना।

जब हम नए साल में आने को तैयार थे और उम्मीद कर रहे थे कि सामान्य दिन वापस आ जाएंगे, कोरोना के नए वेरिएंट- ओमिक्रान ने दुनिया को झटका दिया। अगर 2020 नोवेल कोरोना वायरस का और 2021 इसके डेल्टा वेरिएंट का साल था तो 2022 में ओमिक्रान हमें डराने जा रहा है।

हमें नहीं पता कि यह कितना खतरनाक होगा। हम बस इतना जानते हैं कि इसके उत्परिवर्तन करने की दर काफी ज्यादा है और इसका संक्रमण बहुत तेज है। यह उस प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर डालता है, जो हमने वेक्सीन से हासिल की है। यानी कि अब इकलौता विकल्प बचता है- बूस्टर देने का। उन सारे लोगों को बूस्टर देने का, जो वैक्सीन की पहली दोनों डोज ले चुके हैं ताकि वे ओमिक्रान के संक्रमण से कम प्रभावित हों।

विश्व स्वास्थ्य संगठन, जो हाल- फिलहाल तक अमीर देशों से कह रहा था कि वे कोरोना वायरस को रोकने के लिए अपने यहां सभी को बूस्टर डोज देने की बजाय गरीब देशों को वेक्सीन उपलब्ध कराएं, अब चिल्ला-चिल्लाकर बूस्टर, बूस्टर, बूस्टर कर रहा है। हम वाकई थक चुके हैं।

हमें डर है कि कहीं 2022, पिछले साल के जैसा ही न साबित हो, जिसका हमने सब कुछ सामान्य रहने की उम्मीद में स्वागत किया था, लेकिन जिसमें हमें महामारी की पहले से ज्यादा भयंकर लहर का सामना करना पड़ा।

महामारी अभी खत्म नहीं हुई है और न ही इस तरह के प्रयासों से खत्म होगी। हमारी नई पीढ़ी इसकी जकड़ में है। हम इसका सबसे बुरा असर बच्चों पर देख रहे हैं। बच्चों की यह वह पीढ़ी होगी, जो इस बीमारी से डरकर जिएगी, भले ही उसमें आंतरिक लचीलापन हो या उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि अलग-अलग हो।

मेरा मानना है कि हम भले ही आमतौर पर इस पर चर्चा नहीं करते, लेकिन बच्चे इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। जो अमूल्य समय उन्हें स्कूल में दोस्तों के साथ होने, चीजों को सीखने और जिंदगी का बेहिसाब आनंद लेने में बिताना चाहिए था, उसे उन्होंने गंवाया है।

यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि उन्हें ऑनलाइन शिक्षा मिल रही है, क्योंकि हम जानते हैं कि गरीब के लिए यह शिक्षा कितनी उपलब्ध है। यह कहना भी काफी नहीं है कि घर में रहने से उन्हें परिवार के साथ ज्यादा समय बिताने का मौका मिल रहा है, क्योंकि उनके मानसिक स्वास्थ्य, विकास और सामान्य जीवन के लिए उनका बाहर निकलना भी उतना ही जरूरी है।

फिर, कोरोना वायरस ही अकेला नहीं है। आज के दौर में यह अकेली समस्या नहीं है। पिछले साल एवियन इंफ्लुएंजा ने चिड़ियों और मुर्गियों पर घातक हमला किया, अफ्रीकी स्वाइन इंफ्लुएंजा ने पूरी दुनिया में सुअरों की आबादी पर प्रहार किया। इसके साथ ही चमगादड़ों से निपाह और मच्छरों से जीका वायरस का संक्रमण भी घातक हुआ।

क्या इन जूनोटिक यानी पशुओं से फैलने वाले वायरस में से कोई कोरोना वायरस जितना मारक या घातक हा सकता है ? हम यह नहीं जानते। इतनी सारी अनिश्चितताओं के बीच दरअसल हम यह मानने से इंकार कर रहे हैं कि हम प्रकृति के साथ शांति से नहीं रह रहे हैं।

जबकि कोविड-19 के खिलाफ जंग में हम यही याद रखने की जरूरत सबसे ज्यादा है। हम जानते हैं कि जूनोटिक वायरस वाली बीमारियों के बढ़ने की वजह प्रकृति के साथ हमारे बिगड़ते संबंध हैं और उन्हें हम केवल तभी सुधार सकते हैं, जब हम अपनी खाद्य-प्रणाली को एक बार फिर से ठीक करें। हालांकि इसे ठीक करने की बजाय हम केवल त्वरित उपायों से काम चलाना चाहते हैं।

हमें पता है कि जब तक सबको वेक्सीन नहीं मिल जाती, तब तक हम भी खतरे की जद में हैं। इसके बावजूद हमें नहीं पता कि हमें मिलकर कैसे काम करना है। हमने पिछले दो सालों में यह भी सीखा है कि वायरस को नियंत्रित करने में देशों की कामयाबी उनकी समाजव्यापी सार्वजनिक स्वास्थ्य-प्रणालियों में उनके द्वारा किए गए निवेशों में निहित है।

यह भी कि इसे सर्वसुलभ और प्राथमिक स्तर पर सबके लिए उपलब्ध करने के लिए लोगों की जरूरत है। नए वेरिएंट के बढ़ते खतरे के दौर में भी हमें इन बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

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