मानचित्र से समझें, देश में मातृ मृत्यु अनुपात के हालात
2016 से 2018 की तुलना में 2017 से 19 के बीच देश के मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में 8.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जिसके बाद भारत में एमएमआर 103 पर पहुंच गया है। हालांकि बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई भारत 2030 तक मातृ मृत्यु के सतत विकास के लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल कर पाएगा। एसडीजी के तहत प्रति लाख जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु दर को 70 पर सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था।
देश में एमएमआर के मामले में जिन पांच राज्यों का प्रदर्शन सबसे बेहतर था उनमें गुजरात, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल शामिल थे। ये वो राज्य हैं जिन्होंने एसडीजी लक्ष्य को हासिल कर लिया है। इनमें केरल में मातृ मृत्यु अनुपात की स्थिति सबसे बेहतर है। यहां प्रति लाख जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु 30 दर्ज की गई थी। वहीं महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 38, तेलंगाना में 56, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में 58, झारखण्ड में 61 और गुजरात में 70 प्रति लाख था। जिन राज्यों की स्थिति सबसे खराब है उनमें असम सबसे ऊपर है जहां एमएमआर 205 दर्ज किया गया है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 167, मध्य प्रदेश में 163, छत्तीसगढ में 160, राजस्थान में 141, उड़ीसा में 136, बिहार में 130, पंजाब में 114 और पश्चिम बंगाल में 109 दर्ज किया गया था। ये वे राज्य हैं जहां मातृ मृत्यु अनुपात भारत के औसत एमएमआर से ज्यादा है। यदि भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) के लक्ष्यों पर गौर करें तो देश में 2020 तक एमएमआर को 100 प्रति लाख पर लाने का लक्ष्य रखा गया था जिसके हम लगभग करीब हैं।
यदि 2016-18 से तुलना करें तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में सबसे ज्यादा सुधार आया है। आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में मातृ मृत्यु अनुपात में 30 प्रति लाख का सुधार आया है। वहीं राजस्थान में 23 और बिहार में 19 की कमी आई है। हालांकि इसके बावजूद इन राज्यों में मातृ मृत्यु अनुपात काफी ऊंचा है।