शैलेंद्र कुमार हूडा
इस महामारी से उपजे भारी तनाव ने दुनियाभर में स्वास्थ्य प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है। तमाम देशों ने अपनी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए तमाम तरीके अपनाए हैं। औद्योगीकृत पश्चिमी देश बड़े पैमाने पर संकट से निपटने के लिए उपचारात्मक कदमों पर निर्भर हैं, जिसकी वजह से रोग निवारक सेवा के लिए कुछ खास जगह नहीं बचती। विकासशील देशों में प्राथमिक स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।
हालांकि विकसित राष्ट्रों का ये दावा है कि उनके पास मजबूत व्यवस्थाएं हैं, लेकिन शोध से पता चलता है कि उनमें से किसी ने भी कोविड-19 के प्रकोप से पहले या उसके दौरान बाकियों से बेहतर प्रदर्शन नहीं किया। इन सब के बीच मौलिक प्रश्न यह पहचान पाना है कि स्वास्थ्य व्यवस्था की कौन सी विशेषताएं अनुकूल परिणामों को सक्रिय करती हैं?
यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि व्यवस्था को कैसे वित्तपोषित किया जाता है और सेवाओं को किस तरह वितरित और विनियमित किया जाता है। दुनियाभर की स्वास्थ्य प्रणालियों को या तो सरकारी करों (स्पेन, न्यूजीलैंड, यूके), सामाजिक स्वास्थ्य बीमा (जर्मनी, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, जापान, यूएस), या सरकार की ओर से संचालित स्वास्थ्य बीमा (कनाडा, ताइवान, दक्षिण कोरिया) के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है या फिर बाजार के माध्यम से (भारत, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और कुछ हद तक चीन), जहां परिवार बड़े पैमाने पर आउट-ऑफ-पॉकेट (ओओपी) भुगतान करते हैं।
हालांकि, अधिकतर देश यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) के लिए बीमा-आधारित वित्तपोषण पर भरोसा करते हैं, लेकिन यह प्रणाली आवश्यक रूप से प्रभावी देखभाल की गारंटी नहीं देती है। बीमा मॉडल के माध्यम से देखभाल प्रदान करने के लिए हमेशा अमेरिका का उदाहरण दिया जाता है, लेकिन अन्य उन्नत देशों की तुलना में लगभग दोगुना खर्च करने के बावजूद यह बीमारियों के अत्यधिक बोझ, उच्च शिशु मृत्यु दर और गिरती आयु-संभाव्यता से घिरा हुआ है। कनाडा और ताइवान में एकल-भुगतानकर्ता तंत्र है जहां लोग खुद अपने प्रदाताओं को चुनते हैं। इस तरीके में दावों का निपटान समय पर हो जाता है।
भारत यूएचसी के लिए एक नए दृष्टिकोण पर निर्भर हो रहा है, जिसमें बीमा के माध्यम से निजी प्रदाताओं से सेवाओं की रणनीतिक खरीद की जाती है और धन सीधे प्रदाताओं को हस्तांतरित किया जाता है। लेकिन, यह काफी महंगा साबित हो रहा है।
थाईलैंड ने सार्वजनिक प्रणाली में प्राथमिक और माध्यमिक देखभाल को बनाए रखते हुए तृतीयक देखभाल प्रदान करने के लिए इस मॉडल को सफलतापूर्वक समायोजित किया है। पिछले दो दशकों में थाईलैंड और चीन ओओपी को 20 प्रतिशत से अधिक नीचे लाने मे सफल हुए, जबकि भारतीय अभी भी 61 प्रतिशत खर्चे का भुगतान अपनी जेब से करते हैं।
यह सरकार की ओर से स्वास्थ्य पर बहुत ही मामूली रकम (जीडीपी का 1.18 प्रतिशत) खर्च करने की वजह से है, जिसके कारण कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप-मंडल, और जिला अस्पताल बेकार पड़े रह जाते हैं। यही कारण है कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली कोविड के भार को संभाल नहीं पाई और महामारी के दौरान इसका प्रभाव गैर-कोविड उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर भी देखा गया।
हालांकि, श्रीलंका और क्यूबा अभी भी पुरानी (कर-आधारित) प्रणाली के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना जारी रखे हुए हैं और लगातार अच्छे परिणाम पा रहे हैं।