कोरोना काल के तीन साल: नहीं निकल रहा है शरीर से वायरस और दिमाग से डर

11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को महामारी घोषित किया था। तीन साल होने पर डाउन टू अर्थ में पढ़िए, बीमारी से जूझने वालों की आपबीती
बीमारी के दौरान अस्पताल में भर्ती लेख के लेखक राजू सजवान। फोटो: राजू सजवान
बीमारी के दौरान अस्पताल में भर्ती लेख के लेखक राजू सजवान। फोटो: राजू सजवान
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अप्रैल 2021 का पहला सप्ताह। कोरोना वायरस की दूसरी लहर लगभग हर किसी को चपेट में ले रही थी। आठ अप्रैल की शाम मुझे ठंड के साथ बुखार आया। रात को सोते वक्त बुखार की गोली खा ली। रात को बुखार उतर गया, लेकिन सुबह होते-होते फिर चढ़ गया। गले में खरास थी, खांसी थोड़ी बहुत कुछ दिन से हो रही थी।

अपने पास के डॉक्टर के पास जाना ही बेहतर समझा। डॉक्टर ने दवा दे दी। थोड़ा आराम मिला, लेकिन पूरा नहीं। तीन दिन बाद डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिखे। शाम तक रिपोर्ट आई कि टायफायड है। डॉक्टर ने टायफायड की दवा शुरू कर दी, लेकिन जब आराम नहीं मिला तो कोरोना का टेस्ट कराने की ठान ली।

इन दिनों दूसरी लहर का खौफ इस कदर हावी हो चुका था कि रोजाना किसी न किसी के मौत की खबरें आने लगी थी। इसी डर के चलते मैंने भी ऑक्सीमीटर ले लिया और बार-बार ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन लेवल चेक करने लगा। दो दिन बाद कोरोना का रिपोर्ट नेगेटिव आ गई, लेकिन छाती में दर्द और ऑक्सीजन लेवल कम रहने के कारण मैंने चेस्ट सीटी कराना बेहतर समझा। तब तक पत्नी को भी दिक्कत होने लगी थी।

दोनों का चेस्ट सीटी लेकर जब मैं दूसरे डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने बता दिया कि मुझे व मेरी पत्नी को कोरोना हो चुका है और इसका असर फेफड़ों पर होने लगा है। जब मैंने उन्होंने बताया कि कोविड का टेस्ट नेगेटिव आया है और टायफायड पॉजिटिव आया है तो डॉक्टर ने जवाब दिया कि इन दिनों ऐसा ही हो रहा है, लेकिन यह कोविड ही है।

दूसरी लहर में फेफड़ों तक संक्रमण पहुंचने के कारण ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था। शाम होते-होते मेरा ऑक्सीजन लेवल 92-93 से ऊपर नहीं जा रहा था और कभी-कभी तो 90 से नीचे चला जा रहा था। मुझे बीमार हुए 10 दिन हो चुके थे और 18 अप्रैल की पूरी रात मुझे नींद नहीं आई। बार-बार मैं अपना और अपनी पत्नी का ऑक्सीजन लेवल चेक कर रहा था।

राहत की बात यह थी कि पत्नी का ऑक्सीजन लेवल 98 से कम नहीं हो रहा था, लेकिन मेरा ऑक्सीजन लेवल 90 के आसपास ही घूम रहा था। बेचैनी बढ़ रही थी। तब तक पूरे देश में कोहराम मच चुका था और अस्पताल भर चुके थे।

मैं अपने साथियों को पहले ही संदेश कर चुका था कि शायद मुझे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा। साथी सक्रिय भी हो चुके थे, लेकिन कुछ इंतजाम नहीं हो रहा था। सुबह तक नींद नहीं आई। रात भर यही सोचता रहा कि सुबह किस-किस को फोन करके या तो अस्पताल में बेड का इंतजाम करवाना है या ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करना है। लेकिन संभव नहीं लग रहा था।

अपने एक पुराने वरिष्ठ सहयोगी को सुबह मैसेज किया। वहां से जवाब मिला कि वह कुछ इंतजाम करते हैं। उनके प्रयासों से फरीदाबाद के ही एक बड़े अस्पताल में एक डॉक्टर का अप्वाइटमेंट मिल गया। खास बात यह है कि जिस दिन मैंने चेस्ट सीटी कराया था, उसी दिन दोबारा कोविड का आरटी पीसीआर टेस्ट भी करवा लिया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं आई थी।

जब पत्नी के साथ किसी तरह अस्पताल पहुंचा तो वहां भीड़ देखकर सांसें उखड़ने लगी। डॉक्टर ने मुआयना किया और पत्नी को पांच दिन की दवा देकर घर जाने की सलाह दी, जबकि मुझे भर्ती होने के लिए कह दिया। पत्नी ऑटो लेकर किसी तरह घर पहुंच गई। लॉकडाउन की वजह से तब ट्रैफिक सामान्य नहीं था, इसलिए एक बड़ी दिक्कत यहां से वहां जाने की थी।

मुझे जरूरी औपचारिकता के बाद पहले इमरजेंसी में लिटा दिया गया। क्योंकि तब तक शायद बेड खाली नहीं थे। लगभग छह घंटे तक इमरजेंसी में रहा। मुझे ऑक्सीजन देना शुरू कर दिया गया था। आसपास लेटे मरीजों की हालत मुझसे ज्यादा खराब थी। लेकिन उनकी चिंता छोड़ मेरा सारा ध्यान अपने ऑक्सीमीटर पर था। रात को मुझे एक बेड पर शिफ्ट कर दिया गया। ऑक्सीजन की नली में नाक पर थी। दवाइयां शुरू कर दी।

ऑक्सीजन लेवल 90 से 95 के बीच घूम रहा था। सब ठीक चल रहा था, लेकिन डर इस कदर हावी था कि बार-बार लगता कि कहीं इलाज में कोई कोताही तो नहीं बरती जा रही। पास में मोबाइल था, इसलिए जब भी फेसबुक खोलता तो किसी न किसी की मौत की खबर बेचैन कर देती, डरा देती। कहीं अस्पताल की ऑक्सीजन खत्म होने की खबरें थीं तो कहीं ऑक्सीजन न मिलने के कारण अपने किसी जानकार की मौत की खबर थी।

इसलिए सबसे पहला काम यही किया कि फेसबुक और खबरें देखनी बंद कर दी। चुटकुले या कॉमेडी वीडियो देखने शुरू किए। पुराने गीत भी सुनने शुरू किए, लेकिन डर था कि जाता ही नहीं था। रात भी नींद नहीं आती थी। डॉक्टर-नर्स दिन में तीन बार ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन चेक करते, लेकिन मैंने अस्पताल की ही दवा की दुकान से ऑक्सीमीटर मंगवा लिया था। जो लगभग दोगुने दाम पर मिला।

एक बार तो ऐसा हुआ कि ऑक्सीमीटर के सेल ही खराब हो गए। अपने दोस्तों को फोन किया। लॉकडाउन की वजह से दुकानें बंद थी और रास्ते बंद थे। फिर भी दो दोस्तों ने किसी तरह मेरे पास सेल पहुंचाए। खास बात यह थी कि मैंने जो दूसरा टेस्ट शहर के सबसे बड़े और एकमात्र बादशाह खान जिला अस्पताल से कराया था, उसकी रिपोर्ट पांच दिन बाद भी नहीं आई थी।

यानी कि तब तक मैं आधिकारिक तौर पर कोविड का मरीज था, लेकिन मेरा इलाज कोविड मरीज की ही तरह चल रहा था। बल्कि अस्पताल में भर्ती लगभग सभी का इलाज कोविड के मरीज की ही तरह चल रहा था। पांच दिन बाद मेरे कहने में एक साथी रिपोर्टर ने किसी तरह रिपोर्ट का इंतजाम किया था, उसमें मुझे कोविड पॉजीटिव बताया गया। घर पर पत्नी की पांच दिन की दवा समाप्त हो चुकी थी। पत्नी की हालत में सुधार था।

लेकिन मेरा डर मेरी हालत को सुधारने में आड़े आ रहा था। रात नींद न आना, इस बात का डर लगना कि मेरा इलाज ढंग से नहीं हो रहा है की वजह से दिमागी हालत बिगड़ रही थी। अपने आप से बड़बड़ाना, दोस्तों-परिजनों को मेरे परिवार का ध्यान रखना और न जाने क्या-क्या? बार-बार ऑक्सीमीटर पर ऑक्सीजन लेवल चेक करना।

खास बात यह है कि न तो मुझे बुखार था, न खांसी, न सीने में किसी तरह की दिक्कत, लेकिन फिर भी बेचैनी की वजह से खुद को बीमार महसूस करता था। लगभग दस दिन बाद घर लौटा, लेकिन दिमाग से डर नहीं गया। आखिरी दिन तो दिमाग के डॉक्टर भी टेस्ट कराया गया। उन्होंने नींद की दवाई देकर यह कह दिया कि इन्हें नींद की जरूरत है।

इलाज के दौरान ब्लड शुगर बढ़ गया था, जो बाद में सामान्य तो हुआ, लेकिन फिर भी बार-बार शुगर चेक करना, बीपी चेक करना। नींद में कहीं ऑक्सीजन लेवल कम न हो जाए, इसलिए रात को परिवार के एक सदस्य की ड्यूटी रहती थी, जो जागकर ऑक्सीमीटर लगाकर ऑक्सीजन लेवल चेक करता था। आज जब वो समय आता था तो खुद पर हंसी आती है और दोस्तों-सहयोगी कर्मियों और परिजनों के प्रति अहसान का भाव जाग उठता है।

एक माह बाद दोबारा डॉक्टर के पास गया। तब भी ऑक्सीजन लेवल 95 के आसपास ही था। डॉक्टर ने कह दिया कि यह ठीक हो जाएगा। सब कुछ ठीक होने में समय लगेगा। तब से लेकर अब तक दो साल बीत चुके हैं, सब कुछ ठीक नहीं हुआ है। डॉक्टरों के पास जाना लगा रहता है। ब्लड शुगर तो कंट्रोल में है, लेकिन बीपी की दवाएं शुरू कर दी हैं। कोरोना के डर से मुक्ति मिल गई है, लेकिन जिस तरह अब रोजाना हृदयाघात से मौत की खबरें आ रही हैं, अब उसका डर सताता रहता है।

(लेखक डाउन टू अर्थ, हिंदी में विशेष संवाददाता हैं और यह उनकी आपबीती है)

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