छात्रों की आत्महत्या पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: मानसिक स्वास्थ्य के लिए 15 अहम दिशा-निर्देश लागू

दिशा-निर्देशों में साफ कहा गया है कि छात्रों की सुरक्षा, खासकर उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, संस्थानों की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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देश में छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए 15 अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं। बेंच ने कहा कि ये दिशा-निर्देश तब तक लागू और बाध्यकारी रहेंगे, जब तक इस विषय में कोई कानून या नियम नहीं बन जाता।

कोर्ट ने कहा कि सभी शैक्षणिक संस्थानों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक समान नीति अपनानी और लागू करनी होगी। यह नीति उम्मीद ड्राफ्ट गाइडलाइंस, मनोदर्पण पहल और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति से प्रेरित हो सकती है। इस नीति की हर साल समीक्षा कर उसे अपडेट करना होगा, और इसे संस्थान की वेबसाइट और नोटिस बोर्ड पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा।

अदालत ने कहा है कि जहां 100 या उससे ज्यादा छात्र पढ़ते हैं, उन सभी शिक्षण संस्थानों में कम से कम एक प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सोशल वर्कर की नियुक्ति अनिवार्य होगी। यह विशेषज्ञ बाल और किशोर मानसिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षित होना चाहिए।

वहीं, जिन संस्थानों में छात्रों की संख्या कम है, उन्हें भरोसेमंद और प्रशिक्षित बाहरी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से औपचारिक रूप से सहयोग लेना होगा, ताकि छात्रों को समय पर सही मार्गदर्शन और सहायता मिल सके।

छात्रों की मेरिट के आधार पर बैच विभाजन नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कोचिंग संस्थानों समेत सभी शैक्षणिक संस्थानों से कहा है कि वे छात्रों को पढ़ाई के प्रदर्शन के आधार पर बैच में न बांटें। ऐसा करना छात्रों में शर्मिंदगी और मानसिक दबाव पैदा करता है।

दिशा-निर्देशों में शिक्षकों और कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर भी जोर दिया गया है। सभी शिक्षण और गैर-शिक्षण स्टाफ को साल में कम से कम दो बार मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होगा। इसमें मानसिक प्राथमिक सहायता, आत्मघाती संकेतों की पहचान, आत्महानि की स्थिति में प्रतिक्रिया और जरूरत पड़ने पर सही विशेषज्ञ तक पहुंचाने की जानकारी दी जाएगी।

साथ ही, सभी संस्थानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका शिक्षण, गैर-शिक्षण और प्रशासनिक स्टाफ वंचित और हाशिये पर खड़े छात्रों के साथ संवेदनशील, समावेशी और भेदभाव रहित व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षित हो।

दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि विशेष रूप से कमजोर और वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ संवेदनशीलता से व्यवहार किया जाना चाहिए। इनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, LGBTQ+ समुदाय, दिव्यांग छात्र, अनाथालय में रहने वाले बच्चे, मानसिक आघात या आत्महत्या के प्रयास से गुजर चुके छात्र और अन्य किसी भी प्रकार से हाशिये पर खड़े छात्र शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी शिक्षण संस्थानों में यौन शोषण, उत्पीड़न, रैगिंग और जाति, वर्ग, लिंग, यौन रुझान, दिव्यांगता, धर्म या जातीयता के आधार पर होने वाली बदसलूकी की शिकायतों के लिए एक मजबूत, गोपनीय और सुलभ शिकायत व निवारण तंत्र बनाया जाए।

सभी शिक्षण संस्थानों को एक आंतरिक समिति या अधिकृत निकाय बनाना होगा, जो शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई कर सके और पीड़ित छात्रों को मानसिक और भावनात्मक सहयोग दे सके।

लापरवाही को माना जाएगा अपराध

दिशा-निर्देशों में यह भी साफ कहा गया है कि छात्रों की सुरक्षा, खासकर उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, संस्थानों की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर किसी मामले में समय पर या पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गई और इससे छात्र आत्महानि या आत्महत्या जैसा कदम उठाता है, तो यह संस्थान की लापरवाही मानी जाएगी और प्रशासन पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

अदालत ने कहा कि कोटा, जयपुर, सीकर, चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई जैसे कोचिंग हब और ऐसे सभी शहर जहां बड़ी संख्या में छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं, वहां मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा और रोकथाम के विशेष उपाय लागू किए जाएं। इन क्षेत्रों में छात्रों की आत्महत्या के मामले ज्यादा देखने को मिले हैं, इसलिए इन्हें खास ध्यान देने की जरूरत है।

ये दिशा-निर्देश देश के सभी शिक्षण संस्थानों पर लागू होंगे, चाहे वे सरकारी हों या निजी, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, ट्रेनिंग सेंटर, कोचिंग संस्थान, रेजिडेंशियल एकेडमी या छात्रावास उनकी मान्यता या संबद्धता चाहे जो भी हो।

राज्यों और केंद्र को दो महीने में नियम बनाने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय टास्क फोर्स द्वारा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर चल रहे काम के स्थान पर नहीं, बल्कि उसके साथ-साथ एक अस्थाई सुरक्षा ढांचा तैयार करने के लिए जारी किए गए हैं।

कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर नियम बनाने का आदेश दिया है। इन नियमों के तहत सभी निजी कोचिंग संस्थानों का पंजीकरण, छात्रों की सुरक्षा से जुड़े मानदंड और शिकायत निवारण प्रणाली अनिवार्य की जाए। साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुरक्षा व्यवस्था का पालन भी सुनिश्चित करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 90 दिनों के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। इसमें यह बताना होगा कि दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, राज्य सरकारों के साथ किस तरह समन्वय किया गया है, कोचिंग संस्थानों से जुड़े नियम बनाने की क्या स्थिति है और निगरानी की क्या व्यवस्था की गई है।

इसके अलावा, हलफनामे में यह भी स्पष्ट करना होगा कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर काम कर रही राष्ट्रीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट और सिफारिशें कब तक पूरी होंगी।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश छात्रों की मानसिक सेहत को लेकर भारत के शैक्षणिक ढांचे में एक बड़े बदलाव की शुरुआत है। अब देखना यह है कि राज्यों और संस्थानों द्वारा इसे कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है।

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