जलने के बाद का संघर्ष: भेदभाव और अनदेखी से जूझते मरीज, व्यवस्था में बदलाव की दरकार

भारत में हर साल करीब 21 लाख लोग जलने की गंभीर घटनाओं का शिकार होते हैं, इनमें से 25000 लोग अपनी जान गंवा देते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
Published on

सतनआग की लपटों से बच निकलना एक बड़ी चुनौती होती है, लेकिन पीड़ितों की असली लड़ाई तब शुरू होती है, जब वे अस्पताल पहुंचते हैं, जहां उन्हें इलाज के साथ-साथ सामाजिक कलंक और भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है।

द जॉर्ज इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया द्वारा उत्तर प्रदेश में किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आया है कि भारत की स्वास्थ्य प्रणाली अब भी जलने का शिकार लोगों की जरूरतों को पूरी तरह नहीं समझ पाई है। अध्ययन के मुताबिक अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में जलने से बचे मरीजों को न केवल बुनियादी सेवाओं की कमी झेलनी पड़ती है, बल्कि उन्हें सामाजिक दूरी, संवेदनहीन व्यवहार और मानसिक उपेक्षा का भी शिकार होना पड़ता है।

इस अध्ययन ने उन सच्चाइयों को उजागर किया है, जिन पर आज तक शायद ही किसी ने खुलकर बात की हो।

यह दुनिया में अपनी तरह का पहला ऐसा अध्ययन है जो विशेष रूप से अस्पतालों में जलने वाले मरीजों के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव और उपेक्षा पर केंद्रित है। शोध में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, मरीजों और कानूनी विशेषज्ञों के साक्षात्कार को शामिल किया गया है। इसके जरिए नीति-निर्माताओं के लिए कई व्यावहारिक सिफारिशें की गई हैं।

दुनिया भर में जलने से जुड़ी घटनाएं स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुकी हैं। आंकड़ों पर नजर डाले तो वैश्विक स्तर पर हर साल 180,000 लोगों की मौत जलने की वजह से हो रही है। इनमें से अधिकतर मामले कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में सामने आते हैं।

भारत में भी यह समस्या बेहद गंभीर है। आंकड़ों के मुताबिक देश में औसतन हर साल 21 लाख लोग जलने से घायल हो रहे हैं, जिनमें से करीब 25,000 की मौत हो जाती है। वहीं 14 लाख लोग ऐसी परेशानियों से जूझते हैं, जो जीवनभर उनका साथ नहीं छोड़तीं।

शोध के अनुसार, भले ही चिकित्सा सुविधाओं में सुधार से पीड़ितों की जान बचने की संभावनाएं बढ़ गई हैं, लेकिन अस्पतालों में अब भी संसाधनों की भारी कमी, स्टाफ पर दबाव और प्रणालीगत खामियों के चलते मरीजों को असमान और अमानवीय इलाज का सामना करना पड़ रहा है।

स्वास्थ्य व्यवस्था में बदलाव की जरूरत

विशेष रूप से वे मरीज जो सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं या जिनके शरीर पर स्थाई निशान हैं, उन्हें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक पीड़ा झेलनी पड़ती है।

हाल के वर्षों में देखें तो भारत ने जलने का शिकार लोगों के आपातकालीन इलाज में अच्छी प्रगति की है, लेकिन लंबे समय से चली आ रही समस्याएं—जैसे सामाजिक भेदभाव, मानसिक स्वास्थ्य और ठीक हो चुके मरीजों को फिर से समाज में जोड़ना, अब भी काफी हद तक उपेक्षित है।

यह अध्ययन उत्तर प्रदेश में किया गया, जो भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। यहां की जनसंख्या 20 करोड़ से अधिक है, जिनमें से करीब 78 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। स्वास्थ्य सुविधाऐं बेहद सीमित हैं। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि भारत में मरीजों की देखभाल से जुड़ी व्यवस्था में व्यापक सुधार की तत्काल आवश्यकता है।

अध्ययन में जोर दिया गया है कि अस्पतालों में सिर्फ ढांचागत कमियां ही नहीं, बल्कि मरीजों और स्टाफ के बीच व्यवहार को भी सुधारने की जरूरत है।

अध्ययन में शामिल पीड़ितों का कहना है, अस्पताल में भर्ती के दौरान उन्हें आर्थिक स्थिति के आधार पर इलाज में भेदभाव, सामाजिक अकेलापन और सहानुभूतिपूर्ण संवाद की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

अध्ययन में इन समस्याओं से निपटने के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। स्वास्थ्यकर्मियों को जलने से जुड़ी सामाजिक धारणा, मरीज-केंद्रित देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य सहायता पर विशेष प्रशिक्षण और परामर्श दिया जाने चाहिए। साथ ही, चिकित्सा और नर्सिंग पाठ्यक्रमों में सहानुभूतिपूर्ण संवाद और जलने के बाद के मानसिक व सामाजिक पुनर्वास को शामिल किया जाना जरूरी है।

अस्पतालों में विशेष रूप से सरकारी सुविधाओं में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और पुनर्वास व्यवस्था को मजबूत किया जाना चाहिए। इसके अलावा, भेदभाव विरोधी नीतियां बनाई जानी चाहिए जो विशेष रूप से जलने से प्रभावित या विकलांग मरीजों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखें।

सरकार, कानूनी सहायता सेवाओं और सामाजिक संगठनों को मिलकर जागरूकता बढ़ानी होगी और पीड़ितों के समाज में पुनःस्थापन के लिए सहयोग करना होगा। पीड़ितों के लिए सम्मानजनक और समावेशी माहौल बनाने के लिए समय पर प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए, जिसमें एसिड अटैक पीड़ितों के लिए कानूनी संरक्षण और सरकार, अस्पताल तथा समुदायों के बीच बेहतर समन्वय भी शामिल है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in