“जोखिम का स्रोत खत्म होने के बाद भी जारी रहने वाली बीमारी है सिलिकोसिस”
सिलिकोसिस की पहचान न होने पर अक्सर डॉक्टरों पर सवाल उठाए जाते हैं। इस पर आपकी क्या राय है?
सिलिकोसिस को स्पष्ट रूप से न पहचाने जाने में कई कारण हैं। अधिकांश डॉक्टर कहते हैं कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के क्लासिफिकेशन ऑफ न्यूमोकोनिओसिस रेडियोग्राफ्स में प्रशिक्षित नहीं किया गया है। यह एक मिथक है क्योंकि यह क्लासिफिकेशन एक नामकरण उपकरण है, न कि निदान उपकरण। सिलिका के संपर्क का इतिहास और फाइब्रोसिस के लक्षण वाले किसी भी श्रमिक को सिलिकोसिस के संदिग्ध की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके बाद आईएलओ क्लासिफिकेशन के अनुसार, विशेषज्ञों और एनआईओएच जैसे संस्थानों की मदद से वर्गीकृत किया जा सकता है। एक अन्य संभावित कारण कानूनी जटिलताएं हो सकती हैं जो सिलिकोसिस के निदान के बाद उत्पन्न होती हैं। देश के कानून के अनुसार, यदि सिलिकोसिस का निदान किया जाता है और उचित प्राधिकरण को सूचित नहीं किया जाता है तो दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। इसलिए दंडात्मक कार्रवाई के बजाय यदि सिलिकोसिस का निदान करने पर प्रोत्साहन दिया जाए तो बेहतर होगा। ठीक वैसे ही जैसे गिनी-कृमि रोग उन्मूलन के दौरान किया गया था। इसके अतिरिक्त, मरीज की क्लीनिकल हिस्ट्री लेते वक्त उसकी विस्तृत ऑक्युपेशनल हिस्ट्री को भी नियमित रूप से देखा जाना चाहिए। इससे सिलिका संपर्क के व्यावसायिक स्रोतों की पहचान करने में मदद मिलेगी और इस प्रकार सिलिकोसिस का निदान संभव हो सकेगा।
राजस्थान समेत केवल चार-पांच राज्यों में ही सिलिकोसिस नीति है, जबकि सिलिकोसिस एक राष्ट्रीय समस्या है। क्या आपको लगता है कि भारत के अन्य राज्यों के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर भी सिलिकोसिस पर कोई नीति या कार्यक्रम की आवश्यकता है?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजस्थान जैसे राज्यों में कई पत्थर की खदानें हैं और वहां व्यवसाय के कारण सिलिका का जोखिम होता है। इसलिए राजस्थान में सिलिकोसिस अन्य राज्यों की तुलना में बहुत बड़ी समस्या है। हालांकि, कोई भी राज्य जहां खनन, निर्माण और संबंधित कुटीर उद्योग संभावित मुक्त सिलिका जोखिम का कारण बनते हैं, वहां भी सिलिकोसिस नीति होनी चाहिए। देश में राष्ट्रीय सिलिकोसिस उन्मूलन कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जिसे 1990 के दशक के मध्य में शुरू किया गया था।
अध्ययनों से पता चलता है कि सिलिकोसिस को नियंत्रित किए बिना टीबी उन्मूलन कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता। इस पर आपकी क्या राय है?
मुक्त सिलिका के संपर्क में आने से तपेदिक संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। साथ ही, सिलिकोसिस की स्वप्रतिरक्षी (ऑटोइम्यून) प्रकृति के कारण लोगों में अव्यक्त तपेदिक हो सकता है। इसलिए, यदि हम तपेदिक को खत्म करना चाहते हैं तो सिलिकोसिस और सिलिको-तपेदिक से निपटना आवश्यक है।
सिलिकोसिस स्वास्थ्य के लिए कितनी गंभीर चुनौती है?
सिलिकोसिस की चुनौती गंभीर है क्योंकि यह जोखिम के स्रोत को खत्म करने के बाद भी एक प्रगतिशील बीमारी है। वर्तमान में सिलिकोसिस का कोई इलाज नहीं है और इसलिए एक तरह से घातक बीमारी है। इसके अलावा, पैरेन्काइमल फेफड़ों की बीमारी से फेफड़ों के कार्यों में कमी के कारण विकलांगता हो जाती है। लेकिन, अच्छी बात यह है कि इसे औद्योगिक स्वच्छता जैसे नमी दमन, धूल नियंत्रण उपायों और व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों से रोका जा सकता है।