भारत में मलेरिया परजीवियों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने खोजा नया तरीका

वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लास्मोडियम विवैक्स मलेरिया परजीवी संक्रमण के बाद वर्षों तक किसी व्यक्ति के लीवर की कोशिकाओं में निष्क्रिय रूप में रह सकता है
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जापान में क्योटो विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर इंटीग्रेटेड सेल मटेरियल साइंसेज (आईसीईएमएस) ने मलेरिया परजीवियों के जीवनचक्र का पता लगाने का एक तरीका खोज निकाला है। आईसीईएमएस स्टेम सेल के जीवविज्ञानी और अध्ययनकर्ता कोइची हसेगावा कहते हैंप्लास्मोडियम विवैक्स  मलेरिया परजीवी संक्रमण के बाद वर्षों तक किसी व्यक्ति के लीवर की कोशिकाओं में निष्क्रिय रूप में रह सकता है। परजीवी फिर पुन: सक्रिय हो सकता है। यह अध्ययन मलेरिया नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

प्लास्मोडियम विवैक्स  दुनियाभर में लगभग 75 लाख मलेरिया मामलों के लिए जिम्मेदार है, जिनमें से लगभग आधे से अधिक भारत में हैं। वर्तमान में, परजीवी के उपचार के लिए केवल एक लाइसेंस प्राप्त दवा है। लेकिन इस दवा के कई दुष्प्रभाव हैं और गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को इसे नहीं दिया जा सकता है। परजीवी का प्रयोगशाला में अध्ययन भी मुश्किल है।

जापान, भारत और स्विट्जरलैंड में हसेगावा और उनके सहयोगियों ने परिपक्व मलेरिया परजीवियों के प्रजनन के लिए एक सफल प्रणाली विकसित की। मानव के लीवर की कोशिकाओं को संवर्धित किया औरप्लास्मोडियम विवैक्स (पी. विवैक्स) से कोशिकाओं को संक्रमित किया गया। हालांकि यह गंभीर संक्रमण दर की समस्या को हल नहीं करता है, लेकिन इससे परजीवी के लीवर चरण के बारे में नई जानकारी का पता चलता है।

हसेगावा ने कहा, हमारा अध्ययन लीवर की कोशिकाओं में पी. विवैक्स  संक्रमण का पता लगाने के लिए एक नया तरीका ईजाद करता है। संक्रामक के चरण में पहले लक्षण के बारे में पता चलता है जिसे भारत में स्थानीय आधार पर जाना जाता है। दुनियाभर में विवैक्स  मलेरिया से गंभीर रूप से प्रभावितों का घर कहा जाता है।

शोधकर्ताओं ने भारत में मलेरिया के मच्छर (एनोफेलीज) का एक कीटघर में प्रजनन करवाया। इनमें से मादा मच्छरों को विशेष रूप से पी. विवैक्स से संक्रमित भारतीय रोगियों का रक्त चुसवाया गया।

दो सप्ताह बाद, परिपक्व स्पोरोजोइट्स, मलेरिया परजीवी के संक्रामक चरण को मच्छरों के लार ग्रंथियों से निकाला गया और पेट्री डिश में लीवर कोशिकाओं से जोड़ा गया।

वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की कृत्रिम लीवर कोशिकाओं का परीक्षण किया ताकि उन कोशिकाओं को खोजने का प्रयास किया जा सके जो मानव शरीर में बहुत से परजीवियों द्वारा संक्रमित हों। शोधकर्ताओं ने पहले ही लीवर बायोप्सी और विभिन्न लीवर कैंसर सेल लाइनों में ली गई कोशिकाओं का उपयोग करने की कोशिश की है।

हसेगावा और उनके सहयोगियों ने तीन प्रकार की स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करने की कोशिश की जिन्हें प्रयोगशाला में लीवर कोशिकाओं में बदला गया था। विशेष रूप से उन्होंने मलेरिया से संक्रमित रोगियों से रक्त कोशिकाओं को लिया। उन्हें प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं में मिला दिया, और फिर उन्हें लीवर कोशिका बनने के लिए तैयार किया गया। शोधकर्ताओं ने पता लगाने की कोशिश की क्या ये कोशिकाएं आनुवंशिक रूप से मलेरिया संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होंगी। हालांकि, परजीवी स्पोरोजोइट्स के संपर्क में आने पर कोशिकाएं केवल हल्के रूप से संक्रमित हुईं थीं।

कम संक्रमण दर का मतलब है कि लीवर कोशिकाओं का उपयोग एक ही बार में कई अलग-अलग मलेरिया-रोधी यौगिकों के परीक्षण के लिए नहीं किया जा सकता है। लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि एक विशिष्ट एंटी-मलेरिया यौगिक एक विशिष्ट रोगी के संक्रमण के लिए काम करेगा तो कोशिकाओं का परीक्षण किया जा सकता है। इससे रोगियों के लिए व्यक्तिगत उपचार में सुधार किया जा सकता है।

वैज्ञानिक परजीवी से लीवर संक्रमण के कई पहलुओं में से एक का अध्ययन करने में सक्षम थे। उन्होंने मानव प्रोटीन एलसी3 के मलेरिया प्रोटीन यूआईएस 4  के परस्पर प्रभाव को भी देखा, जिसने परजीवी को समाप्त होने से बचाया था। यह दर्शाता है कि पी. विवैक्स के जीवन चक्र में इस महत्वपूर्ण चरण की जांच के लिए उनके तरीके का उपयोग किया जा सकता है। 

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