क्या आप जानते हैं कि हर आठवें नवजात शिशु में एक ऐसा जीन वेरिएंट होता है जो उसे पीलिया से बचाता है। गौरतलब है कि नवजात शिशुओं में जन्म के समय पीलिया के लक्षण बेहद आम होते हैं। यहां तक की लगभग सभी नवजात शिशुओं में जन्म के शुरूआती कुछ दिनों में पीलिया के लक्षण होते हैं।
पीलिया, जिसे वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा और आंखों के सफेद भाग में पीलापन आ जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह पीलापन बिलीरूबिन की बढ़ती मात्रा के कारण होता है, जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है।
यह जन्म के समय बच्चों में होने वाली बेहद आम समस्या है। आमतौर पर शिशुओं में पीलिया एक सप्ताह में अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ बच्चों को विशेष उपचार की आवश्यकता होती है। इसकी वजह से शिशुओं में थकान हो जाती है, कम भूख लगती है। यदि यह स्थिति बहुत लम्बे समय तक बनी रहे तो बिलीरूबिन का उच्च स्तर दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है।
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में की गई नई रिसर्च से पता चला है कि नवजातों में एक ऐसा जीन वेरिएंट होता है जो उन्हें पीलिया जैसी खतरनाक बीमारी से सुरक्षित रख सकता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि उनकी यह नई खोज भविष्य में पीलिया के गंभीर मामलों की रोकथाम में मददगार साबित हो सकती है। इस रिसर्च के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय द्वारा इस बारे में साझा की गई जानकारी के मुताबिक इस रिसर्च में नॉर्वे के करीब 30,000 नवजात शिशुओं और उनके माता-पिता के रक्त के नमूनों का अध्ययन किया गया है। इनमें से करीब 2,000 शिशुओं को पीलिया था।
रिसर्च के दौरान लाखों जीनों के विश्लेषण में एक ऐसे जीन वैरिएंट की पहचान हुई है जो शिशुओं को पीलिया से पूरी तरह सुरक्षित रखता है। अध्ययन के अनुसार यह जीन यूरोप और अमेरिका में जन्म लेने वाले करीब 12 फीसदी शिशुओं में मौजूद होती है।
कैसे बिलीरूबिन को प्रभावित करता है एंजाइम 'यूजीटी1ए1'
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता पोल सोले नवाइस ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, "जीन वैरिएंट एक ऐसा एंजाइम बनाता है, जिसके बारे में पहले यह नहीं पता था कि यह बिलीरूबिन को प्रभावित करता है। हालांकि यह एंजाइम स्वयं पीलिया से सुरक्षा प्रदान नहीं करता, लेकिन यह खोज इसके उपचार की नई संभावनाओं के द्वार खोलती है।
अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने पाया है कि यह जीन वैरिएंट यूजीटी1ए1 नामक एक अन्य एंजाइम में वृद्धि से जुड़ा है, जो शरीर में बिलीरूबिन के मेटाबोलिज्म के लिए मायने रखता है।
इस बारे में रिसर्च दल का नेतृत्व करने वाले शोधकर्ता प्रोफेसर बो जैकबसन का प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि यह एंजाइम बिलीरूबिन को पानी में घुलनशील बना देता है। इसकी मदद से शरीर बिलीरूबिन से छुटकारा पा लेता है।"
उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि ऐसा शिशुओं के लिवर में न होकर आंतो में हो रहा है। हालांकि वयस्कों में लिवर बिलीरूबिन के मेटाबोलिज्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह अध्ययन नवजात शिशुओं की आंतों में यूजीटी1ए1 एंजाइम के बारे में अधिक जानने का अवसर प्रदान करता है। इसका लक्ष्य शिशुओं में पीलिया की रोकथाम और उपचार करना है।