खराब तरीके से पैकेटबंद बुझा हुआ चूना आंखों के लिए है खतरनाक: अध्ययन

प्लास्टिक के पैकेटों में बेचा जाने वाला बुझा चूना पैकेट से बाहर निकलकर बच्चों की आंखों में जा सकता है। इसके बाद क्षार आंख की सतह को जला देता है जिसके कारण आंख में घाव हो सकता है।
पान के पत्ते पर बुझा हुआ चूना लगाते हुए, फोटो: आईस्टॉक
पान के पत्ते पर बुझा हुआ चूना लगाते हुए, फोटो: आईस्टॉक
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बुझा हुआ चूना एक क्षारीय यौगिक है जिसका प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप में पान बनाने के लिए सुपारी और अन्य सामग्रियों के साथ किया जाता है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि घरेलू रसायनों और पटाखों के साथ-साथ चूना बच्चों के आंखों को पहुंचने वाले नुकसान का एक प्रमुख कारण है।

यह अध्ययन इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। यह हैदराबाद के एल.वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट और बेंगलुरु के नारायण नेत्रालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

आसानी से प्लास्टिक के पैकेटों में बेचा जाने वाला बुझा चूना पैकेट से बाहर निकलकर बच्चों की आंखों में जा सकता है। इसके बाद क्षार आंख की सतह को जला देता है जिसके कारण आंख में घाव हो सकता है।

घरेलू रसायनों के कारण आंखों में होने वाली जलन से पूरी तरह बचा जा सकता है। वे विशेषकर बच्चों में नेत्र रुग्णता, यहां तक कि उनमें अंधापन भी हो सकता हैं

भारतीय पान में बुझा हुआ चूना होता है, जिसे पान के पत्ते पर लगाया जाता है और सुपारी के साथ चबाया जाता है। पान में तम्बाकू भी मिलाया जाता है और क्षार इसके अवशोषण को तेज करता है। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में प्रागैतिहासिक काल से पान के सेवन के बारे में बताया जाता है। पूरे क्षेत्र में चूना अक्सर ढीले और खराब सीलबंद पैकेटों में बेचा जाता है।

चूना एक ऐसे पैकेट में रखा जाता है जो तेजी से निकलता है और सीधे किसी भी व्यक्ति की आंख में जा सकता है, जिससे रसायन पलक के अंदर जमा हो जाता है और आंख की बाहरी पारदर्शी परत कॉर्निया पर चढ़ जाता है। यहां, क्षार रासायनिक रूप से नाजुक ऊतकों को जला देता है, जिससे भारी नुकसान पहुंचता है।

कॉर्निया का किनारा, जिसे कॉर्निया लिंबस कहा जाता है, विशेष स्टेम कोशिकाओं का घर है जो कॉर्निया की भरपाई करते हैं। केमिकल से होने वाली जलन लिंबस को नष्ट कर सकती है, बदले में कॉर्निया की खुद की मरम्मत करने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।

आंखों पर केमिकल से नुकसान पहुंचाने का खतरा बुझे हुए चूने तक ही सीमित नहीं है। टॉयलेट क्लीनर और अन्य एसिड जैसे घरेलू सफाई एजेंट, साथ ही पटाखें या आतिशबाजी और यहां तक कि ट्यूबों में सुपर-ग्लू, सभी आंख संबंधी चोट का कारण बन सकते हैं।

आंखों में केमिकल से होने वाली जलन के कारण न दिखाई देने का भारी खतरा हो सकता है। उन्हें ठीक करने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है, जिसमें स्टेम-सेल प्रत्यारोपण और कॉर्नियल ग्राफ्ट शामिल हैं और इसके आजीवन प्रबंधन की आवश्यकता होगी। क्षारीय जलन का पूर्वानुमान हर बार सही नहीं हो सकता है और उपचार अक्सर सीमित सीमा तक ही दृष्टि बहाल कर पाते हैं।

चूने के सबसे अधिक खतरे में कौन है?

चूने जैसे घरेलू रसायनों तक पहुंच रखने वाले बच्चे, सुरक्षात्मक चश्मे के बिना ऐसे एजेंटों के साथ काम करने वाले वयस्क और दोनों आयु-समूहों के व्यक्ति जब पटाखों के साथ खेलते हैं तो उन्हें आंखों में जलन का खतरा होता है।

अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने 271 बच्चों (338 आंखें) और 1,300 वयस्कों (1,809 आंखें) की जांच की, जो एल.वी. प्रसाद नेत्र संस्थान और नारायण नेत्रालय अस्पताल तीव्र नेत्र संबंधी जलन (एओबी) के पीड़ित सामने आए थे।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि, इस अध्ययन में शामिल दोनों अस्पताल तृतीयक रेफरल केंद्र हैं, इसलिए वे नेत्र संबंधी जलन वाले रोगियों के लिए पहला पड़ाव नहीं हैं। इस अध्ययन के लिए, उन्होंने उन रोगियों को 'गंभीर' के रूप में पहचान की है जो चोट लगने के एक महीने के भीतर इन केंद्रों पर आए थे।

उन्होंने बताया जो मरीज बाद में आते हैं वे काफी समय पहले से आंख की बीमारी से जूझ रहे होते हैं और उनके परिणाम और भी खराब होते हैं।

चुना सबसे आम क्षार एजेंट

शोधकर्ताओं ने पाया कि एओबी वाले अधिकांश लोग पुरुष थे, जिसमें वयस्कों में 80 फीसदी से अधिक और बच्चों में 60 फीसदी से अधिक और सभी में नेत्र संबंधी जलन के 38 फीसदी मामले पाए गए, और सभी बच्चों में जलन का 45 फीसदी मामले  देखे गए।

जबकि अध्ययन में पाया गया कि जलन के लिए जिम्मेदार भौतिक या रासायनिक एजेंट बच्चों और वयस्कों के बीच अलग-अलग पाए गए। चुना दोनों समूहों में सबसे आम क्षार एजेंट था, जिससे बच्चों में 32 फीसदी और वयस्कों में 7 फीसदी क्षार जलन के लिए जिम्मेवार पाया गया। लगभग 17 फीसदी बच्चे पटाखों के कारण जलन से पीड़ित थे और अन्य 14 फीसदी की आंखों में सुपर-ग्लू चला गया था। टॉयलेट या सतह की सफाई करने वाले तरल पदार्थ जैसे एसिड भी बच्चों और वयस्कों दोनों में जलन का कारण बनते हैं।

अध्ययन के मुताबिक, 60 फीसदी से अधिक बच्चे कम श्रेणी के जलन से पीड़ित थे और उन्हें चिकित्सा उपचार से फायदा हुआ। साथ ही, दुख की बात है कि अधिक चोट, पुरानी जटिलताओं और न देख पाने के परिणामों वाले व्यक्तियों का अनुपात बच्चों में अधिक पाया गया।

किन निवारक उपायों की आवश्यकता है?

इन सभी चोटों से बचा जा सकता है यदि उन्हें पैदा करने वाले पदार्थ को बच्चों की पहुंच से दूर सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जाए। जिन वयस्कों को कार्यस्थल पर चोट लगने का खतरा है, उदाहरण के लिए, सफेदी में चूना भी मौजूद होता है, उन्हें सुरक्षात्मक आंखों के चश्मे से फायदा होगा।

अध्ययन में कहा गया कि, काउंटर पर बेचे जाने वाले चूने के पैकेट में सुधार करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए। बेहतर गुणवत्ता वाले प्लास्टिक और पैकेट पर सीलिंग और स्पष्ट चेतावनी संदेश बच्चों के लिए खतरों को कम करने में मदद कर सकते हैं। लोगों को केवल क्षार और अम्ल के पर्याप्त रूप से सीलबंद पैकेट ही खरीदने चाहिए और उन्हें सुरक्षात्मक चश्मे के साथ उपयोग करने पर जोर देना चाहिए।

अध्ययन का एक प्रमुख निष्कर्ष यह है कि आंखों से संबंधी जलन वाले सभी रोगियों में से लगभग 60 फीसदी 24 घंटों के भीतर अस्पताल नहीं पहुंच पाए। यह भी पाया गया कि 20 फीसदी से अधिक रोगियों को आपातकालीन देखभाल तक पहुंचने से पहले आंख धोने की कोई सुविधा नहीं मिली।

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