खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट को नियंत्रित करने के लिए 53 देशों में नीतियां अमल में लाइ जा रही हैं। इन उपायों की मदद से हर साल करीब 183,000 लोगों की जान बच सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह जानकारी ट्रांस फैट को खत्म करने में हुई वैश्विक प्रगति पर जारी अपनी नई रिपोर्ट में दी है।
रिपोर्ट के मुताबिक इन नीतियों से दुनिया की 46 फीसदी आबादी यानी 370 करोड़ लोगों को फायदा पहुंचा है। 2018 की तुलना में देखें तो यह एक बड़ा सुधार है, जब केवल छह फीसदी आबादी यानी महज 50 करोड़ लोग ही इन नीतियों के दायरे में थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी इस रिपोर्ट में 2018 से 2023 के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
इस रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ट्रांस फैट पर पाबन्दी लगाने के लिए देशों द्वारा उठाए कदमों की जानकारी दी है। साथ ही इसके उन्मूलन के लिए क्या कुछ किया जा सकता है उससे जुड़े सिफारिशें पेश की हैं।
गौरतलब है कि बेहद तले भोजन, डिब्बा बन्द आहार, चिप्स, फ्राइज, कुकीज, केक, बर्गर और पिज्जा जैसे रोजमर्रा के खाद्य पदार्थों में मौजूद ट्रांसफैट हर साल तीन लाख से ज्यादा जिंदगियों को लील रहा है। आज चाहे बूढ़ा हो या जवान हर कोई ह्रदय सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहा है। हार्ट अटैक की समस्या तो बेहद आम होती जा रही है, देखा जाए तो यह ट्रांस फैट इसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक है।
क्या है यह ट्रांस फैट
बता दें कि ट्रांस फैट या ट्रांस फैटी ऐसिड, अनसैचुरेटेड फैट है, जो खाद्य उत्पादों में वसा का सबसे खराब रूप है। यह या तो प्राकृतिक रूप से पाया जाता है या फिर इसे आर्टिफिशियल तरीके से खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है। इसके अत्यधिक सेवन से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर मसालेदार और तेल युक्त खाद्य पदार्थों जैसे फास्ट फूड में बहुत ज्यादा ट्रांस फैट होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ट्रांस फैट या ट्रांस फैटी ऐसिड की वजह से धमनियां अवरुद्ध हो जाती है, नतीजन दिल के दौरे व मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है। ट्रांस फैट ह्रदय, दिमाग और लीवर के लिए बड़ा खतरा है, साथ ही इससे डायबिटिज होने की आशंका भी बनी रहती है।
वयस्कों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश है कि ट्रांस फैट का सेवन डेली कैलोरी इनटेक के एक फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए, जो 2,000 कैलोरी आहार के लिए प्रतिदिन 2.2 ग्राम से कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख डॉक्टर टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस के भी अनुसार ट्रांस फैट से स्वास्थ्य कोई कोई लाभ नहीं मिलता, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए कहीं ज्यादा हानिकारक होता है।
यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2023 के अन्त तक, वैश्विक खाद्य आपूर्ति से ट्रांस फैट को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा था, हालांकि यह लक्ष्य तो हासिल नहीं हुआ, फिर भी इस दिशा में दुनिया के हर क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इस प्रगति की मदद से सालाना करीब दो लाख जिंदगियां बचाने में मदद मिली है।
जनवरी 2024 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने औद्योगिक स्तर पर निर्मित ट्रांस फैट या आईटीएफए को खत्म करने की दिशा में हुई प्रगति के लिए पांच देशों को सम्मानित किया था। इन देशों में डेनमार्क, लिथुएनिया, पोलैंड, सऊदी अरब, थाईलैंड शामिल थे। 2023 में सात देशों में औद्योगिक स्तर पर निर्मित ट्रांस फैट को नियंत्रित करने से जुड़ी नीतियां लागू की गई। इन देश में मिस्र, मैक्सिको, नाइजीरिया, नॉर्थ मैसेडोनिया, फिलिपीन्स, मोलदोवा और यूक्रेन शामिल थे।
रिपोर्ट के मुताबिक इस उत्साहजनक प्रगति के बावजूद, दुनिया भर में 400 करोड़ से ज्यादा लोग अब भी हानिकारक ट्रांस फैट से बचाव के लिए बनाई नीतियों के दायरे से बाहर हैं। इनमें से अधिकांश लोग अफ्रीका और पश्चिमी प्रशान्त क्षेत्र में रह रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के पोषण व खाद्य संरक्षा विभाग की निदेशक डॉक्टर फ्रेंसेस्को बांका ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि ट्रांस फैट से जुड़ी नीतियों को पारित करना महत्वपूर्ण है, लेकिन स्वास्थ्य को स्थाई तौर से इसका फायदा मिल सके इसके लिए इन नीतियों को लागू और उनकी निगरानी करना बेहद महत्वपूर्ण है।
भारत के लिए भी बड़ी समस्या है ट्रांस फैट
उन्होंने पहले भी इसके खतरे को लेकर आगाह करते हुए कहा था कि ट्रांस फैट, चीनी और नमक से भरपूर खाद्य उत्पादों और पेय पदार्थों का बड़े पैमाने पर किया जाने वाला आक्रामक प्रचार बच्चों में अस्वास्थ्यकर खाने की आदतों को जन्म देता है। हालांकि उन्होंने भरोसा दिलाया है कि ट्रांस फैट उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इसकी मदद इस जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि केवल आठ अन्य देशों में सर्वोत्तम नीतियों को अपनाए जाने से, दुनिया भर में ट्रांस फैट की वजह से होने वाली मौतों को 90 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
देखा जाए तो जंक या अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड भारतीय बच्चों के लिए भी बड़ी समस्या बन चुके हैं। यही वजह है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ लम्बे समय से इसके खतरों के बारे में जागरूक करता रहा है। इसपर सीएसई ने हाल ही में एक व्यापक अध्ययन भी किया था, जिसमें जंक फ़ूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया गया था।
इस अध्ययन के अनुसार भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है।
देश में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री को देखें तो 2005 में जहां यह दो किलोग्राम प्रति व्यक्ति थी, जो 2019 में बढ़कर छह किलोग्राम तक पहुंच गई। अनुमान है कि 2024 तक यह आंकड़ा आठ किलोग्राम तक पहुंच सकता है।
हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने भी जंक फूड के पैकेटों पर शुगर, साल्ट और फैट की वैज्ञानिक सीमा से सम्बंधित जानकारी दिए जाने की मांग की थी, जिससे ग्राहकों को इनके बारे में सही जानकारी मिल सकें और वो जंक फूड को लेकर सही फैसला ले सकें।
खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने भारत में ट्रांस फैट की सीमा निर्धारित करते हुए नियम जारी किए थे, जिनके मुताबिक सभी वसा और तेलों में जनवरी 2021 से ट्रांस-फैटी एसिड की मात्रा तीन फीसदी जबकि जनवरी 2022 से दो फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही भारत ट्रांस फैट के उपयोग को कम करने वाले देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है। श्रीलंका ने भी इसकी रोकथाम को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी है, हालांकि उसे जनवरी 2025 से लागू किया जाएगा।