पंजाब में नदी नालों के पास रहने वालों में कैंसर का खतरा अधिक: अध्ययन

आईसीएमआर के अध्ययन में भारी धातुओं के उच्च स्तर से जल प्रदूषण की पुष्टि हुई है
लुधियाना से सतलुज तक बहने वाला 40 किलोमीटर लंबा धारा बुढ्ढा नाला औद्योगिक कचरे और नगर निगम के कचरे से बुरी तरह प्रदूषित हो गई है, जिससे पानी काला हो गया है और दुर्गंध आ रही है। विकास चौधरी / सी.एस.ई.
लुधियाना से सतलुज तक बहने वाला 40 किलोमीटर लंबा धारा बुढ्ढा नाला औद्योगिक कचरे और नगर निगम के कचरे से बुरी तरह प्रदूषित हो गई है, जिससे पानी काला हो गया है और दुर्गंध आ रही है। विकास चौधरी / सी.एस.ई.
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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने सरकार को 2024 के एक अध्ययन के बारे में जानकारी दी है, जिसमें कहा गया है कि पंजाब में नदी नालों के पास रहने वाले लोगों में कैंसर होने का खतरा बहुत अधिक है।

कैंसर के मामलों पर एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय मंत्री प्रतापराव जाधव ने लोकसभा को बताया कि पंजाबी विश्वविद्यालय और पटियाला में थापर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि सीसा, लोहा और एल्युमीनियम जैसी भारी धातुओं का स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है।

शोधकर्ताओं ने पंजाब में घग्गर नदी की गंदे पानी के नालों का विश्लेषण किया और अध्ययन क्षेत्र में भारी मात्रा में भारी धातु प्रदूषण की मौजूदगी को उजागर किया।

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लुधियाना से सतलुज तक बहने वाला 40 किलोमीटर लंबा धारा बुढ्ढा नाला औद्योगिक कचरे और नगर निगम के कचरे से बुरी तरह प्रदूषित हो गई है, जिससे पानी काला हो गया है और दुर्गंध आ रही है। विकास चौधरी / सी.एस.ई.

शोधकर्ताओं का कहना है कि नदियों में भारी धातुओं का बढ़ता प्रदूषण जमीन के नीचे के पानी (भूजल) को भी खराब कर रहा है। इससे पीने के पानी पर गंभीर खतरा पैदा हो रहा है। उन्होंने बताया कि इसका सबसे बड़ा कारण बिना साफ किए गंदे पानी का नदियों में छोड़ा जाना है।

शोधकर्ताओं ने पंजाब में गंदे पानी की नालियों में भारी धातुओं को डालने से संबंधित आंकड़े उपलब्ध न होने पर भी चिंता जताई। उन्होंने यह भी बताया कि जल गुणवत्ता सूचकांक और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है। ये निष्कर्ष इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

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इन कमियों को दूर करने के लिए, शोधकर्ताओं की टीम ने अक्टूबर 2017 से जुलाई 2018 के बीच घग्गर नदी की तीन नालों सिरहिंद चोए, बड़ी नदी और धाकनशु ड्रेन से अलग-अलग मौसम में नमूने एकत्र किए। इनमें मानसून के बाद, सर्दी , गर्मी और मानसून के मौसम शामिल थे।

शोधकर्ताओं ने सीसा, कैडमियम, आयरन, एल्युमीनियम और निकल जैसी धातुओं की मात्रा का निर्धारण किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कैडमियम, निकल और सीसे को मनुष्यों के लिए कैंसरकारी (कार्सिनोजेनिक) श्रेणी में रखा है।

लोग भारी धातुओं के संपर्क में दो तरीकों से आ सकते हैं। एक, सीधे तौर पर, जब वे सतही जल (नदी, झील आदि) को पीते हैं। दूसरा, परोक्ष रूप से, जब वे घरेलू कार्यों जैसे नहाने और कपड़े धोने के दौरान इस पानी के संपर्क में आते हैं।

अध्ययन में पाया गया कि मानसून के दौरान पानी में आयरन और एल्युमीनियम की मात्रा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय की गई सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक थी। शोधकर्ताओं के अनुसार, इसकी बड़ी वजह खेतों से बहकर आने वाला पानी और बिना साफ किया गया गंदा पानी नदियों व नालों में छोड़ा जाना है। जब बारिश होती है, तो खेतों में इस्तेमाल किए गए उर्वरक, कीटनाशक और अन्य रसायन पानी के साथ बहकर नदी-नालों में पहुंच जाते हैं। इसके अलावा, औद्योगिक और घरेलू गंदा पानी भी बिना शोधन के नालियों में छोड़ा जाता है, जिससे भारी धातुओं का स्तर बढ़ जाता है और जल प्रदूषण खतरनाक रूप से बढ़ जाता है।

अध्ययन में पाया गया कि सभी स्थानों पर सीसे (लेड) के लिए हैजार्ड इंडेक्स (एचआई) मान 1 से काफी अधिक था। यह सूचकांक पानी के सीधे सेवन और त्वचा संपर्क से होने वाले गैर-कार्सिनोजेनिक (गैर-कैंसरकारी) जोखिम को मापता है। अगर एचआई का स्तर 1 से अधिक हो जाए, तो यह संकेत देता है कि स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से सीसा और कैडमियम जैसे जहरीले तत्वों को नियंत्रित करने और हटाने की सख्त जरूरत बताई। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि बच्चों में गैर-कैंसरकारी स्वास्थ्य जोखिम वयस्कों की तुलना में अधिक होता है, जिससे उनकी सेहत पर ज्यादा खतरा हो सकता है।

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