ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 24 प्रतिशत बच्चों की ही ऑनलाइन पढ़ाई नियमित रूप से हुई : सर्वेक्षण

15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गरीब परिवारों के 1,400 बच्चों पर किया गया हालिया सर्वेक्षण बताता है कि कोरोना काल में पढ़ाई पटरी से उतर गई है
Photo source: https://gbc-education.org/gep-report-release.
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कोरोनोवायरस महामारी के दौर में भारत के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल 17 महीनों यानी करीब 500 दिनों से बंद रहे। इस दौरान साधन संपन्न कुछ बच्चे ही अपनी पढ़ाई जारी रख पाए हैं। जबकि गरीब तबकों के अधिकांश बच्चे न केवल पढ़ाई से कट गए हैं बल्कि स्कूल बंद होने के कारण मिड डे मील से भी वंचित हो गए जिसका उनके पोषण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ) में गरीब परिवारों के 1,400 बच्चों पर किया गया हालिया सर्वेक्षण बताता है कि कोरोना काल में पढ़ाई पटरी से उतर गई है। “लॉक्ड ऑउट : इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन” नामक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले डेढ़ साल से स्कूल बंद होने से ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए हैं।

सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं, 37 प्रतिशत बच्चे बिल्कुल नहीं पढ़ रहे हैं और करीब 50 प्रतिशत बच्चे कुछ शब्दों से अधिक नहीं पढ़ पाए हैं। अगस्त में किए गए सर्वेक्षण के समय ग्रामीण क्षेत्रों के 28 प्रतिशत बच्चे नियमित पढ़ाई कर पा रहे थे। शहरी क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले थोड़ा बेहतर है। शहरी क्षेत्रों में 24 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में दलित और आदिवासी बच्चों की पढ़ाई की स्थिति सबसे चिंताजनक थी। 

बच्चों के अधिकांश माता पिता ने माना कि लॉकडाउन के कारण उनके बच्चों की पढ़ने-लिखने की क्षमता में कमी आई है। शहरी क्षेत्रों के 76 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों के 75 प्रतिशत अभिभावकों ने माना कि उनके बच्चों की पढ़ने लिखने की क्षमता में कमी आई है। इसी कारण शहरी क्षेत्रों 90 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों के 97 प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि स्कूल खोल दिए जाने चाहिए।    

पढ़ाई से पिछड़ने का कारण

सर्वेक्षण के अनुसार, ऑनलाइन पढ़ाई न हो पाने एक कारण स्मॉर्टफोन न होना है। हालांकि जिन परिवारों में स्मार्टफोन है, वहां भी पढ़ाई की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखने को नहीं मिला। शहरी क्षेत्रों के जिन घरों में स्मार्टफोन है, वहां केवल 31 प्रतिशत बच्चे ही नियमित पढ़ाई कर पाए हैं। ग्रामीण घरों में स्मार्टफोन वाले घरों में 15 प्रतिशत बच्चे की नियमित पढ़ाई जारी रख पाए। दरअसल घरों के स्मार्टफोन का इस्तेमाल मुख्य रूप से काम करने वाले वयस्क कर रहे हैं। इस कारण यह स्मार्टफोन पढ़ने करने वाले बच्चों को नहीं मिल पाता। केवल 9 प्रतिशत बच्चों के पास ही अपना स्मार्टफोन उपलब्ध था। ऑनलाइन पढ़ाई न हो पाने का अन्य कारण थे नेटवर्क की दिक्कत और डाटा के लिए पैसों का अभाव। ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई न होने पाने का एक प्रमुख कारण यह भी था कि स्कूल ऑनलाइन सामग्री नहीं भेज रहे और जो स्कूल अगर भेज रहे हैं, अभिभावकों को उसकी जानकारी नहीं है।

26 प्रतिशत छात्रों ने छोड़ा प्राइवेट स्कूल

सर्वेक्षण के अनुसार, मार्च 2020 में 20 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे थे। लॉकडाउन के दौरान बहुत से प्राइवेट स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दीं और फीस लेना जारी रखा। गरीब अभिभावक फीस आदि देने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि उनकी आय प्रभावित हो रही थी और ऑनलाइन पढ़ाई से वे संतुष्ट भी नहीं थे। इसी कारण सर्वेक्षण में शामिल 26 प्रतिशत बच्चों का दाखिला प्राइवेट से सरकारी स्कूल में करवा दिया गया। सर्वेक्षण करने वालों को ऐसे बहुत से अभिभावक मिले जिन्होंने शिकायत की कि प्राइवेट स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट देने से पहले पूरी फीस जमा करने का दबाव बना रहे थे।

सर्वेक्षण की खास बातें

                                                        शहरी          ग्रामीण

क्या नियमित ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं             24            8

आजकल बिल्कुल पढ़ाई नहीं कर रहे हैं              19            37

30 दिन से शिक्षक से नहीं मिले                      51             58

3 महीने से कोई परीक्षा नहीं हुई                     52             71

कुछ शब्द से ज्यादा नहीं पढ़ पाते                    42            48   

(आंकड़े प्रतिशत में)

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