दुनिया भर में दो अरब से अधिक लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से सीखने, , कौशल और प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य पर असर पड़ता है। जिन बच्चों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है, उनके वयस्क होने तक इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
विशेष रूप से जिंक की कमी के कारण 2011 में दुनिया भर में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की लगभग 1,16,000 मौतों हुई। इसके अलावा, दुनिया भर में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के कारण 2050 तक 17.5 करोड़ से अधिक लोगों में जिंक की कमी हो सकती है।
मिट्टी में खनिज फसल उत्पादकता और फसलों की खनिज की मात्रा दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्धारक हैं, इसलिए उन फसलों पर निर्भर लोगों की आबादी की पोषण स्थिति पर इसका असर पड़ता है।
विकासशील देशों में आबादी का एक बड़ा हिस्सा खनिज की कमी के अधिक खतरे में है क्योंकि वे ऐसी मिट्टी पर उगाई जाने वाली फसलों का सेवन करते हैं जिनमें जैव उपलब्ध खनिज की मात्रा कम होती है। मिट्टी में खनिज की कम उपलब्धता के कारण कई अनाजों, फलियों और सब्जियों के खाने योग्य हिस्से में खनिज की मात्रा कम हो जाती है और खनिजों से भरे उर्वरक इस समस्या को ठीक कर सकते हैं।
इसलिए कई देशों जैसे - फिनलैंड, चीन और तुर्की ने कृषि संबंधी व्यवस्था को नियोजित किया है, जिसमें सेलेनियम, आयोडीन और जस्ता जैसे सूक्ष्म खनिजों के साथ उर्वरक या सिंचाई जल को कुशल बनाया गया है। यह फसलों में खनिज की मात्रा और लोगों द्वारा घरेलू खनिज को बढ़ाने के सफल प्रयास हैं।
साइंटिफिक रिपोर्ट नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि, किसी भी बड़े अध्ययन ने भारत में बच्चों की पोषण स्थिति या स्वास्थ्य पर मिट्टी में खनिज की उपलब्धता के बीच संबंध की जांच नहीं की है। जबकि भारत में दुनिया की आबादी के लगभग एक-तिहाई हिस्सा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से जूझ रहा है।
भारत में बच्चों के बौनेपन की दर लगभग 35 फीसदी है, 2016 में विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों के नुकसान के लिए कुपोषण प्रमुख खतरों में से एक था, जिसके कारण भारत में सभी मौतों का अनुमानित 0.5 फीसदी था।
इसके अलावा, भारत में लगभग 13.8 करोड़ लोग,देश की आबादी के 10 फीसदी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण निवासी हैं। इनमें से बहुत से लोग किसान हैं जिनके पास कम मात्रा में जमीन है और भोजन के लिए, विशेषकर मुख्य अनाज के लिए, अपने स्वयं के उत्पादन पर निर्भर हैं।
भारत में 35 फीसदी से अधिक मिट्टी में जिंक की कमी और 11 फीसदी में लोहे की कमी होने का अनुमान है।
यह अध्ययन भारत में कई बच्चों और वयस्कों के स्वास्थ्य परिणामों और मिट्टी में खनिज उपलब्धता के बीच संबंधों का मूल्यांकन करता है।
अध्ययन के मुताबिक पूरे भारत में लगभग तीन लाख बच्चों और दस लाख से अधिक वयस्क महिलाओं के स्वास्थ्य के आंकड़ों को राष्ट्रव्यापी मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम से प्राप्त 2.7 करोड़ से अधिक मिट्टी के परीक्षणों के साथ जोड़कर उनका विश्लेषण किया गया। इसका उद्देश्य लोगों के शारीरिक विकास और हीमोग्लोबिन के स्तर को मापना तथा कमियों को दूर करना था।
अध्ययन में पाया गया कि मिट्टी में जस्ते (जिंक) के नमूनों के बढ़े हुए अनुपात वाले जिलों में बच्चों में बौनापन और कम वजन की दर काफी कम पाई गई। मिट्टी जिंक की वृद्धि मानक के अनुरूप पाई गई, परीक्षणों में जिंक के अनुपात में 24.3 फीसदी की वृद्धि देखी गई। जो प्रति 1000 बच्चों में 10.8 की कमी और साथ ही बौनेपन में कमी के साथ जुड़ी हुई है। प्रति 1000 बच्चों में 11.7 में कम वजन देखा गया।
मिट्टी में जिंक की उपलब्धता भी महिलाओं की लंबाई में वृद्धि से जुड़ी होती है। यदि मिट्टी में जिंक की मात्रा मानक के अनुरूप या अधिक होती है तो यह महिलाओं की ऊंचाई में 0.29 सेमी की वृद्धि होती है।
हालांकि अध्ययन में कहा गया है कि, जिला-स्तरीय मिट्टी में जिंक की उपलब्धता का बच्चों के कमजोर होने से कोई संबंध नहीं दिखता है। यह पोषण से संबंधित अध्ययनों के अनुरूप है, जो बच्चों में जिंक की स्थिति और रैखिक वृद्धि के बीच एक मजबूत संबंध दिखाता है, लेकिन बच्चों में जिंक की स्थिति और वजन बढ़ने के बीच केवल एक कमजोर संबंध है।
अध्ययन में कहा गया कि सबसे पुख्ता निष्कर्ष यह है कि मिट्टी में जिंक की उपलब्धता में कमी बचपन में बौनेपन से जुड़ी होती है। यह प्रभाव अमीर घरों में सबसे मजबूत प्रतीत होता है, शायद यह इस बात को साफ करता कि गरीब घरों के बच्चों को जिंक के साथ-साथ कई और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो बौनेपन के लिए जिम्मेदार हैं।
अध्ययनकर्ता ने कहा कुल मिलाकर, अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि भारत में विशेष रूप से कृषि संबंधी जिंक के संभावित लाभों पर और अधिक विचार और अध्ययन किया जाना चाहिए।