पांच से छह वर्षों में एक और महामारी को जन्म दे सकती हैं नई उभरती जूनोटिक बीमारियां: यूएनईपी रिपोर्ट

दुनिया में करीब 17 लाख अज्ञात वायरस हैं, जिन्हें अभी खोजा जाना बाकी है
इंसान खुद ही लिख रहा अपने विनाश की पटकथा: सेवन के लिए जहरीले जीवों से लाओस में बनाई जा रही शराब; फोटो: आईस्टॉक
इंसान खुद ही लिख रहा अपने विनाश की पटकथा: सेवन के लिए जहरीले जीवों से लाओस में बनाई जा रही शराब; फोटो: आईस्टॉक
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संयुक्त राष्ट्र ने एक नई रिपोर्ट में चेताया है कि नई उभरती जूनोटिक बीमारियां 2030 तक एक और महामारी को जन्म दे सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने 16 जुलाई 2024 को जारी अपनी इस रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में लगातार हो रहे बदलावों ने प्रजातियों के आवास क्षेत्रों को प्रभावित किया है।

इसकी वजह से प्रजातियों के बीच नए संपर्क पैदा हो रहे हैं, जिससे जानवरों से इंसानों में बीमारियों के फैलने यानी जूनोटिक स्पिलओवर का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि यह जूनोटिक स्पिलओवर एक और महामारी को जन्म दे सकता है।

गौरतलब है कि जानवरों, पक्षियों और दूसरे जीवों से इंसानों में फैलने वाली संक्रामक बीमारियों को वैज्ञानिक रूप से जूनोसिस या फिर ‘जूनोटिक डिजीज’ कहते हैं। यह बीमारियां दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती हैं क्योंकि यह बड़ी तेजी से अप्रत्याशित रूप से फैलती हैं।

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'नेविगेटिंग न्यू होराइजन्स: ए ग्लोबल फोरसाइट रिपोर्ट ऑन प्लेनेटरी हेल्थ एंड ह्यूमन वेलबीइंग' में इस बात पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि, "यह पहले से ही ज्ञात है कि भूमि उपयोग में आ रहे बदलावों, वन विनाश, आवास क्षेत्रों को होते नुकसान, बढ़ते शहरीकरण, वन्यजीवों की तस्करी और असंतुलित कृषि पद्धतियों जैसी गतिविधियों से नई जूनोटिक बीमारियों के उभरने और फैलने का खतरा बढ़ जाता है।"

रिपोर्ट में हालिया अध्ययनों का हवाला देते हुए लिखा है कि जूनोटिक स्पिलओवर की घटनाएं सालाना पांच से आठ फीसदी बढ़ रही हैं। अनुमान है कि 2020 की तुलना में 2050 तक सबसे आम रोगजनकों के कारण मनुष्यों में 12 गुणा अधिक मौतें होंगी।

रिपोर्ट में कोविड-19, इबोला, एच5एन1, मर्स, निपाह, सार्स और इन्फ्लूएंजा ए/एच1एन1 जैसे पिछले प्रकोपों पर संज्ञान लिया गया है, जिनके कारण बड़े पैमाने पर इंसानी जीवन और आर्थिक नुकसान हुआ है।

यह बीमारियां इस बात को उजागर करती है कि कैसे अनजाने रोगजनकों से महामारी फैल सकती हैं। यह दर्शाती हैं कि जब हमें पहले से नई बीमारियों के बारे में पता नहीं होता तो वे कितनी खतरनाक हो सकती हैं।

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उदाहरण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 24 देशों में इंसानों में फैले एवियन इन्फ्लूएंजा (एच5एन1) के 891 मामलों की जानकारी दी है। लोग उन जीवित और मृत पक्षियों के संपर्क में आने से बीमार हुए थे, जो इस वायरस से संक्रमित थे।

रिपोर्ट में इस बात की भी आशंका जताई है कि अज्ञात या नजरअंदाज कर दिए गए रोगाणुओं के चलते महामारी फैल सकती है। दुनिया में 17 लाख अज्ञात वायरस हैं जो गंभीर चिंता का विषय हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भूमि-उपयोग में आता बदलाव, पर्यावरण के लिहाज से नुकसान देह कृषि पद्दतियां और वन विनाश जैसे पारिस्थितिकीय बदलाव जूनोटिक रोगों के उभरने की मुख्य वजहें हैं। ये गतिविधियां इंसानों और जंगली जीवों के बीच संपर्क को बढ़ाती हैं। नतीजन इन बीमारियों का प्रजातियों के बीच फैलना आसान हो जाता है। ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रह के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए इन कारकों की निगरानी बेहद महत्वपूर्ण है।

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कैसे इंसानों में फैलती हैं जूनोटिक बीमारियां

आमतौर पर यह बीमारियां तब फैलती हैं जब कोई वायरस अपने मेजबान (होस्ट) से अलग एक नया होस्ट खोजने में सक्षम हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई जानवर किसी खास वायरस से ग्रस्त है और वो किसी प्रकार इंसानों या दूसरे जानवरों के संपर्क में आता है तो वो उन्हें भी संक्रमित कर देता है। इस तरह यह बीमारियां एक से दूसरे के जरिए पूरे समाज में फैलना शुरू कर देती हैं।

इस तरह का प्रसार तब ज्यादा होता है जब वायरस इंसान जैसे होस्ट के संपर्क में आता है या फिर उनमें म्यूटेशन होने लगते हैं। देखा जाए तो इंसान और जानवरों के बीच भौतिक नजदीकी इस वायरस को इंसानों में फैलने के लिए आदर्श परिस्थितियां बनाती है।

पिछले 100 वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो औसतन हर साल दो वायरस अपने प्राकृतिक वातावरण से निकलकर इंसानों में फैल रहे हैं, लेकिन प्रकृति के विनाश की बढ़ती दर इनके फैलने के खतरे को और बढ़ा रही है।

सीएसई के सतत खाद्य प्रणाली के कार्यक्रम निदेशक अमित खुराना के मुताबिक जूनोटिक बीमारियों का खतरा जलवायु परिवर्तन के कारण और अधिक बढ़ गया है। उनका कहना है कि कि मनुष्यों में 60 फीसदी से अधिक संक्रामक रोग जूनोटिक हैं।

उनके मुताबिक जूनोटिक बीमारियों की वजह से 260 करोड़ लोग प्रभावित हो रहें हैं। इतना ही नहीं यह हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रही हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण और वायरस के बीच गहरा संबंध है, इसलिए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तेजी से काम करना होगा।

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