आधुनिक मानव के मुंह में कम हो रही सूक्ष्मजीवों की विविधता

कांस्य युगीन दांतों के नमूनों में आधुनिक मनुष्यों की तुलना में मसूड़ों की बीमारी के लिए उत्तरदायी बैक्टीरिया टैनेरेला फोर्सिथिया की अधिक विविधता पाई गई
फोटो: आईस्टॉक
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कांस्य युग के मनुष्यों के मुंह में बैक्टीरिया की ज्यादा विविधता थी। मानव दांतों के नमूनों का विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन में पाया है कि चूना पत्थर की गुफा में 4,000 साल पुराने दांतों के संरक्षित माइक्रोबायोम से पता चला है कि आधुनिक मनुष्य माइक्रोबियल विविधता खो रहे हैं।

जर्नल मॉलिक्यूलर बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि पुराने दांतों के नमूनों में आधुनिक मनुष्यों की तुलना में मसूड़ों की बीमारी के लिए उत्तरदायी बैक्टीरिया टैनेरेला फोर्सिथिया की अधिक विविधता पाई गई।

अध्ययन के प्रमुख लेखक व पीएचडी कैंडिडेट इसेल्ट जैक्सन के अनुसार, यूरोप, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के आधुनिक नमूनों की तुलना में एक प्राचीन मुंह के स्ट्रेन आनुवंशिक रूप से एक दूसरे से अधिक भिन्न थे। उन्होंने कहा, ऐसा इसलिए है क्योंकि जैव विविधता के नुकसान से मौखिक और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

नए अध्ययन में यह बताया गया है कि समय के साथ मानव मौखिक माइक्रोबायोम कैसे विकसित हुआ। वर्तमान में तीन चौथाई मौखिक मेटाजीनोम पिछले 2,500 वर्षों के भीतर के हैं। इनमें मध्ययुगीन काल से पहले के कुछ पूर्ण जीनोम उपलब्ध हैं।

वर्तमान में शोधकर्ताओं को प्रागैतिहासिक जीवाणु विविधता के बारे में सीमित ज्ञान है। उन्हें यह भी नहीं पता कि खेती के विस्तार जैसे हाल के आहार परिवर्तनों ने जीवाणु विविधता को कैसे प्रभावित किया। यह खेती लगभग 10,000 साल पहले शुरू हुई थी। प्राचीन मानव दांत यह भी जानकारी प्रदान कर सकते हैं कि वर्षों में मौखिक माइक्रोबायोम कैसे विकसित हुआ है।

इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दांतों से बैक्टीरिया के जीनोम को बरामद किया जो आयरलैंड के काउंटी लिमरिक के किलुराघ में एक चूना पत्थर की गुफा से खोदे गए कंकाल के अवशेषों के एक बड़े समूह के बीच पाए गए थे।

टीम को नमूने वाले दांतों पर दंत क्षय का कोई सबूत नहीं मिला, जबकि एक दांत की जड़ में क्षय पैदा करने वाले बैक्टीरिया स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन्स की उच्च मात्रा पाई गई।

इस शख्स से टीम ने प्राचीन स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन्स जीनोम और टैनेरेला फोर्सिथिया के दो अलग-अलग स्ट्रेंस को पुनः प्राप्त किया। उन्होंने यह भी पाया कि दोनों प्रजातियों में पिछले 750 वर्षों में नाटकीय परिवर्तन हुए हैं।

ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन की सहायक प्रोफेसर और अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका लारा कैसिडी ने एक बयान में कहा कि 4,000 साल पुराने इस दांत में म्यूटन्स की इतनी बड़ी मात्रा देखकर हम बहुत आश्चर्यचकित थे। उन्होंने आगे कहा, इससे पता चलता है कि इस व्यक्ति को अपनी मृत्यु से ठीक पहले कैविटी विकसित होने का उच्च जोखिम था।

हालांकि, टीम को अन्य स्ट्रेप्टोकोकल प्रजातियां नहीं मिलीं। पेपर के अनुसार, इससे पता चलता है कि स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन्स ने अन्य प्रजातियों को पछाड़ दिया है, जिससे बीमारी से पहले की स्थिति पैदा हो गई है।

कैसिडी के अनुसार, स्ट्रेप्टोकोकल म्यूटन्स विभिन्न स्ट्रेंस में आनुवंशिक सामग्री की अदला-बदली करने में बहुत कुशल हैं। यह अदला-बदली एक लाभप्रद नवाचार को म्यूटन्स वंशों में फैलाने में सक्षम बनाएगी, बजाय इसके कि एक वंश प्रभावी हो जाए और अन्य सभी को प्रतिस्थापित कर दे।

दूसरी ओर टैनेरेला फोर्सिथिया की केवल एक वंशावली वर्तमान में विश्व स्तर पर हावी है। इससे पता चलता है कि विशेष रूप से एक प्रजाति का दूसरों की तुलना में कुछ आनुवंशिक लाभ है।

टीम ने बताया कि औद्योगिक युग के बाद से टैनेरेला फोर्सिथिया जीनोम ने कई नए जीन हासिल कर लिए हैं जो इसे मौखिक वातावरण में उपनिवेश बनाने और बीमारी का कारण बनने में मदद करते हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष लुप्त हो रहे माइक्रोबायोम के सिद्धांत का समर्थन करती है, जो प्रस्तावित करता है कि हमारे पूर्वजों के माइक्रोबायोम आज की तुलना में अधिक विविध थे और विविधता के इस नुकसान से क्रोनिक बीमारियां हो सकती हैं।

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