
वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि दर्द और बुखार की दवाएं, जैसे पैरासिटामोल और आइबुप्रोफेन, रोगाणुरोधी प्रतिरोध को बढ़ावा दे रही हैं।
ये दवाएं बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बना सकती हैं, जिससे एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स की समस्या बढ़ सकती है।
एएमआर, मलेरिया और एड्स से भी ज्यादा लोगों की जान ले रहा है।
समस्या पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक इसके कारण हर साल करीब एक करोड़ लोगों की जान जा सकती है।
जब भी हमें दर्द या बुखार होता है, तो हम अक्सर बिना सोचे-समझे पैरासिटामोल या आइबुप्रोफेन जैसी दवाएं ले लेते हैं। ये दवाएं करीब-करीब हर घर की फर्स्ट एड किट में मौजूद होती हैं। लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने नए शोध में इन दवाओं को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि ये आम दवाएं दबे पांव दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक, रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स (एएमआर) को और बढ़ावा दे रही हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि पैरासिटामोल और आइबुप्रोफेन न केवल अकेले इस्तेमाल करने पर बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति मजबूत बना रहे हैं, बल्कि इन दवाओं को एक साथ लेने से यह असर और भी तेज हो जाता है। इससे न केवल बैक्टीरिया तेजी से बढ़ते हैं, साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध भी विकसित कर लेते हैं। हालांकि देखा जाए तो ये दोनों ही दवाएं एंटीबायोटिक ‘नहीं’ हैं, लेकिन फिर भी इनसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध का खतरा है।
कैसे बढ़ता है खतरा?
अब तक यही माना जाता था कि ज्यादा एंटीबायोटिक्स लेने से रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित होने का खतरा रहता है। पर रिसर्च का दावा है कि गैर एंटीबायोटिक दवाएं, जैसे पेनकिलर्स भी रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह बन सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये दवाएं बैक्टीरिया की जेनेटिक बनावट में बदलाव ला सकती हैं।
विशेष रूप से, शोधकर्ताओं ने देखा कि जब अध्ययन के दौरान पैरासिटामोल और आइबुप्रोफेन को एक आम एंटीबायोटिक सिप्रोफ्लॉक्सासिन और ई-कोलाई बैक्टीरिया (जो आंत और यूरीन इन्फेक्शन का प्रमुख कारण है, उसके संपर्क में लाया गया, तो बैक्टीरिया ने तेजी से नए जीन संबंधी बदलाव विकसित किए। इससे उन्हें तेजी से बढ़ने और दवाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनने में मदद मिली। नतीजा यह हुआ कि ई-कोलाई न सिर्फ सिप्रोफ्लॉक्सासिन बल्कि कई अन्य एंटीबायोटिक के प्रति भी कहीं ज्यादा प्रतिरोधी हो गया।
यह कैसे होता है शोधकर्ताओं ने इसके पीछे के आनुवंशिक तंत्र पर भी प्रकाश डाला गया है। अध्ययन से पता चला है कि आइबुप्रोफेन और पेरासिटामोल जैसी दवाएं बैक्टीरिया की रक्षा प्रणाली को सक्रिय कर देती हैं, जिससे वे एंटीबायोटिक्स को बाहर निकाल देते हैं और दवाएं कम प्रभावी हो जाती हैं।
अध्ययन के नतीजे प्रतिष्टित एनपीजे जर्नल एंटीमाइक्रोबियल्स एंड रेसिस्टेन्स में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं ने नौ दवाओं का अध्ययन किया है, जिनमें दर्द और सूजन के लिए दी जाने वाली आइबुप्रोफेन और डाइक्लोफेनाक, बुखार और दर्द के लिए दी जाने वाली पेरासिटामोल, फ्यूरोसेमाइड (हाई ब्लड प्रेशर के लिए), मेटफॉर्मिन (डायबिटीज के लिए), एटोरवास्टेटिन (कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए), ट्रामाडोल (सर्जरी के बाद के तेज दर्द कम करने के लिए), टेमाजेपैम (नींद की समस्या के लिए), और स्यूडोएफेड्रिन जिसे बंद नाक खोलने के लिए दिया जाता है, शामिल थी।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह समस्या खासकर वृद्धाश्रमों और बुजुर्गों से जुड़े देखभाल केंद्रों में कहीं ज्यादा गंभीर हो सकती है, जहां लोगों को दर्द, नींद, ब्लड प्रेशर या डायबिटीज जैसी कई दवाएं एक साथ दी जाती हैं। ऐसे माहौल में आंतों में मौजूद बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित करने का और ज्यादा मौका मिल जाता है।
हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है रोगाणुरोधी प्रतिरोध
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पहले ही दुनिया में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते खतरे को लेकर चेता चुका है। स्थिति कितनी गंभीर है, इसी बात से समझा जा सकता है कि 2019 में अकेले रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह से दुनिया भर में 12.7 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। वहीं अनुमान है कि 2019 में मरने वाले 49.5 लाख लोग कम से कम एक दवा प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे।
जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार एएमआर, मलेरिया और एड्स से भी ज्यादा लोगों की जान ले रहा है।
गौरतलब है कि 2019 में वैश्विक स्तर पर एड्स से 6,80,000 लोगों की जान गई थी, वहीं मलेरिया 6,27,000 मौतों की वजह था। यदि संक्रमण से होने वाली मौतों को देखें तो इस लिहाज से एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का नंबर कोविड-19 और ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के बाद आता है।
अनुमान है कि यदि इस समस्या पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक इसके कारण हर साल करीब एक करोड़ लोगों की जान जा सकती है। ऐसे में यह समस्या कितनी तेजी से अपने पैर पसार रही है उसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
क्या और कैसे होता है रोगाणुरोधी प्रतिरोध?
पिछले कुछ दशकों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध तेजी से बढ़ा है। यह सही है कि एंटीबायोटिक दवाएं किसी मरीज की जान बचाने में अहम भूमिका निभाती है, पर जिस तरह से स्वास्थ्य क्षेत्र में इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है उससे एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स की समस्या पैदा हो रही है, जो स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब उत्पन्न होता है, जब रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस, और परजीवी रोगाणुरोधी दवाओं के लगातार संपर्क में रहने से अपने शरीर को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते हैं। उनके शरीर में आए बदलावों के चलते वो धीरे-धीरे इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं।
नतीजतन, यह दवाएं उन पर असर नहीं करती। ऐसा होने पर मनुष्य के शरीर में लगा संक्रमण जल्द ठीक नहीं होता। इसका मतलब है कि बैक्टीरिया ने खुद में बदलाव कर इन दवाओं से बचने का तरीका खोज लिया है।
कैसे दवाएं बन रही "साइलेंट किलर"
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि संक्रामक रोगों के इलाज में एंटीबायोटिक्स दवाएं लंबे समय से जरूरी रही हैं, लेकिन इनका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और दुरूपयोग दुनियाभर में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के बढ़ने का कारण बन गया है।
अध्ययन से जुड़े मुख्य शोधकर्ता, प्रोफेसर रिटे वेंटर का कहना है, “एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स अब सिर्फ एंटीबायोटिक दवाओं के गलत इस्तेमाल की वजह से ही नहीं, बल्कि आम दवाइयों के कारण भी तेजी से फैल रहा है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि दवाओं के संयोजन के जोखिम कितने गंभीर हो सकते हैं।”
अध्ययन याद दिलाता है कि हमें एक साथ कई दवाएं देने के जोखिमों को गंभीरता से समझना चाहिए, खासकर बुजुर्गों के लिए जिन्हें अक्सर लंबी अवधि की कई दवाएं एक साथ दी जाती हैं।
हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं कि हमें इन दवाओं का उपयोग बंद कर देना चाहिए, लेकिन हमें इस बात पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है कि ये दवाएं, एंटीबायोटिक्स के साथ किस प्रकार प्रतिक्रिया करती हैं। यह जरूरी है कि उनके एंटीबायोटिक के साथ असर और आपसी तालमेल को समझा जाए।