सरिता के मामले को ही लें, जिनका बच्चा अभी नवजात बच्चों की देखभाल के लिए बने विशेष वार्ड मे है। इस वार्ड की कुल क्षमता बीस बेड की है और जबकि जितने बच्चे यहां रखे जाते हैं, उससे डेढ़ गुना ज्यादा इसमें भर्ती होने का इंतजार कर रहे होते हैं।
नवजात बच्चे के विशेष वार्ड के प्रभारी डॉ़ कमलेश सूत्रकार ने कहा कि जन्म लेने वाले कुल बच्चों में से 10-12 फीसदी को विशेष वार्ड में रखने की जरूरत पड़ती है। जिसकी वजहें समय से पहले प्रसव और जन्म के समय दम घुटना आदि हो सकती हैं। सरकारी अस्पताल में नवजात बच्चों की मृत्यु-दर भी इसी सीमा में है।
उन्होंने कहा, ‘ महिलाएं सरकारी अस्पताल में डिलीवरी, उन्हें मिलने वाले पैसे की खातिर कराती हैं लेकिन वे गर्भ के समय लिए जाने वाले जरूरी पोषण को लेकर जागरुक नहीं हैं।’ उनके मुताबिक, उनके वार्ड से 2-3 फीसदी बच्चों को जटिलता बढ़ जाने के चलते झांसी के मेडिकल कॉलेज रेफर करना पड़ता है।
दस लाख से ज्यादा आबादी वाली जिले की ज्यादातर आबादी गांवों में रहती है। अस्पताल की स्त्री-रोग विशेषज्ञ डॉ प्रियंका शर्मा के मुताबिक, ‘ ग्रामीण इलाकों में ज्यादा बच्चे पैदा करने के चलते महिलाएं खून की कमी का शिकार होती हैं। दूसरी मुख्य वजह, उन्हें पर्याप्त पोषण न मिलना हैं। जिसके चलते प्रसवोत्तर रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप और खून की कमी आदि ज्यादातर महिलाओं की मौत की प्रमुख वजहें बनती हैं।’
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम अधिकारी आदित्य तिवारी बताते हैं कि इन्हीं वजहों के चलते 89 फीसद डिलीवरी स्वास्थ्य केंद्रों में होने के बावजूद यहां सुरक्षित प्रसव से जुड़े अन्य कारक बहुत प्रभावी हैं। जिले की नवजात बच्चों की मृत्यु दर तीस है जबकि सागर डिवीजन में मातृत्व मृत्यु-दर 189 है। इस डिवीजन में टीकमगढ़ के अलावा पन्ना, दमोह, सागर, छत्तरपुर और निवाड़ी जिले शामिल हैं।
टीकमगढ़ में 22 जन स्वास्थ्य केंद्र, सात सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और एक जिला अस्पताल है। इसके बावजूद यहां स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कई खामियंा हैं। तिवारी कहते हैं, ‘हर जन स्वास्थ्य केंद्र, और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्टाफ की कमी है, उनमें जितने कर्मचारी होने चाहिए, कुछ तो उनके आधे कर्मचारियों के साथ काम कर रहे हैं जबकि कुछ में तो एक भी नर्स नहीं है।’ 22 जन स्वास्थ्य केंद्रों में से केवल 11 में चौबीस घंटे काम करने वाले लेबर रूम हैं जबकि नवजात बच्चों की देखरेख की व्यवस्था, दो कें्रदों जतारा और पृथ्वीपुर में काम ही नहीं कर रही है।’