ब्रिटिश विश्वविद्यालय के अनुसार, भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने बिना नुकसान पहुंचाए आंखों के संक्रमण का तेजी से परीक्षण करने के लिए एक बेहतरीन "स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस" विकसित किया है।
ब्रैडफोर्ड विश्वविद्यालय और भारत में एलवी प्रसाद नेत्र संस्थान के साथ शेफील्ड विश्वविद्यालय ने मिलकर इस "स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस" को विकसित किया है। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि परीक्षण आखिरकार घर पर उपयोग करने के लिए उपलब्ध हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया भर में आंख के संक्रमण और रोकथाम तथा अंधेपन के खिलाफ लड़ाई में बड़ी छलांग के रूप में इसकी सराहना की गई है। इससे विकासशील देशों में आंखों में फंगल इंफेक्शन से होने वाली मौतों को रोकने की भी उम्मीद है।
एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ प्रशांत गर्ग ने कहा, "आंखों में संक्रमण, माइक्रोबियल केराटाइटिस दुनिया भर में आंखों को होने वाला नुकसान और अंधापन का एक प्रमुख कारण है और भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है।"
यह समय पर और सही जांच उचित दवाओं के साथ उपचार की शुरुआत की सुविधा प्रदान कर सकता है। इस प्रकार इन विकारों से आंखों को होने वाले नुकसान को कम कर सकता है। मौजूदा प्रचलित जांच की पद्धति नुकसान पहुंचाने वाली, समय लेने वाली और महंगी है। 'स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस' तकनीक आंखों के संक्रमण के इलाज और अंधेपन को दूर करने के लिए अहम हो सकता है।
डॉ जॉय शेफर्ड ने कहा वर्तमान में, आंखों के संक्रमण में कौन से बैक्टीरिया या कवक मौजूद हैं, यह पता लगाना एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें रोगी की आंखों को बेहोश करने वाली दवा देकर जांच की जाती है। माइक्रोस्कोप से अध्ययन करने से पहले नमूने को दो दिनों के लिए कल्चर नामक परीक्षण किया जाता है।
डॉ शेफर्ड ने बताया कि नए परीक्षण में रोगी को एक घंटे के लिए विशेष लेंस पहनाया जाएगा, जिसके परिणाम जल्द ही सामने आ जाएंगे। यह आशा है कि परीक्षण अंततः यूके और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आम जनता के लिए उपलब्ध हो सकता है। डॉ शेफर्ड स्कूल ऑफ यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी के लेक्चरर हैं।
उन्होंने कहा यह एंटीबायोटिक दवाओं के गलत नुस्खे पर भी कटौती करेगा, जिसका अर्थ है कि हम एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध को कम करने में मदद करेंगे जो सूक्ष्म जीवों में विकसित होते हैं जब इन दवाओं का उपयोग उचित कारण की पहचान किए बिना किया जाता है।
लैब में शुरुआती परीक्षणों के सकारात्मक परिणाम मिले हैं और एक बार इसके सुरक्षित हो जाने के बाद लोगों पर इसका परीक्षण किया जाएगा। परीक्षण विकासशील, ऊष्णकटिबंधीय देशों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, जहां किसी व्यक्ति की आंख को बचाने के लिए अक्सर संक्रमण का पता बहुत देर से चलता है।
ब्रैडफोर्ड विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर स्टीफन रिमर ने कहा हमने एक स्मार्ट हाइड्रोजेल बनाया है जो दो प्रकार के बैक्टीरिया और फंगस का पता लगा सकता है। यह उपकरण कॉन्टेक्ट लेंस बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री के समान है, जिसे आंखों पर सुरक्षित रूप से लगाया जा सकता है। सूक्ष्मजीव सामग्री से चिपक जाते हैं और फिर उनका विश्लेषण किया जा सकता है।
मौजूदा प्रक्रिया अच्छी नहीं है और इसमें समय भी लगता है। हम इस बात पर काम कर रहे हैं कि किस तरह हम लेंस पर दिखने वाला रंग बदलता दिखा सकते हैं कि कौन सा बैक्टीरिया या फंगल मौजूद है। इसके बाद एक मोबाइल फोन से इसकी तस्वीर खींची जा सकती है और एक विशेषज्ञ विश्लेषण के लिए वेबसाइट पर अपलोड की जा सकती है।
विशेषज्ञ तब यह निर्धारित कर सकता है कि रोगी को एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता है या आगे की जांच की जरूरत है। हमारा लक्ष्य है कि कोई भी रास्ते पर बिना किसी प्रशिक्षण के ऐसा कर सके। पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट से पता चला कि दुनिया भर में खतरनाक फंगल रोग बढ़ रहे हैं, विशेष रूप से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में, फिर भी उन पर बहुत कम शोध हुआ है।
इसने कोविड-19 महामारी और बढ़े हुए फंगल संक्रमणों को एक साथ जोड़ा, एस्परगिलोसिस, म्यूकोर्मिकोसिस और कैंडिडेमिया साथ ही सबूत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व स्तर पर फंगल संक्रमणों की घटनाएं बढ़ रही हैं।
भारत में, म्यूकोर्मिकोसिस, या "ब्लैक फंगस" से होने वाली मौतों में वृद्धि हुई है। सबसे अधिक खतरे में मधुमेह रोगी हैं। जिनका कोविड-19 का इलाज स्टेरॉयड देकर किया गया है, उन रोगियों में मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत बढ़ जाती है। डॉक्टरों का मानना है कि स्टेरॉयड रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं और रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाते हैं, जिससे फंगस पनपता है।