जम्मू में बनेगी भारत की पहली कैनबिस मेडिसिन, कैंसर और मिर्गी के उपचार में अहम

कैनबिस (भांग) लोगों के उपचार के लिए, विशेष रूप से न्यूरोपैथी, कैंसर और मिर्गी से पीड़ित रोगियों के लिए महत्वपूर्ण है
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
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अब पहली बार भारत में कैनबिस (भांग) से बनी दवाओं से कैंसर, डायबिटीज, मिर्गी व अन्य तंत्रिका संबंधी विकारों का उपचार होगा। प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, कैनबिस मेडिसिन की पहली परियोजना जम्मू में स्थापित की गई है। इस परियोजना की अगुवाई वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-भारतीय एकीकृत चिकित्सा संस्थान (सीएसआईआर-आईआईआईएम) के वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही है।

जिसे एक कनाडाई फर्म के साथ निजी सार्वजनिक भागीदारी में शुरू किया गया है। जिसमें लोगों के कल्याण के लिए विशेष रूप से न्यूरोपैथी, कैंसर और मिर्गी से पीड़ित रोगियों के लिए काम करने की अपार क्षमता है।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, संस्थान के संरक्षित क्षेत्र में कैनबिस (भांग) की खेती के तरीकों और इस महत्वपूर्ण पौधे पर शोध कार्य किए जा रहे हैं। यह जम्मू के पास चाथा में स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) - भारतीय समवेत औषध संस्‍थान (आईआईआईएम) के कैनबिस या भांग की खेती है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि, सीएसआईआर-आईआईआईएम  की यह परियोजना आत्म-निर्भर भारत के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी तरह की मंजूरी मिलने बाद, यह विभिन्न प्रकार की न्यूरोपैथी, मधुमेह आदि रोगों के लिए निर्यात गुणवत्ता वाली दवाओं का उत्पादन करने में सक्षम होगी।

प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि, यद्यपि जम्मू और कश्मीर तथा पंजाब नशीली दवाओं के दुरुपयोग से प्रभावित हैं, इसलिए इस तरह की परियोजना से जागरूकता फैलेगी व असाध्य और अन्य बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए इसके विविध औषधीय उपयोग सामने आएंगे।

सीएसआईआर-आईआईआईएम और इंडस स्कैन के बीच वैज्ञानिक समझौते पर हस्ताक्षर न केवल जम्मू और कश्मीर के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए ऐतिहासिक था क्योंकि इसमें उन विविध दवाओं का उत्पादन करने की क्षमता है जिन्हें विदेशों से आयात किया जाता था।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, इस तरह की परियोजना से जम्मू और कश्मीर में बड़े निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, सीएसआईआर-आईआईआईएम भारत का सबसे पुराना वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान है, जिसका 1960 के दशक में बेहतरीन कार्य करने का इतिहास रहा है, जो पर्पल रेवलूशन का केंद्र है। अब सीएसआईआर-आईआईआईएम की कैनबिस अनुसंधान परियोजना इसे भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के मामले में और अधिक प्रतिष्ठित बनाने जा रही है। 

इसके अलावा यहां जलवायु नियंत्रण सुविधाओं वाले ग्लास हाउस भी हैं, जहां कैनाबिनोइड सामग्री के लिए किस्मों में सुधार पर शोध कार्य किया जा रहा है।

प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से डॉ. जितेंद्र सिंह ने कैनबिस के चिकित्सीय गुणों की खोज में अग्रणी अनुसंधान के लिए सीएसआईआर-आईआईआईएम के प्रयासों की सराहना की, यह पौधा अन्यथा प्रतिबंधित है और दुरुपयोग के लिए जाना जाता है। सीएसआईआर-आईआईआईएम द्वारा कैनबिस परियोजना पर किए गए शोध कार्य से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान होगा तथा कैनबिस आधारित उपचार की अपार क्षमताओं के लिए जाना जाएगा।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि, उपज बढ़ाने के लिए नवीनतम तकनीक और खेती के तरीकों के उपयोग अहम हैं, जिससे किसानों को मदद मिलेगी। नई स्वदेशी किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया, जो हमारे देश की पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल हों। 

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, कैनबिस एक अद्भुत पौधा है। मतली और उल्टी के इलाज के लिए मेरिलनोल या नाबिलोन तथा सेसमेट, न्यूरोपैथिक दर्द एवं ऐंठन के लिए सेटिवेक्स, मिर्गी के लिए एपिडियोलेक्स, कैनबिडिओल जैसी दवाओं को एफडीए ने मंजूरी दे दी है और अन्य देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

जम्मू और कश्मीर में शोध और संरक्षित खेती के लिए सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू को लाइसेंस दिया गया था और जीएमपी निर्माण की अनुमति के पश्‍चात, बाकी प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल अध्ययन पूरे किए जाएंगे।

सीएसआईआर-आईआईआईएम के निदेशक डॉ. जबीर अहमद ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि, वर्तमान में सीएसआईआर-आईआईआईएम के पास देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्र की गई 500 से अधिक सामग्री का भंडार है। संस्थान के वैज्ञानिक कैनबिस की खेती, कैंसर और मिर्गी में दर्द प्रबंधन जैसी बीमारी के समाधान पर जोर देने के साथ दवा की खोज के लिए एंड-टू-एंड तकनीक प्रदान करने के लिए विभिन्न दिशाओं में काम कर रहे हैं।

उन्होंने आगे बताया कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ सीएसआईआर के त्रिपक्षीय समझौते के अंतर्गत, जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा वैज्ञानिक उद्देश्य के साथ कैनबिस की खेती के लिए लाइसेंस दिए जाने के बाद सीएसआईआर-आईआईआईएम ने कैनबिस पर शोध पूरा कर लिया है।

कैंसर के दर्द और मिर्गी के प्रबंधन से संबंधित आगे के प्री-क्लिनिकल नियामक अध्ययनों के लिए,जीएमपी निर्माण करना बहुत महत्वपूर्ण है जो नई चिकित्सीय दवाओं की खोज के लिए अहम हैं। उन्होंने बताया कि जीएमपी के लिए विशेष रूप से वैज्ञानिक उद्देश्य के साथ कैनबिस सामग्री का निर्माण और परिवहन के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार के उत्पाद शुल्क विभाग से लाइसेंस प्राप्त करने हेतु एक आवेदन प्रस्तुत किया जा चुका है जो अभी भी प्रक्रियाधीन है।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन कैनबिस अनुसंधान में अग्रणी है और इसने देश में खेती के लिए पहला लाइसेंस हासिल किया है। इसके बाद, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों ने वैज्ञानिक उद्देश्यों के साथ कैनबिस (भांग) के उपयोग के लिए नीति और नियम बनाना शुरू कर दिया है।

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