2019 में भारत में 3.4 लाख नवजातों ने गर्भ में ही तोड़ दिया दम

स्टिल बर्थ के मामले में भारत सबसे ऊपर हैं, जहां 2019 में दुनिया के 17.3 फीसदी स्टिल बर्थ के मामले सामने आए थे
Photo: Unicef
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2019 के दौरान भारत में 340,622 नवजातों ने जन्म से पूर्व गर्भ में ही दम तोड़ दिया था। वहीं यदि प्रति हजार जन्में बच्चों की बात करें तो इस दौरान उनमें से करीब 13.9 शिशु मृत पैदा हुए थे। यह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि आज भी देश में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना दिया जाना चाहिए।

हालांकि यदि 2019 की तुलना 2000 के आंकड़ों से करें तो उनमें करीब 60 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि इससे पहले 2000 में 852,386 नवजात मृत पैदा हुए थे। इसी तरह उस दौरान प्रति हजार जन्में बच्चों पर स्टिल बर्थ की दर 29.6 थी, जिसका मतलब है कि प्रति हजार जन्मे बच्चों पर करीब 30 बच्चे मृत पैदा हुए थे। यह जानकारी हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में छपे एक शोध में सामने आई है।

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के आधार पर देखें तो उसके अनुसार गर्भावस्था के 28वें सप्ताह के बाद गर्भ में या फिर जन्म देते समय हुई बच्चे की मौत को स्टिल बर्थ कहा जाता है, जबकि इस अवधि से पहले होने वाली मौत को गर्भपात कहा जाता है।    

भारत में होते हैं दुनिया के 17.3 फीसदी स्टिल बर्थ

वहीं यदि वैश्विक स्तर से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2019 में करीब 20 लाख बच्चे मृत पैदा हुए थे, जिसका मतलब है कि हर 16 सेकंड में एक मृत बच्चा पैदा होता है। वहीं यदि प्रति हजार बच्चों की बात करें तो वैश्विक स्तर पर यह दर भारत के ही बराबर 13.9 है। हैरानी की बात है कि आज भी दुनिया में मृत पैदा होने वाले बच्चों के मामले में भारत सबसे ऊपर है। जहां 2019 में दुनिया के करीब 17.3 फीसदी मृत बच्चे पैदा हुए थे। इसके बाद पाकिस्तान में 9.7 फीसदी (190,483) और अफ्रीकी देश नाइजीरिया में 8.7 फीसदी (171,428) मृत बच्चे पैदा हुए थे।  

यदि अमीर और गरीब देशों के बीच की जो खाई है वो स्टिल बर्थ के मामले में भी जस की तस है। जहां एक तरफ 2019 में स्टिल बर्थ के 83.6 फीसदी मामले (16 लाख) कम आय वाले देशों और 1.9 फीसदी मामले उच्च आय वाले देशों में सामने आए थे।

यदि क्षेत्रीय स्तर पर देखें तो जहां पश्चिम और मध्य अफ्रीका में प्रति हजार पैदा हुए बच्चों में मृत पैदा हुए बच्चों की दर सबसे ज्यादा 22.8 थी, जोकि पश्चिमी यूरोप (2.9) और उत्तरी अमेरिका (3.0) की तुलना में लगभग 8 गुना अधिक थी। वहीं पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में यह 20.5 और दक्षिण एशिया में 18.2 फीसदी दर्ज की गई थी।

देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर 2000 के बाद से स्टिल बर्थ की दर में 35.1 फीसदी की गिरावट आई है। जहां 2000 में प्रति हजार जन्में बच्चों में से 21.4 बच्चों की गर्भ में ही मृत्यु हो गई थी वहीं 2019 में यह आंकड़ा घटकर 13.9 पर पहुंच गया है। आंकड़ों के अनुसार पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में इस दौरान इस दर में सबसे ज्यादा 50.8 फीसदी की गिरावट सामने आई है। इसके बाद पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में 48.4 फीसदी और दक्षिण एशिया में 43.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। 

वहीं इस अवधि के दौरान भारत में स्टिल बर्थ रेट में 53 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जहां 2000 में प्रति हजार बच्चों पर मृत पैदा हुए बच्चों की संख्या 29.6 थी जो 2019 में घटकर 13.9 पर पहुंच गई है। 

जरुरी है उचित देखभाल

हालांकि इसके बावजूद स्टिल बर्थ रेट में जो कमी आई है, वो पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में आने वाली कमी की तुलना में धीमी रही है। जहां 2000 से 2019 की अवधि में स्टिल बर्थ की दर में वार्षिक रूप से 2.3 फीसदी की कमी आई है जबकि इसके विपरीत इस अवधि के दौरान नवजात शिशुओं (<28 दिनों की अवधि से छोटे) की मृत्यु दर में आई कमी 2.9 फीसदी दर्ज की गई है।

ऐसे में यह जरुरी है कि इस पर गंभीरता से काम किया जाए। विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में में जहां यह दर काफी ऊंची है वहां तुरंत सुधार की जरुरत है। देखा जाए तो स्टिल बर्थ के 40 फीसदी से अधिक मामले प्रसव के दौरान होते हैं। जिन्हें बेहतर देखभाल और उचित चिकित्सा सेवाओं के जरिए टाला जा सकता है, जिसमें नियमित निगरानी और आवश्यकता पड़ने पर आपातकालीन प्रसूति देखभाल तक समय पर पहुंच शामिल है। इसके लिए न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार बल्कि साथ ही आम लोगों में भी जागरूकता बढ़ाने की जरुरत है। 

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