आत्महत्या की दूसरी सबसे बड़ी वजह बनी बीमारी, बच्चे भी दे रहे हैं जान

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि देश में दिमागी रूप से परेशान लोग बड़ी संख्या में जान दे रहे हैं, इनमें 18 साल से कम उम्र बच्चे भी शामिल हैं
Photo: Prashant Ravi
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देश में जहां पारिवारिक कारणों से सबसे ज्यादा लोग आत्महत्या कर रहे हैं, वहीं बीमारी की वजह आत्महत्या का दूसरा सबसे बड़ा कारण माना गया है। बीते शुक्रवार को जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में लगभग 17.1 प्रतिशत लोगों ने बामारी की वजह से आत्महत्या की, जबकि पारिवारिक कारणों से आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 29.2 फीसदी रहा।

एनसीआरबी के मुताबिक, 2016 में 1,31,008 लोगों की आत्महत्या की। इनमें 38,267 लोगों ने पारिवारिक कारणों और 22,411 लोगों ने बीमारी की वजह से आत्महत्या की। इससे पहले यानी 2015 में 21,178 लोगों ने बीमारी की वजह से आत्महत्या की थी।

यहां यह महत्वपूर्ण है कि दिमागी (मेंटल) बीमारी व मानसिक विक्षिप्तता की वजह से 8627 लोगों ने आत्महत्या की, जिसे लंबी बीमारी के बाद दूसरी बड़ी वजह बताया गया है। इनमें 5746 पुरूष और 2878 महिलाएं शामिल थी। रिपोर्ट बताती है कि दिमागी बीमारी की वजह से 30 से 45 साल के लोगों ने सबसे अधिक (2733) लोगों ने आत्महत्या की। जबकि 18 से 30 साल के 2329 लोगों ने मानसिक बीमारी की वजह से आत्महत्या की। दुखद स्थिति यह है कि 18 साल से भी कम उम्र के बच्चे व किशोर मानसिक रूप से परेशान होने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। 2016 में 18 साल से कम उम्र के 411 बच्चों व किशोरों ने इस वजह से आत्महत्या की।

एड्स का खौफ

भारत में तेजी से बढ़ रही लाइलाज बीमारी एड्स की चपेट में आने के बाद लोग आत्महत्या का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। 2016 में 198 लोगों ने एड्स या यौन संक्रमण बीमारी की वजह से मौत को गले लगा लिया। इनमें 18 साल से कम उम्र के बच्चे या किशोर भी शामिल हैं। इनकी संख्या 4 है, लेकिन इनमें से 3 किशोरियां शामिल हैं। जो एक विचारणीय पहलू है। इससे पहले 2015 में भी 18 साल से कम आयु वर्ग में 3 आत्महत्याएं हुई थी, ये तीनों ही किशोरी थी।

कैंसर का डर

देश में कैंसर तेजी से फैल रहा है। इससे जहां लोगों की मौत हो रही है, वहीं महंगा इलाज और खौफ भी लोगों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहा है।  2016 में 875 लोगों ने कैंसर बीमारी की चपेट में आने के बाद आत्महत्या कर ली। 2015 में यह संख्या 827 थी। इस बीमारी की वजह से 18 साल से कम उम्र के 5 किशोर या बच्चों ने आत्महत्या की, इनमें तीन लड़कियां शामिल थी।

सबसे अधिक लंबी बीमारी की वजह से लोगों ने आत्महत्या की, 2015 में जहां इनकी संख्या 11,134 थी, 2015 में 11969 लोगों ने लंबी बीमारी के कारण आत्महत्या कर ली।

18 साल से कम उम्र में आत्महत्या बढ़ी

आंकड़े बताते हैं कि 2016 में 18 साल से कम आयु वर्ग के 8951 किशोर या बच्चों ने आत्महत्या की, जबकि 2015 में ऐसे किशोरों की संख्या 9408 थी। 2014 से पहले एनसीआरबी 14 साल से कम बच्चों और 15 से 29 साल के आयु वर्ग के अलग-अलग आंकड़े जारी करता था, लेकिन 2014 में सबसे पहले 18 वर्ष से कम आयु वर्ग की अलग श्रेणी बनाई गई और 18 से 30 साल के आयु वर्ग की अलग। 2014 में दो तरह के आंकड़े जारी किए गए। 14 साल से कम उम्र के 1720 बच्चों ने आत्महत्या की, जबकि 14 से 18 साल के 9230 किशोरों ने आत्महत्या की। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि इनकी संख्या घट रही है, लेकिन फिर भी चिंताजनक स्थिति बनी हुई है।

चिंताजनक इसलिए भी है कि इस उम्र में बीमारी की वजह से भी किशोर व बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। 2014 में 14 साल से कम उम्र के 181 बच्चों ने बीमारी की वजह से आत्महत्या की थी, जबकि 14 से 18 साल के 496 किशोरों ने आत्महत्या की थी। 2016 में 18 साल से कम उम्र के बच्चों व किशोरों की संख्या 932 दर्ज की गई। इनमें से दिमागी रूप से परेशान बच्चों व किशोरों की संख्या आधी से अधिक 411 थी।

ऐसे में, अब सवाल यह है कि बीमारी से हो रही आत्महत्या के प्रति अब केंद्र व राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग कितनी सक्रियता दिखाते हैं?  

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