ब्रेन कैंसर के इलाज को लेकर जगी उम्मीदें, भारतीय वैज्ञानिकों को प्री-क्लिनिकल ट्रायल में मिले आशाजनक नतीजे

वैज्ञानिकों ने इम्यूनोसोम्स नामक एक नया नैनोफॉर्म्यूलेशन विकसित किया है, जो ट्यूमर को दूर करने के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत कर देता है, जिससे कैंसर दोबारा नहीं उभरता
मस्तिष्क के एमआरआई का विश्लेषण करते डॉक्टर; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
मस्तिष्क के एमआरआई का विश्लेषण करते डॉक्टर; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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ब्रेन कैंसर के इलाज पर काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों को प्री-क्लिनिकल ट्रायल में उत्साहजनक नतीजे मिले हैं। आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस रिसर्च ने ग्लियोब्लास्टोमा के मरीजों के लिए आशा की किरण जगा दी है।

जर्नल बायोमटेरियल्स पत्रिका में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि शायद वैज्ञानिकों ने ब्रेन ट्यूमर के लिए एक नया उपचार खोज निकाला है। यह अध्ययन आईआईटी दिल्ली में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सेंटर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर जयंत भट्टाचार्य के मार्गदर्शन में विदित गौर द्वारा किया गया है, जो एक पीएचडी शोधार्थी हैं।

गौरतलब है कि ग्लियोब्लास्टोमा, वयस्कों में होने वाला सबसे आम और आक्रामक ब्रेन ट्यूमर है। यह बेहद जानलेवा बीमारी है, जिसका  उपचार सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथेरेपी जैसे विकल्पों के बावजूद मुश्किल है।

यह ब्रेन कैंसर बड़ी तेजी से बढ़ता है और जल्द ही पूरे मस्तिष्क में फैल सकता है। यह इतना खतरनाक होता है कि निदान के बाद मरीजों की जीवन प्रत्याशा आमतौर पर केवल 12 से 18 महीने ही होती है।

अपनी रिसर्च में विदित ने इम्यूनोसोम्स नामक एक नया नैनोफॉर्म्यूलेशन विकसित किया है, जिसमें सीडी40 एगोनिस्ट एंटीबॉडी को आरआरएक्स-001 नामक छोटे अणु अवरोधक (मॉलिक्यूल इन्हीबिटर) के साथ मिलाया जाता है। इस नए दृष्टिकोण का उद्देश्य गंभीर ब्रेन ट्यूमर के उपचार को बेहतर बनाना है, जो ग्लियोब्लास्टोमा के मरीजों के लिए नई उम्मीद पैदा करता है।

इस अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने ग्लियोब्लास्टोमा से पीड़ित चूहों का इम्यूनोसोम्स की मदद से उपचार किया, जिसने उनमें मौजूद ट्यूमर को पूरी तरह से दूर कर दिया था।

कैंसर की रोकथाम में कितना कारगर हैं इम्यूनोसोम्स

इतना ही नहीं वे कम से कम तीन महीने तक ट्यूमर-मुक्त मुक्त रहे। वैज्ञानिकों ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि इस उपचार ने मस्तिष्क कैंसर से लड़ने के लिए उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत कर दिया था।

तीन महीने बाद, डॉक्टर भट्टाचार्य और उनकी टीम ने जीवित बचे चूहों में फिर से ग्लियोब्लास्टोमा से संक्रमित कोशिकाएं प्रत्यारोपित की, ताकि यह समझा जा सके कि क्या यह उपचार आगे भी काम करता है।

आश्चर्यजनक रूप से, जिन चूहों का इलाज इम्यूनोसोम की मदद से किया गया था, उनमें ट्यूमर की वृद्धि लगभग न के बराबर देखी गई। इससे पता चलता है कि इम्यूनोसोम लंबे समय तक रहने वाली प्रतिरक्षा की स्मृति बनाए रह सकता है, ताकि ताकि भविष्य में बिना किसी अतिरिक्त उपचार के ट्यूमर को दोबारा उभरने से रोका जा सके।

रिसर्च से पता चला है कि इम्यूनोसोम्स न केवल ग्लियोब्लास्टोमा के खिलाफ लम्बे समय तक सुरक्षा देता है। साथ ही यह सीडी40 एगोनिस्ट एंटीबॉडी के हानिकारक दुष्प्रभावों को भी कम करता है, जिससे डॉक्टरों के लिए इसका उपयोग सुरक्षित हो जाता है। ऐसे में उम्मीद है कि यह नया उपचार ग्लियोब्लास्टोमा जैसे गंभीर कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

अपनी रिसर्च पर प्रकाश डालते हुए आईआईटी दिल्ली के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सेंटर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर जयंत भट्टाचार्य ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि “हम इन परिणामों से बहुत उत्साहित हैं और ग्लियोब्लास्टोमा के मरीजों पर इस उपचार का परीक्षण करने को लेकर उत्सुक हैं।“

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