सेहत पर मंडराता खतरा: ओमेगा-3 की कमी से जूझ रही दुनिया की 76 फीसदी आबादी

अध्ययन में सामने आया कि दुनिया की 76 फीसदी आबादी को स्वस्थ रहने के लिए जरूरी ओमेगा-3 फैटी एसिड, खासकर ईपीए और डीएचए, की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल रही
फोटो साभार : सीएसई
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सारांश
  • दुनिया की 76 फीसदी आबादी ओमेगा-3 की कमी से जूझ रही है, जो दिल, दिमाग और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया और अन्य संस्थानों के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।

  • विशेषज्ञ इसे वैश्विक स्वास्थ्य संकट मानते हैं और ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थों और सप्लीमेंट की जरूरत पर जोर देते हैं।

  • अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड जीवन के हर चरण में सेहत का आधार हैं। यह जहां गर्भावस्था में समय से पहले प्रसव के जोखिम को घटाने में मदद करता है। वहीं शिशुओं में आंखों और दिमाग के विकास में सहायक होता है।

  • साथ ही वयस्कों में दिल की सेहत और रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है। इतना ही नहीं यह अवसाद, याददाश्त कमजोर होना और अल्जाइमर जैसी बीमारियों के खतरे को कम करने से भी जुड़ा है।

गर्भ में पलते शिशु से लेकर बुजुर्गों की याददाश्त तक, सेहत की हर कड़ी एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व 'ओमेगा-3' से जुड़ी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया की तीन-चौथाई आबादी इस अहम पोषक तत्त्व की कमी से जूझ रही है।

यह पोषक तत्त्व हमारे दिल, दिमाग और सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। यह हैरान कर देने वाली जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन और हॉलैंड एंड बैरेट से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए एक नए वैश्विक अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल न्यूट्रिशन रिसर्च रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन के मुताबिक दुनिया की 76 फीसदी आबादी को स्वस्थ रहने के लिए जरूरी ओमेगा-3 फैटी एसिड, खासकर ईपीए और डीएचए, की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल रही। विशेषज्ञ इसे वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य में एक बड़ी और अनदेखी खाई मान रहे हैं।

सलाह और हकीकत के बीच गहरी खाई

गौरतलब है कि अपनी तरह का पहला वैश्विक विश्लेषण है, जिसमें सामान्य रूप से स्वस्थ लोगों के लिए जीवन के हर चरण में ओमेगा-3 सेवन को लेकर दी गई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिफारिशों की समीक्षा की गई है। इसके बाद इनकी तुलना लोगों के वास्तविक आहार से की गई है।

इस बारे में अध्ययन और यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर ऐनी मैरी मिनिहेन का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “हमने पाया कि जो मात्रा खाने की सलाह दी जाती है और जो हम वास्तव में खा रहे हैं, उनके बीच बड़ा अंतर है।

इस अंतर को पाटने के लिए ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थों और सप्लीमेंट जैसे आसान व किफायती विकल्प जरूरी हैं।“

उन्होंने उम्मीद जताई कि यह अध्ययन पोषण विशेषज्ञों, डॉक्टरों, खाद्य और सप्लीमेंट उद्योग, नीति-निर्माताओं और आम लोगों को सही जानकारी देने में मदद करेगा।

क्यों जरूरी है ओमेगा-3

शोधकर्ताओं का कहना है, "लॉन्ग चेन पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड, खासकर इकोसैपेंटेनोइक एसिड (ईपीए) और डोकोसाहेक्सैनोइक एसिड (डीएचए) के स्वास्थ्य लाभ इतने महत्वपूर्ण हैं कि उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि कई लोगों के लिए ईपीए और डीएचए की सुझाई मात्रा को सिर्फ भोजन से हासिल कर पाना मुश्किल है। ऐसे में उनके लिए आसान और टिकाऊ स्रोत जरूरी हैं।

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कोरोना से होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम कर सकता है ओमेगा-3 फैटी एसिड
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अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड जीवन के हर चरण में सेहत का आधार हैं। यह जहां गर्भावस्था में समय से पहले प्रसव के जोखिम को घटाने में मदद करता है। वहीं शिशुओं में आंखों और दिमाग के विकास में सहायक होता है।

साथ ही वयस्कों में दिल की सेहत और रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है। इतना ही नहीं यह अवसाद, याददाश्त कमजोर होना और अल्जाइमर जैसी बीमारियों के खतरे को कम करने से भी जुड़ा है।

एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि रक्त में मौजूद ओमेगा-3 कोविड-19 से होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम कर सकता है। इस अध्ययन के मुताबिक ऐसा ईपीए और डीएचए में मौजूद एंटी-इन्फ्लैमटरी गुणों के कारण होता है।

स्वास्थ्य के लिए कितनी मात्रा है जरूरी?

हॉलैंड एंड बैरेट की साइंस डायरेक्टर डॉक्टर एबी कैवुड का कहना है, “सिर्फ भोजन से ईपीए और डीएचए की जरूरत पूरी कर पाना कई लोगों के लिए मुश्किल है। खासकर गर्भवती महिलाओं और कम मछली खाने वाली आबादी में अक्सर सप्लीमेंट की जरूरत पड़ती है।“

अध्ययन के अनुसार, वयस्कों के लिए रोजाना 250 मिलीग्राम ईपीए + डीएचए जरूरी है। वहीं गर्भवती महिलाओं के लिए अतिरिक्त 100 से 200 मिलीग्राम डीएचए आवश्यक है। यह मात्रा सैल्मन या मैकेरल जैसी मछलियों से या जरूरत पड़ने पर सप्लीमेंट के जरिए पूरी की जा सकती है।

देशों में अलग-अलग नियम, बढ़ती उलझन

यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के प्रोफेसर फिलिप कैल्डर का कहना है, “लोगों को फायदा तभी मिलेगा, जब उन्हें पता होगा कि उन्हें कितनी मात्रा चाहिए। लेकिन दुनिया भर में ओमेगा-3 को लेकर अलग-अलग दिशानिर्देश हैं, जिससे भ्रम बढ़ता है।“

ऐसे में यह समीक्षा यूरोप और उत्तर अमेरिका के बाहर, जैसे भारत, एशिया और दक्षिण अमेरिकी देशों के लिए भी स्पष्ट और वैज्ञानिक दिशानिर्देश तैयार करने की जरूरत पर जोर देती है।

अध्ययन में यह भी सामने आया कि विभिन्न आबादी को ओमेगा-3 की सुझाई मात्रा पूरी करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें कम समुद्री भोजन खाने के कारण मछलियों के सेवन की जरूरी सलाह पूरी करना मुश्किल होना, स्थिरता से जुड़ी चिंताएं और कुछ लोगों के लिए सप्लीमेंट लेने की सही जानकारी का सीमित होना भी शामिल है।

सेहत के लिए वैश्विक चेतावनी

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ओमेगा-3 की कमी एक ‘खामोश वैश्विक स्वास्थ्य संकट’ बनती जा रही है। ऐसे में सतत खाद्य विकल्प, सही जानकारी और स्पष्ट नीतियां ही इस संकट से उबार सकती हैं।

देखा जाए तो यह अध्ययन न सिर्फ वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिए, बल्कि नीति-निर्माताओं और आम लोगों के लिए भी एक अहम संदेश है कि बेहतर सेहत की शुरुआत सही पोषण से होती है, और ओमेगा-3 उसकी एक अनिवार्य कड़ी है।

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