
किसान जिस गोबर को खाद मानते हैं, वो अब धीरे-धीरे एक अदृश्य खतरा बनने की राह पर है। जानवरों के इलाज में की जाने वाली गलतियां और एंटीबायोटिक दवाएं इंसानों की सेहत पर भारी पड़ सकती हैं। देखा जाए तो पशुपालन से जुड़ा एक खामोश खतरा धीरे-धीरे दबे पांव दुनिया में पैर पसार रहा है।
मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया है कि पशुओं के गोबर में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन्स भरे पड़े हैं, जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि यह मवेशियों के गोबर में मौजूद एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीनों पर किया अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है।
14 वर्षों तक चले इस इस वैश्विक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 26 देशों से 4,000 से ज्यादा गोबर के नमूनों की जांच की। इस दौरान गाय, सूअर और मुर्गियों के गोबर का विश्लेषण किया गया। इस विश्लेषण के जो नतीजे सामने आए हैं, वो हैरान कर देने वाले हैं।
क्यों है खतरा?
नतीजे दर्शाते हैं कि जानवरों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के असर से ऐसे जीन बन रहे हैं जो इंसानी शरीर में जाकर एंटीबायोटिक्स को बेअसर कर सकते हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम उस दौर की ओर बढ़ रहे हैं जब मामूली बुखार भी जानलेवा हो सकता है?
वैज्ञानिकों के मुताबिक पशुओं का गोबर एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन का एक बड़ा स्रोत है। इनमें से कुछ जीन इंसानों को बीमार करने वाले बैक्टीरिया तक पहुंच सकते हैं। अगर ये जीन दूषित पानी, भोजन या पर्यावरण के जरिए हम तक पहुंच जाएं, तो सामान्य संक्रमणों का इलाज करना बेहद मुश्किल या कभी-कभी नामुमकिन हो सकता है, क्योंकि इस स्थिति में आम दवाएं भी बीमारियों पर असर नहीं करेंगी।
इस बारे में मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञ जेम्स टाइडजे का कहना है, 'जो कुछ खेतों में होता है, वह वहीं नहीं रुकता, गोबर में मौजूद जीन हमारे पीने के पानी, खाने और बीमार करने वाले बैक्टीरिया तक पहुंच सकते हैं।'
वैज्ञानिकों के मुताबिक एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस सीमाओं को नहीं मानता। इसके जीन व्यापार, यात्रा और प्राकृतिक रास्तों के जरिए एक देश से दूसरे देश तक फैल सकते हैं।
इसे ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने एक ग्लोबल मैप भी तैयार किया है, जिसमें बताया गया है कि किन देशों में ये खतरनाक जीन सबसे ज्यादा पाए गए। खासतौर पर अध्ययन में अमेरिका में गायों के गोबर में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन पाए गए। वहीं चीन में सूअरों के गोबर में यह खतरा सबसे ज्यादा है।
क्या है एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस?
रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब पैदा होता है, जब रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस, और परजीवी, एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। सरल शब्दों में कहें तो लगातार इन दवाओं के संपर्क में आने के कारण यह रोगजनक अपने शरीर को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते हैं।
शरीर में आए इन बदलावों के चलते वो धीरे-धीरे इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। नतीजतन, यह एंटीबायोटिक दवाएं उन पर बेअसर हो जाती है। जब ऐसा होता है तो इंसानी शरीर में लगा संक्रमण जल्द ठीक नहीं होता। ऐसे में रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले इन रोगाणुओं को कभी-कभी "सुपरबग्स" भी कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, 2019 में इस वजह से 12.7 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं यह समस्या किसी न किसी रूप में सालाना 50 लाख मौतों से जुड़ी है।
संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है कि 2050 तक सुपरबग्स साल में कम से कम एक करोड़ लोगों को लील लेंगें। ऐसे में उनसे निपटने के लिए नई एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होगी।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि जिन देशों में कृषि में एंटीबायोटिक का कम इस्तेमाल हो रहा है, वहां इसका खतरा कम है। उत्साहजनक बात यह है कि अध्ययन में ऐसे संकेत मिले हैं कि कई देशों में कृषि क्षेत्र में एंटीबायोटिक के उपयोग को कम करने के प्रयास सफल हो रहे हैं।
उदाहरण के लिए डेनमार्क और अन्य यूरोपीय देशों ने कई साल पहले ही पशुओं की ग्रोथ के लिए एंटीबायोटिक का उपयोग बंद कर दिया था। अमेरिका ने भी 2017 में "वेटरनरी फीड डायरेक्टिव" लागू किए, जबकि चीन ने भी इसको लेकर सख्त नियम बनाए हैं।
तीनों जगहों पर, समय के साथ गोबर में मौजूद प्रतिरोधी जीन में कमी आई है। इससे पता चलता है कि ये नीतियां कारगर हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
देखा जाए तो एंटीबायोटिक प्रतिरोध सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या नहीं है, यह पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। इतना ही नहीं यह अन्य प्रदूषकों की तुलना में भी कहीं ज्यादा खतरनाक है क्योंकि अगर ये जीन हानिकारक बैक्टीरिया में पहुंच जाते हैं, तो वे सीधे तौर पर घातक संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक समस्या यह है कि पशुओं में एंटीबायोटिक्स का उपयोग बीमारी के इलाज के साथ-साथ उन्हें तेजी से विकसित करने के लिए भी दिया जाता है, जो प्रतिरोध की समस्या को बढ़ा रहा है।
सीएसई भी बढ़ते खतरे को लेकर कर चुका है आगाह
बता दें कि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने भी अपने अध्ययन में चेताया है कि यदि समय रहते कार्रवाई न की गई तो पशुओं में एंटीबायोटिक का उपयोग 2040 तक 30 फीसदी बढ़ सकता है।
अध्ययन के मुताबिक 2019 में वैश्विक स्तर पर पशुओं में 110,777 टन एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया गया। वहीं अंदेशा है कि 2040 तक यह आंकड़ा बढ़कर 143,481 टन तक पहुंच जाएगा। मतलब कि आने वाले वर्षों में इसमें 29.5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।
अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में छपी एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि कृषि में बेतहाशा उपयोग के चलते भारत और चीन के पशुओं में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का खतरा करीब तीन गुना बढ़ गया हैं, जो इंसानो पर मंडराते एक बड़े खतरे की ओर इशारा करता है। गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में बेची जाने वाले 73 फीसदी एंटीबायोटिक्स का उपयोग उन जानवरों पर किया जाता है, जिन्हे भोजन के लिए पाला गया है।
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी अपने अध्ययन में चेताया है कि पोल्ट्री इंडस्ट्री में एंटीबायोटिक दवाओं के बड़े पैमाने पर धड्ड्ले से होते उपयोग के चलते एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के मामले बढ़ रहे हैं ।
क्या है समाधान
इस समस्या से उबरना है तो सरकारों को नियमित निगरानी, नीति निर्माण और सख्त कानून लाने होंगे। किसान और पशुपालकों को दवाओं का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना होगा। साथ ही आम लोगों को भी इस विषय में जागरूक होना होगा।