जेनरिक दवा विवाद : चिकित्सक बोले जेनरिक दवा की गुणवत्ता संशयपूर्ण, मरीजों पर असर न होने पर सरकार ले जिम्मेदारी

यदि सरकार चाहती है कि चिकित्सक देश में केवल जेनरिक दवाइयां ही लिखें तो वह सभी फार्मा कंपनियों को सभी प्रकार की दवाइयों के बिना ब्रांड के निर्माण के लिए ऑर्डर देना चाहिए।
जेनरिक दवा विवाद : चिकित्सक बोले जेनरिक दवा की गुणवत्ता संशयपूर्ण, मरीजों पर असर न होने पर सरकार ले जिम्मेदारी
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चिकित्सकों को मरीजों के पर्चे में सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही लिखने की नसीहत देने वाली सरकार की हालिया अधिसूचना ने चिकित्सा पेशेवरों को एक बड़ी दुविधा में डाल दिया है। चिकित्सकों के देशव्यापी समूह इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इस अधिसूचना पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि चिकित्सक अपने मरीजों के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। वह मरीजों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए उन्हें गुणवत्तापूर्ण दवाएं ही लिखते रहे हैं जबकि यह अधिसूचना उन्हें सिर्फ जेनरिक दवाओं के सुझाव के लिए बाध्य कर रही है। जबकि आईएमए के मुताबिक देश में बेची जाने वाली जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता पर सवालिया निशान है और इससे मरीजो की स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों प्रभावित हो सकती है। 

आईएमए ने अपने बयान में कहा कि यदि सरकार चाहती है कि चिकित्सक देश में केवल जेनरिक दवाइयां ही लिखें तो वह सभी फार्मा कंपनियों को सभी प्रकार की दवाइयों के बिना ब्रांड के निर्माण के लिए ऑर्डर देना चाहिए। साथ ही उन्हें यह यदि जेनरिक दवाओं का मरीज पर असर न होने पर इसकी जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन) के एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड (एनईआरबी) ने 2 अगस्त, 2023 को जेनरिक दवाओं के संबंध में मेडिकल प्रैक्टिशनर के पेशेवर आचरण को लेकर एक अधिसूचना जारी की है। इस अधिसचूना को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिसनर (पेशेवर आचरण) विनियम, 2023 नाम दिया गया है। इस अधिसूचना में कहा गया है कि सभी चिकित्सक अपने मरीजों को सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही पर्चे पर लिखें। 

इस अधिसूचना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईएमए ने 16 अगस्त, 2023 को जारी अपने एक बयान में कहा है कि "देश में दवाओं का गुणवत्ता नियंत्रण बहुत कमजोर है, व्यावहारिक रूप से दवाओं की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है और गुणवत्ता सुनिश्चित किए बिना दवाएं लिखना रोगी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। भारत में निर्मित 0.1 फीसदी से भी कम दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है।" 

आईएमए ने कहा है कि इस कदम को तब तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए जब तक सरकार बाजार में जारी सभी दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं कर लेती क्योंकि रोगी की देखभाल और सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। चिकित्सक संगठन ने कहा यदि सरकार जेनेरिक दवाओं को लागू करने के प्रति गंभीर है, तो उसे जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए केवल जेनेरिक दवाओं को ही लाइसेंस देना चाहिए, किसी ब्रांडेड दवाओं को नहीं।

वहीं, इस मामले में नई दिल्ली स्थित सर गंगा राम हॉस्पिटल में इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी एंड पैंक्रिएटिको बाइलेरी साइंसेज विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ अनिल अरोड़ा ने अधिसूचना को लेकर डाउन टू अर्थ से कहा भले ही अक्षरशः विचार अच्छा है, हालांकि अधिसूचना और क्लीनकल प्रैक्टिस में इसके वास्तविक समय के अनुप्रयोग के बीच एक बड़ा अंतर होगा। जो डॉक्टर इलाज कर रहा है सबसे पहले उसे जेनरिक दवा पर पूरा भरोसा होना चाहिए, क्योंकि वह अंत में मरीज के पास पहुंचेगी। उन्होंने कहा कि अलग-अलग कंपनियों के पास भंडारण और कोल्ड चेन के निर्माण के अलग-अलग मानक हो सकते हैं और इस विशाल देश में बड़ी संख्या में दवा निर्माताओं पर नियंत्रण और संतुलन रखना वास्तविकता मे एक कठिन काम है।   

वहीं, अधिसूचना को लेकर आईएमए की ओर से कहा गया कि "जेनिरक दवाओं का प्रचार-प्रसार वास्तविकता के साथ होना चाहिए। एनएमसी द्वारा जेनेरिक दवाओं का वर्तमान प्रचार इसी तरह से प्रतीत होता है कि बिना पटरियों के रेलगाड़ियां चलायी जा रही हैं।"

आईएमए ने कहा कि इस अधिसूचना का उपाय केवल चिकित्सक की पसंद को स्थानांतरित कर रहा है जो मुख्य रूप से मरीजों के स्वास्थ्य के लिए चिंतित, प्रशिक्षित और जिम्मेदार है, न कि दवा विक्रेता के लिए। जेनेरिक दवाओं के सुझाव का कदम मरीजों के हित में नहीं होगा। 

डॉ अरोड़ा कहते हैं किसी विशेष कंपनी की निर्धारित दवा को मरीजों तक पहुंचाने का विकल्प अंत में दवा देने वाले फॉर्मास्सिट पर निर्भर करेगा न कि दवा लिखने वाले चिकित्सक पर। वह आगे कहते हैं कि एक समस्या यह भी है कि किसी दवा का निर्माण अगर कई दवा कंपनियों द्वारा किया जा रहा है तो उसकी गुणवत्ता और कीमत को कैसे नियंत्रित किया जाएगा। सरकार को सबसे पहले डॉक्टर के पर्चे के बिना ओवर काउंटर दवा बिक्री पर रोक लगाने के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए। 

आईएमए ने कहा कि महज इलाज की लागत कम करने के लिए गुणवत्तापूर्ण उपचार से समझौता नहीं किया जा सकता। चिकित्सकों के संगठन ने कहा कि यदि चिकित्सक ब्रांडेड दवाएं नहीं लिख सकते तो फिर इन दवाओं को लाइसेंस क्यों दिया जाना चाहिए जबकि आधुनिक चिकित्सा दवाएं केवल इस प्रणाली के डॉक्टरों के नुस्खे पर ही दी जा सकती हैं। यह समझ से परे है कि बाजार में गुणवत्तापूर्ण ब्रांड उपलब्ध रहेंगे लेकिन चिकित्सक जो कि मरीजों के प्रति जिम्मेदार हैं वह इन दवाओं को नहीं लिख सकेंगे। सरकार को चाहिए कि वह फार्मा कंपनियों पर ब्रांडेड ड्रग की पाबंदी लगवाए। 

सरकार ने फार्मा कंपनियों को ब्रांडेड, जेनरिक  ब्रांडेड और जेनरिक जैसी श्रेणी की दवाओं की अलग-अलग दामों पर बिक्री के लिए अनुमति दे रखी है। कानून में ऐसे लूपहोल को देखना चाहिए।  जेनरिक ड्रग पर जाने से पहले गुणवत्ता को सुनिश्चित करने वाली एक प्रभावी प्रणाली का होना बेहद जरूरी है। 

आईएमए ने मांग की है कि देश में केवल अच्छी गुणवत्ता वाली दवाएं ही मिलनी चाहिए और उनकी कीमतों में एकरूपता व लोगों की पहुंच में होनी चाहिए। सरकार को एक दवा, एक गुणवत्ता और एक कीमत प्रणाली के तहत सिर्फ उच्च गुणवत्ता वाली जेनरिक दवाइयां ही बिक्री के लिए अनुमति देनी चाहिए। 

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