गर्भावस्था के दौरान माइल्ड कोविड की वजह से क्या बच्चे के दिमाग पर पड़ सकता है असर

कोलंबिया विश्वविद्यालय के इर्विंग मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिकों ने उन मांओं को अपने अध्ययन में शामिल किया, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान कोरोना संक्रमण हुआ था
फोटो: आईस्टॉक
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गर्भावस्था के दौरान मां को यदि कोविड हो तो गर्भ में पल रहे बच्चों के दिमाग पर क्या असर पड़ता है? यह जानने के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय के इर्विंग मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिकों ने एक व्यापक अध्ययन किया। 

बच्चों के मस्तिष्क और उसके विकास पर की गई व्यापक रिसर्च के आधार पर शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि कोविड-19 ने शिशुओं में मस्तिष्क के विकास को धीमा नहीं किया, बल्कि बच्चे का मानसिक विकास सामान्य रूप से हुआ। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुए हैं।   

वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में महामारी की पहली लहर के दौरान न्यूयॉर्क में पैदा हुए शिशुओं के विकास पर की गई एक अन्य रिसर्च के नतीजों को आगे बढ़ाया है। इस रिसर्च में उन शिशुओं के दिमागी विकास में कोई अंतर नहीं पाया गया जो गर्भावस्था के दौरान कोविड के संपर्क में थे, या जिनमें कोविड के लक्षण उजागर नहीं हुए थे।

इस नए अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने दूर से ही शिशुओं की जांच का एक तरीका विकसित किया था, जिससे महामारी के दौरान सुरक्षित दूरी बनाई जा सके। यह अध्ययन मार्च 2021 से जून 2022 के बीच किया गया, जिसमें न्यूयॉर्क, साल्ट लेक सिटी, यूटा और बर्मिंघम के साथ अलबामा से 5 से 11 महीने की आयु के 407 शिशुओं का अध्ययन किया गया था। इनमें से करीब एक तिहाई शिशुओं की माएं गर्भावस्था के दौरान कोविड से संक्रमित थी।

इस रिसर्च में भाग लेने वाले सभी परिवारों के बच्चों को एक जैसे खिलौने और खाद्य पदार्थ दिए गए, ताकि शोधकर्ता बच्चों के मानसिक विकास और कौशल का निरिक्षण और आंकलन कर सकें। शोधकर्ताओं ने इन बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता और भाषा कौशल का भी आकलन किया था। हालांकि वो यह नहीं जानते कि इनमें से कौन से बच्चे गर्भावस्था में कोविड-19 के संपर्क में आए थे।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता दानी डुमित्रिउ ने बताया कि शिशुओं का दूर से मूल्याङ्कन न केवल महामारी से सुरक्षा के नजरिए से महत्वपूर्ण है। साथ ही इससे हमें यह जानने में मदद मिली कि बच्चे घरेलु वातावरण में कैसे विकसित हो रहे हैं, क्योंकि लैब में इस तरह की रिसर्च में वो डरे या चिंतित हो सकते हैं।

अब तक नहीं टला है कोरोना संकट  

वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन माओं को गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय माइल्ड या एसिमटोमैटिक कोविड-19 था, उनके बच्चों का मानसिक विकास भी अन्य बच्चों की तरह ही था, जिनकी माओं को यह महामारी नहीं हुई थी।

डुमित्रिउ के मुताबिक, “सबूत इस तथ्य को पुख्ता करते हैं कि गर्भावस्था के दौरान माइल्ड या एसिमटोमैटिक कोविड शिशुओं में मस्तिष्क के विकास को प्रभावित नहीं करता है।“ हालांकि साथ ही उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की है कि एक विकसित होते शिशु के मस्तिष्क पर गंभीर कोविड के क्या प्रभाव होते हैं, उसे समझने के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है।

वहीं जर्नल पीडिएट्रिक्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि असाधारण मामलों में कोविड-19 प्लेसेंटा के जरिए मां से उसके गर्भस्थ शिशु में पहुंच सकता है। इसकी वजह से विकसित होते भ्रूण के मस्तिष्क को नुकसान हो सकता है। इससे शिशुओं का दिमागी विकास प्रभावित हुआ था।

देखा जाए तो इस महामारी की गंभीरता को देखते हुए वैज्ञानिक ज्यादा से ज्यादा इसके बढ़ते प्रभावों को समझना चाहते हैं, क्योंकि महामारी के तीन वर्ष बीतने के बाद भी इसका खतरा अब तक कम नहीं हुआ है। वहीं भारत जैसे देशों में तो यह महामारी एक बार फिर से पैर पसार रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिछले सात दिनों में कोरोना के 4.38 लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं। वहीं इन सात दिनों में 3,299 लोगों की मौत इस महामारी से हुई है। भारत में भी सक्रिय मामलों का आंकड़ा बढ़कर 40,215 पर पहुंच गया है, जबकि पिछले 24 घंटों में इस बीमारी के 7,830 नए मामले सामने आए हैं। इस तरह देश में अब तक यह महामारी 531,016 लोगों को लील चुकी है।

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