कोविड-19 : बिहार में एक सरकारी चिकित्सक पर 20 हजार की आबादी है आश्रित

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक चिकित्सक और उस पर आश्रित आबादी का अनुपात 1:1000 बताया है। सरकारी चिकित्सकों के आधार पर यह अनुपात हासिल करना एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है।
A vaccination centre in Sitamarhi district. Photo: C K Manoj
A vaccination centre in Sitamarhi district. Photo: C K Manoj
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जब दूसरी बार कोरोना संक्रमण का ग्राफ अपने चरम पर पहुंच रहा था उस वक्त बदहाल बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था में चिकित्सकों की तंग संख्या मरीजों को कैसे संभाल रही थी? इस सवाल के तह में चलें, इससे पहले यह जान लेना जरूरी है कि देशभर के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कोरोना संक्रमण का ग्राफ काफी तेजी से नीचे आ रहा है। 

26 मई, 2021 को बिहार में कोरोना संक्रमण के 2603 मामले सामने आए। वहीं, अब तक बिहार में कोरोना संक्रमण से कुल 4845 लोगों की मौत बताई जा रही है। इसमें वह चिकित्सक भी शामिल हैं जिनसे आम लोग अपनी जिंदगी बचा लिए जाने की उम्मीद रखते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, बिहार शाखा के मुताबिक कोरोना की पहली लहर के दौरान करीब 39 चिकित्सक और दूसरी लहर के दौरान 90 वरिष्ठ चिकित्सकों ने कोरोना से दम तोड़ा है।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चिकित्सकों की कमी और कुछ विशेष दक्षता रखने वाले चिकित्सकों की कमी का मामला जब-तब सामने आया। डाउन टू अर्थ ने यह पड़ताल की है कि बिहार में कोरोना की दूसरी लहर का ग्राफ जब अभी तक अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचा तो स्वास्थ्य व्यवस्था में चिकित्सकों की उपस्थिति आबादी के बीच कितनी थी। 

2011 की जनगणना के आधार पर 10.28 करोड़ की आबादी (अब करीब 13 करोड़) वाले बिहार में अभी कुल सरकारी चिकित्सकों की मौजूदगी और आबादी के अनुपात की बीच की खाई काफी बड़ी है। मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण की ओर से पटना हाईकोर्ट को दिए गए हलफनामे में यह बात स्पष्ट होती है कि 13 मई, 2021 तक बिहार में कुल सरकारी चिकित्सकों की संख्या 5081 थी।

बिहार सरकार की ओर से हलफनामें में दी गई जानकारी के मुताबिक कुल 5566 स्वीकृत पदों में 2893 जनरल मेडिकल ऑफिसर काम कर रहे हैं वहीं, 5508 स्पेशिएलिस्ट स्वीकृत पदों में 1795 डॉक्टर काम कर रहे हैं। इसके अलावा कांट्रेक्ट के आधार पर 915 स्वीकृत जनरल मेडिकल ऑफिसर पदों में  279 और 769 कांट्रेक्ट के आधार पर स्पेशिएलिस्ट के स्वीकृत पदों में 150 चिकित्सक ही काम कर रहे हैं। 

इन पदों के अलावा 1000 एमबीबीएस चिकित्सकों की नियुक्ति की प्रक्रिया 21 मई, 2021 तक पूरा करने का आश्वासन दिया गया था, जिसकी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है।  

वहीं, कोविड के दौरान तीन महीने के लिए 541 पोस्ट ग्रेज्युएट चिकित्सकों और एमबीबीएस के छात्रों को भी मौका दिए जाने से संख्या को बढ़ाए जाने की बात कही गई थी। चिकित्सकों की यह संख्या यह बताती है कि अभी बिहार में 20 हजार की आबादी पर एक सरकारी चिकित्सक ही मौजूद है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से काफी दूर है।   

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक चिकित्सक और उस पर आश्रित आबादी का अनुपात  1:1000 होना चाहिए।  

आईएमए बिहार के राज्य सचिव डॉ सुनील कुमार डाउन टू अर्थ से कहते हैं "बिहार में सरकारी चिकित्सकों और आबादी का यह अनुपात पूरा होने में 50 वर्ष लगेगा। वह एक करीबी अनुमान के आधार पर कहते हैं कि बिहार में बेसिक डॉक्टर के करीब 13.5 स्वीकृत पद हैं जबकि 6 या 6.5 हजार ही हैं जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर हैं। वहीं, मेडिकल कॉलेजों में 4 से 4.5 हजार में महज 1800 चिकित्सक ही हैं। इसके अलावा 1000 विशेषज्ञों के स्वीकृत पदों में करीब 500 ही नियुक्त किए गए हैं।" 

डॉक्टर सुनील कहते हैं कि बीती दो लहरों के दौरान बिना किसी अवकाश के डॉक्टर अथक काम करते जा रहे हैं। उन्हें आराम नहीं दिया जा रहा। चिकित्सकों की कमी का अनुपात हाल-फिलहाल सुधारा जाएगा ऐसी उम्मीद नहीं दिखती।  

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बिहार में 29 अप्रैल, 2021 को सर्वाधिक कोरोना पॉजिटिव मामले 15853 सामने आए थे। 13 अप्रैल, 2021 से 13 मई, 2021 तक बिहार में प्रतिदिन कोरोना पॉजिटिव के नए मामलों की संख्या 10 हजार और उससे ऊपर रही। वहीं, बीते दस दिनों में कोरोना संक्रमण का ग्राफ तेजी से लुढ़का है।

बहरहाल चिकित्सकों की कमी का मामला सिर्फ कोरोना संक्रमण तक सीमित नहीं है। बिहार के कई जिलों में चिकित्सक की उपलब्धता आबादी के अनुपात में काफी खराब है। खासतौर से कोविड संक्रमण जैसी भयावह  स्थिति जब भी फिर से सामने आएगी तो ऊपर दिए गए ग्राफ में डॉक्टर की उपलब्धता और आश्रित आबादी के आंकड़ों की स्थिति  सामने आ जाएगी।

वहीं, इस स्थिति पर विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि स्थिति अच्छी हो रही है लेकिन पूरी तरह काबू में आ गई है, यह कहना अभी जल्दीबाजी होगी। 

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